साधनों से नहीं साधना से बनते हैं परिवार -घलसासी

16-डा.लक्ष्मीनारायण वैष्णव-  दमोह/ मां की कोख से जन्म लेने के पश्चात् हमारा शरीर तो मनुष्य का होता है परन्तु क्या हम मनुष्य हैं इस बात पर प्रश्न चिन्ह अंकित होता है? क्योंकि मनुष्य बनने के लिये विशेष गुणों की आवश्यकता होती है जिसके बिना वह पूर्ण हो ही नहीं सकता यह बात बरिष्ठ विचारक एवं चिंतक विवेक घलसासी ने कही। स्थानीय कांनेटकर भवन के सभाकक्ष में आयोजित श्री गुरूजी व्याख्यानमाला में परिवारों में बढती संवादहीनता एवं समाधान विषय पर अपने विचार रखते हुये सोलापुर महाराष्ट्र निवासी श्री घलसासी ने अपने प्रेरणादायी उद्बोधन के दौरान उपस्थित जन समूह को चिंतन,मनन करने पर लगातार मजबूर किया जाता रहा। शब्दों के चयन के साथ उसके प्रस्तुतिकरण तथा तर्क प्रमाणों को प्रस्तुत करते हुये इन्होने कहा कि मनुष्य पूर्व में जंगलो,गुफाओं एवं कंदराओं में निवास करता था मनीषियों ,ऋषि, मुनियों ने चिंतन किया कि मनुष्य के शरीर धारी को मनुष्य बनाने के लिये उसका पंच कोषिय विकास आवश्यक है। इन्होने इसके लिये तय किया कि अन्न मय,प्राण मय,मनोनय कोष,ज्ञानमय कोष के साथ आनंदमय कोष पर ध्यान देते हुये इस पर कार्य किया जाना चाहिये। कृणवंतो विश्वमार्यम्.. का संदेश देते हुये जिसका प्रयोग उन्होने धर्म एवं विज्ञान के आधार पर किया । इनका मानना था कि संस्कृति के संबर्धन एवं संरक्षण के आधार पर भी मनुष्य का निर्माण हो जिसके परिणामों को कौन नहीं जानता । श्री घलसासी ने कहा कि वर्तमान में हम कहां हैं और किस प्रकार हैं यह चिंतन करने की आवश्यकता है क्या हम सच्चे भारतीय हैं अथवा सिर्फ भारतीय होने का स्वांग रचाते हैं? क्या हम उन समस्त नियमों एवं परंपराओं का पालन करते हैं जो भारतीय परिवारों में होनी चाहिये? अनेक तर्कों एवं प्रमाणों को प्रस्तुत करते हुये इन्होने कहा कि दिन की शुरूआत अच्छी बातों के साथ होना चाहिये पृथ्वी,सूर्य एवं मां को प्रणाम एवं उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना चाहिये। वहीं रसोई घर के विषय में कहा कि यह भी मनुष्य बनाने वाली एक प्रयोगशाला है जिसमें पके हुये भोजन को हम ग्रहण कर शरीर को पुष्ट करते हैं। स्नानागार को हम सम्पूर्ण नदियों का आव्हान कर स्नान करने का स्थान पूर्व की तरह मानना चाहिये जिससे मन एवं शरीर दोनो स्वच्छ होते हैं। वर्तमान समय में परिवारों में बढ रही संवादहीनता तथा एकल परिवारों पर कटाक्ष करते हुये इन्होने कहा कि अब तो दीवार पर टंगे सास ससूर को पसंद करने वाली बहुंओं की संख्या बढ रही है जो निश्चित रूप से चिंतन का विषय है। इस समय लौकिक शिक्षा का आभाव होता जा रहा है इस दिशा में ध्यान देना आवश्यक है। श्री घलसासी ने कहा कि दूसरों से ज्यादा कठिन है स्वयं को पहचानना। एक परिवार का उल्लेख करते हुये इन्होने मां के द्वारा अपने बच्चे को अपना कार्य करने तथा जो भोजन सामने आ जाता है उसी में संतुष्टि करने का उदाहरण प्रस्तुत करते हुये कहा कि मां कहती है जो अपनी चादर भी ठीक से समेट नहीं सकता वह जीवन की चादर को कैसे समेट सकता है? इन्होने कहा कि अक्सर जिससे हम घृणा करते हैं ईश्वर कभी न कभी उस व्यक्ति या वस्तु को हमारे सामने लाकर रख देता है। श्री घलसासी ने वर्तमान समय में परिवार,समाज के बिषय में अपनी बात रखते हुये कहा कि साधनों से नहीं साधना से परिवार होते हैं ।  कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्यवक्ता  श्री घलघासी ,न्यासी सचिव बहादुर सिंह,अध्यक्ष विवेक शेण्डेय,श्री पित्रे ने मां वीणापाणी,भारत माता,डा.हेडगेवार एवं श्री गुरूजी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलन किया। सरस्वती वंदना आकाशवाणी दूरदर्शन कलाकार एवं संसकार भारती के प्रांत संह संगठन मंत्री नवोदित निगम के मार्गदर्शन में प्रस्तुत की गयी। अतिथियों की मान वंदना के पश्यात् कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सागर विश्वविश्वद्यालय के पूर्व डीन डा.कृष्ण सदाशिव पित्रे ने कहा कि संवादहीनता के चलते अनेक परिवार टूटने के कगार पर पहुंच रहे है। इन्होने भारतीय दर्शन एवं संस्कृति में हर समस्या का समाधान होना बतलाते हुये अनेक उदाहरण प्रस्तुत किये। कार्यक्रम का सफल संचालन पूर्व प्रार्चाय एन.आर.राठोर एवं आभार न्यास के सचिव बहादुर सिह ने व्यक्त किया।

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