में मेगी का समर्थक नहीं हु लेकिन केवल उदाहरण के लिए मेगी के नाम का उपयोग किया हे । मेगी खाने से देश में एक भी मौत नहीं किन्तु तुरंत पुरे भारत में प्रतिबन्ध लग गया लेकिन दारु पिने से मुम्बई के मलाड के मालवानी इलाके में एक ही दिन में एक ही स्थान पर अब तक 102 मौत हो चुकी हे फिर भी दारु पर रोक लगाने की किसी संगठन ने मांग नहीं की । क्या इंसान की जान की कीमत मापने के अलग अलग मानदंड हे ?
देश में दारु बंद की मांग क्यों नही उठती । जबकि वो भी धीरे धीरे मोत के मुंह में ले जाती हे ।
गुटखे जर्दे सिगरेट पे बेन लग सकता हे किन्तु दारु पे नहीं ।
जिस तरह देशभर में मेगी के खिलाफ प्रदर्शन हुए क्या दारु के खिलाफ प्रदर्शन करने की किसी ने हिम्मत दिखाई आज तक ?
सारे के सारे ngo और समाज सेवी संगठन , मानवाधिकार आयोग और अपने स्वार्थो की रोटी सेकने वाले छोटे बड़े राजनेतिक दल सभी मोन व्रत धारण कर बेठे हे ।
मिडिया मे इस खबर को अब तक ऐसे दिखाया जा रहा जैसे 102 लोगो का मरना कोई माइने नही रखता क्यूंकि देशी दारु गरीब मजदूरो से जो जुडी है । मेगी साधारण नहीं ख़ास आदमी खाता हे । जब एक बच्चा प्रिंस बोरवेल में गिरता हे तब पुरे हिन्दुस्तान का मिडिया अपने लवाजमे के साथ कवर करने पहुच जाता हे और खबर को नमक मिर्चि के साथ सुबह से शाम तक मठार मठार के परोसता हे ।
102 लोगो का गुनाह एक ही था की वो गरीब थे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता उनकी मोत से ।
में मेगी का विरोधी हु सिर्फ उदाहरण के लिए यहा मेगी को इस्तेमाल किया है । हेमेन्द्र सोनी @ bdn