मोदी की जीत में मीडिया का बड़ा रोल

हालांकि लगातार तीसरी बार गुजरात विधानसभा का चुनाव जीत कर नरेन्द्र मोदी ने एक उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है, मगर कानाफूसी है कि इस बार उनकी जीत में मीडिया का बड़ा रोल रहा है। मीडिया शुरू से ही उन्हें लगातार प्रधानमंत्री पद का दावेदार बताता रहा। इसका परिणाम ये रहा कि गुजरात की जनता में यह संदेश गया कि मोदी को जिताएंगे तो गुजरात का गौरव भी बढ़ेगा। मीडिया इतना चतुर निकला कि उसने भाजपा के लगभग सभी दिग्गजों के मुंह से मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बतवा दिया। स्वाभाविक सी बात है कि अगर आप किसी नेता से पूछेंगे कि मोदी पीम पद के दावेदार हैं या नहीं तो भला कोई साफ तो इंकार नहीं कर नहीं पाएगा, यही कहेगा न कि हां हो सकते हैं, पार्टी में अनेक योग्य लोग हैं इस पद के लिए। और फिर जब औपचारिकतावश उसने यह कह भी दिया कि हां, मोदी इसके योग्य हैं तो भी मीडिया ने इसे ऐसे प्रचारित किया कि उन्हें अन्य नेता भी प्रबल दावेदार मान रहे हैं। जो नेता खुद भी दावेदार कहलाते हैं, जानबूझ कर उनसे भी यही कहलाया गया कि मोदी दावेदार हैं।
इसके अतिरिक्त मोदी के अच्छे मीडिया मैनेजमेंट के चलते उन्हें विकास पुरुष के रूप में स्थापित किया गया, जबकि धरातल का सच ये बताया जाता है कि यह विकास केवल शहरी इलाकों में हुआ, न कि गांवों में। मीडिया की इस भूमिका पर टीवी चैनलों पर भी नुक्ताचीनी हुई। बात यहां तक आई कि मीडिया मोदी की जीत को तो ज्यादा उभार रहा है, जबकि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने भाजपा से सत्ता छीनी है, उसे कमतर दिखाया जा रहा है।
बेशक मोदी की जीत में खुद उनका अपना व्यक्तित्व, विकास व वोटों का धार्मिक आधार पर धु्रवीकरण की भूमिका है, मगर मीडिया की भूमिका भी कम नहीं रही है। तभी तो कहते हैं मीडिया चाहे तो किसी को जर्रे से आसमान का तारा बना दे और चाहे तो तारे जमीन पर लगा दे।

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