दिल्ली की सियासत में मचेगी हलचल?

दिल्ली की राजनीति में बदलाव की चर्चाएं तेज हैं। कभी ये चर्चाएं परवान चढ़ने लगती हैं कि दिल्ली सरकार की कैबिनेट में बदलाव होगा और एक – दो मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाकर अन्य मंत्रियों के विभागों में भी फेरबदल होगा। तो अब इन बातों को बल मिलने लगा है कि प्रदेश कांग्रेस में भी फेरबदल होगा और पार्टी में युवाओं को तरजीह देकर नगर निगम चुनाव में मिली हार के जख्मों पर मरहम लगाया जाएगा। वैसे मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने अभी हाल ही में नियुक्त किए गए संसदीय सचिव को जो जिम्मेदारी सौंपी है , उससे इस बात की संभावना बनने लगी है कि सरकार और कांग्रेस पार्टी के बीच चल रहा तनाव बढ़ेगा और उसका परिणाम कुछ न कुछ गुल खिलाएगा।

राजनीतिक गलियारों में ये चर्चाएं नहीं थम रही हैं कि शीला दीक्षित अपने कैबिनेट में बदलाव करने जा रही हैं और वह पंजाबियों के वर्चस्व को कम कर जाट और बनिया समुदाय के विधायक को मंत्री बनाना चाहती हैं। दूसरी ओर इस बात की संभावना बनने लगी है कि आलाकमान प्रदेश कांग्रेस में कुछ बड़े बदलाव करना चाहता है। सूत्र बताते हैं कि प्रदेश कांग्रेस में युवा नेताओं को तरजीह देने की कवायद चल रही है ताकि राजधानी के यूथ वोटरों पर तो पॉजिटिव असर हो ही , एमसीडी चुनाव में मिली हार और पार्टी और सरकार के खिलाफ असंतोष को भी कम किया जा सके।

गौरतलब है कि जयप्रकाश अग्रवाल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में पांच साल पूरा करने वाले हैं। खास बात यह है कि अपने लंबे कार्यकाल के दौरान उन्होंने पार्टी में नए पदाधिकारियों को तो शामिल किया , लेकिन पिछले प्रदेश अध्यक्ष के कार्यकाल में बने पदाधिकारियों में से अधिक को हटाने की कोशिश नहीं की। संभावना है कि इन सीनियर नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाकर यूथ विंग को लाकर पार्टी का चेहरा ज्यादा ऊर्जावान दिखाया जाए। संभावना जताई जा रही है कि अग्रवाल को पार्टी केंद्र की राजनीति में खपाए और दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष भी किसी युवा को ही बना दिया जाए। गौरतलब है कि पार्टी में निगम चुनाव के बाद अध्यक्ष बदलने की अघोषित – सी परंपरा हो गई है। पिछले निगम चुनाव में भी हार के बाद तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष राम बाबू शर्मा को हटा दिया गया था।

वहीं सीएम शीला ने हाल ही में वरिष्ठ विधायक मुकेश शर्मा को अपना संसदीय सचिव बनाया है। मुकेश ने घोषणा की है कि वह हर रोज दो घंटे दिल्ली सचिवालय में बैठकर पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के दुखड़े सुनेंगे। माना जा रहा है कि उन्होंने यह घोषणा शीला की शह पर की है ताकि सचिवालय में सरकार के साथ एक समानांतर पार्टी दफतर भी खोल दिया जाए। यह जगजाहिर है कि मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के आपसी संबंध सामान्य नहीं हैं , इसलिए पार्टी और सरकार में टकराव बढ़ेगा जो किसी न किसी बदलाव की सूचना लेकर आएगा।

 

 

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