ये भी उपलब्धि है क्या

19366254_1507288759331991_1695216846671631171_nआजादी के 70 साल बाद भी अगर नेताओं का दलितों के घर खाना खाने को राजनीतिक उपलब्धि के तौर पर पेश किया जाए,तो इससे शर्मनाक बात और क्या हो सकती है ? राजनीतिज्ञ किसे बेवकूफ बना रहे हैं, दलितों को,जनता को या लोकतांत्रिक परंपराओं को। जब कांग्रेस के नेता यही काम करते थे तो भाजपाई ये आरोप लगाते थे कि दलितों के वोटों के लिए ये नौटंकी की जाती हैं, तो अब वो क्या कर रहे हैं? दलितों को समझना चाहिए कि नेता किसी के सगे नहीं होते,वो केवल वोटों के सगे होते हैं। एक और तो दलित देश का राष्ट्रपति बनता है, तो दूसरी और इस तरह के राजनीतिक तमाशे किये जाते हैं।

Om Mathur
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