फेसबुक पर यह कैसी पत्रकारिता

ओम थानवी
ओम थानवी

ऐसे पाखंड पर मुझे बहुत कोफ्त होती हैः एक सज्जन कह रहे हैं कि लोग पिस रहे हैं और आप निर्गुण भजन सुन रहे हैं! छपरा के गांव में सोलह बच्चे बेमतलब मर गए, पाकुड़ में चार बच्चियों का रेप हो गया, चैनलों पर निर्मल बाबा फिर नमूदार हो गए हैं और दिल्ली के संपादकों की स्याही नहीं खौलती…! पढ़े-लिखे लोगों में भी कैसी निरक्षरता है! फेसबुक को पत्रकारिता समझ बैठे हैं! पत्रकारिता की दुनिया अलग है, फेसबुक की बिलकुल अलग, जो सार्वजनिक होकर भी नितांत निजी घेरे की है। मैं अपने अखबार में अपनी तसवीर नहीं छपने देता, पर फेसबुक को तो अखबार नहीं मान सकता? इस तर्कपद्धति से तो वे किसी कवि, शिक्षक, कलाकार आदि को फेसबुक पर टिकने ही नहीं देंगे! फेसबुक पर कुछ देखा नहीं कि ‘मित्र’ की कविता, कला, शिक्षण पर उपदेश पेश करने लगेंगे, कि देखिए दुनिया में कितनी मार मची है। भाई, कोई ऐसी घड़ी होती है जब हमारे गिर्द कोई हत्या-बलात्कार-अन्याय न हो रहा हो? हम इनके बीच ही जीवन ढूंढ़ते और जीते हैं। इन्हीं के बीच सरकार, पत्रकार, न्यायालय आदि अपना काम करते हैं। कभी अच्छा, कभी नहीं। संगीत साझा करने पर बेचैनी प्रकट करने वाले सज्जन से मैंने पूछा है कि ऐसी दारुण घड़ी में फिर आप फेसबुक पर बैठे क्या कर रहे हैं? क्या उन्होंने खाना-पीना, सभा-समारोहों में आना-जाना यानी जीवन की गतिविधियां दुख की घड़ी में स्थगित कर दी हैं? हमने कबीर / कुमारजी के भजन साझा किए हैं। लोग सिनेमा देखने भी जा रहे हैं, नाटक, संगीत-नृत्य के आयोजन हो रहे हैं, गोष्ठियां और समारोह चल रहे हैं। बड़ी से बड़ी आपदा-विपदा के बाद भी जीवन में जीवन बचा रहे, तभी दुनिया आगे बढ़ती है। क्या फेसबुक पर यह ढोंग वैसा ही नहीं जैसे कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी शाम को विदेशी शराब छलकाते हुए भुखमरी और मजदूरों-मजलूमों की दुर्दशा पर गम गलत करते हैं?

वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी के फेसबुक वॉल से.

2 thoughts on “फेसबुक पर यह कैसी पत्रकारिता”

  1. ऐसा लगता है जैसे कि पूरे हिंदी जगत की बुद्धिवादिता में एकमात्र सही व्यक्ति ओम थानवी ही बचे हैं। वे अपने क्रन्तिकारी वचनों से उन सभी को ढेर कर देना चाहते हैं जो उनसे भिन्न मत रखते हैं। आजकल फेसबुक पर इन महोदय ने रणभेरी बजा रखी है। इनके पास समय ही समय है। जनसत्ता तो युद्ध भूमि ही बना दी हैं इन महाशय ने कभी ये वार करता है तो कभी वो वार करता है और ये साहब मजे लेते हैं। यही इनकी विद्वता है और यही पराक्रम। इनके पास इतने शस्त्र हैं कि इनके आगे कोई योद्धा नहीं टिक सकता। इनका कुछ खास लोगों से शत्रुतापूर्ण रवैया जगजाहिर है। अहंकार इनमें इतना है कि अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझते। तानाशाह की तरह किसी भी कीमत पर उसे ध्वस्त कर देना चाहते हैं। इनकी भाषा शैली, इनका हिटलरी एट्टीच्यूड इस बात का गवाह है। अपने को सही साबित करने के लिए इनके पास हर तरह के तर्क मौजूद हैं। ऐसे ही लोग मानवता के असल शत्रु होते हैं। इनके लिए अहंकार के आलावा कुछ भी महत्त्व नहीं रखता, उदारता और सहिष्णुता तो छू तक नहीं गई होती इन्हें। ऐसे लोगों से भगवान ही बचाए।

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