तो पार्षद पुत्र को काहे को दिए थे एक लाख?

इन दिनों एक खबर सुर्खियां पा रही है कि सीता गौशाला परिसर में गोदाम के स्थान पर दुकानों का निर्माण करने पर निगम को शिकायत नहीं करने के लिए क्षेत्रीय पार्षद के पुत्र ने समिति सदस्यों से एक लाख रुपए दिए थे। पार्षद पुत्र पर यह आरोप सीता गौशाला प्रबंधन कमेटी के सदस्यों ने स्वयं लगाया है और इसकी शिकायत मेयर कमल बाकोलिया से भी की है।
दरअसल समिति के सदस्य गौशाला परिसर में निर्मित दुकानों को निगम द्वारा तोड़े जाने पर मेयर के समक्ष अपना पक्ष रखने आए थे। इस पर मेयर ने समिति सदस्यों की ओर से पार्षद पुत्र पर लगाए आरोप लिखित में देने पर आवश्यक कार्रवाई करने का आश्वासन दिया।
समिति सदस्यों का कहना है कि गौशाला समिति ने गोदाम के स्थान पर दुकानों का निर्माण किया है। इस स्थान का उपयोग पहले भी व्यावसायिक हो रहा था। यहां तक कि जमीन पर निगम का मालिकाना हक भी नहीं है और समिति को यह जमीन दान में मिली थी। उनका कहना है कि गोदाम के स्थान पर बिना किसी अड़चन के दुकानें बनाने के लिए पार्षद के एक पुत्र ने एक लाख रुपए और एक दुकान मांगी थी। समिति ने एक लाख रुपए नकद तो देना स्वीकार कर लिए लेकिन दुकान नहीं दी। सवाल ये उठता है कि समिति अगर अपने आप को सही मानती है और दुकानों को तोडऩे को गलत तो उसने पार्षद पुत्र को किस बात के एक लाख रुपए दिए थे?

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