भाजपा इस बार अजमेर दक्षिण में किसी रेगर को टिकट देगी?

कानाफूसी है कि भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर दक्षिण में नया प्रयोग करने पर विचार कर रही है। बताया जाता है कि इस बार इस सीट पर रेगर जाति के किसी नेता को टिकट देने पर होने वाले संभावित परिणाम पर मंथन किया जा रहा है। ज्ञातव्य है वर्तमान में इस सीट पर श्रीमती अनिता भदेल काबिज हैं, जो कोली जाति से आती हैं और लगातार चार बार जीती हैं। बावजूद इसके अगर जातीय कार्ड बदलने की सोच बन रही है तो, जरूर उसके पीछे कोई तर्क होगा।
बेषक लगातार चार बार जीत चुके प्रत्याषी को बदलने का कोई कारण या आधार नहीं बनता, विषेश रूप से जातीय समीकरण को देखते हुए। प्रत्याषी की लोकप्रियता अपनी जगह है, लेकिन सीट की प्रकृति की भी अहम भूमिका रहती है। धरातल का सच यह माना जाता है कि श्रीमती भदेल की जीत में सिंधी, माली व जांगिड वोट बैंक का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। जिस कोली जाति से वे हैं, उसमें वे अब भी तगडी सेंध नहीं मार पाई हैं। कोली वोट बैंक पर आज भी दो बार कांग्रेस प्रत्याषी रहे हेमंत भाटी का प्रभाव अधिक है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण वे नगर निगम चुनाव में दे चुके हैं। हालांकि श्रीमती भदेल का विकल्प तलाषने की जो चर्चा है, उसकी वजह यह तथ्य नहीं है। वस्तुतः सिर्फ एंटी इन्कंबेंसी के चलते प्रत्याषी बदलने की दिषा में सोचा जा रहा है। विकल्प के रूप में भाजपा के पास मौजूदा मेयर ब्रजलता हाडा हैं, जिनके बारे में यह धारणा है इस बार उन्हें मौका दिया जा सकता है। हालांकि कुछ जानकारों का मानना है कि उनके पति, जो षहर जिला भाजपा अध्यक्ष हैं, खुद लडने पर विचार कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने जुगाड भी कर लिया बताया।
अब बात जातीय कार्ड बदलने की। भाजपा के सूत्रों की सोच है कि चूंकि वर्तमान में षहर जिला भाजपा अध्यक्ष पद पर आसीन डॉ प्रियषील हाडा व मेयर पद पर काबिज श्रीमती हाडा कोली जाति से हैं और विधानसभा चुनाव में फिर कोली जाति का ही प्रत्याषी बनाए जाने रेगर सहित अन्य अनुसूचित जातियां नाराज हो सकती हैं। यदि जातीय कार्ड बदला जाता है तो कोई बडा नुकसान इसलिए नहीं होगा कि कोली समाज पर भाजपा अपनी पकड नहीं बना पाई है। हद से हद ये होगा कि जो कुछ प्रतिषत कोली वोट मिलता रहा है, वह नहीं मिल पाएगा। इसके विपरीत रेगर जाति का प्रत्याषी बनाए जाने पर उसमें गहरी सेंध मारी जा सकती है, जिसका सीधा सीधा नुकसान कांग्रेस को होगा। कानाफूसी है कि अब पूर्व जिला प्रमुख वंदना नोगिया नंबर वन दावेदार हैं। पूर्व राज्य मंत्री श्री किषन सोनगरा परिवार का भी दावा है। कुछ ओर दावेदार भी हैं, लेकिन उन्हें फिलवक्त मजबूत नहीं माना जा रहा, जिन पर कि दाव खेला जा सके। इन सब तथ्यों के बाद भी यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि श्रीमती भदेल का टिकट काटा ही जाएगा। वे आखिरी पल तक खम ठोक कर खडी रहने वाली हैं।
रहा सवाल अजमेर उत्तर का तो पूर्व षिक्षा राज्य मंत्री वासुदेव देवनानी ने अपनी पकड बना रखी है। चार बार लगातार जीतने के कारण उनका टिकट कटने की बात बेमानी लगती है, मगर अकेले एंटी इन्कंबेंसी फैक्टर के चलते उनके विकल्प पर भी विचार हो सकत है। हां, इतना जरूर है कि भाजपा यहां जातीय कार्ड बदलने वाली नहीं दिखती। हालांकि गैर सिंधी के लिए दबाव इस बार भी होगा, मगर माना यही जाता है कि किसी सिंधी को ही टिकट जाएगा। उसकी बडी वजह यह है कि अजमेर की दोनों सीटें सिंधी वोट बैंक के कारण जीती जा रही हैं। दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि पिछले दस साल में तकरीबन बारह से पंद्रह हजार सिंधी दक्षिण से उत्तर में षिफ्ट हो गए हैं। इसी वजह से दक्षिण सीट कमजोर हुई है। इसी को ख्याल में रखते हुए ही दक्षिण में जातीय कार्ड बदलने की सोच बन रही है।
जहां तक देवनानी के विकल्प की बात है तो प्रत्यक्षतः कंवल प्रकाष किषनानी व महेन्द्र तीर्थानी की दावेदारी है। उनके अतिरिक्त संघ के कुछ कम परिचित चेहरे भी उम्मीद पाले हुए हैं। लेकिन समझा जाता है कि इस बार भाजपा अकेले संघ की ताकत के भरोसे नहीं रहना चाहती और सुपरिचित चेहरे पर विचार करेगी।
हालांकि चुनाव अभी दूर हैं, मगर सुगबुगाहट जरूर षुरू हो चुकी है। चुनाव नजदीक आने तक अप एंड डाउन का खेल होगा ही।

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