नारियल के छिलके, हेंडलूम कॉटन कला के रंग मेले में

mragnayni01mragnayni02नीमच। भगवान के मंदिर में नारियल चढ़ाने के बाद उसके छिलके का बेहतर उपयोग षील और रत्ना लष्करी से सीखना चाहिए। इसी प्रकार गैस पीड़ित महिलाओं के हाथों की कारिगरी कॉटन के कुर्ते एवं षर्ट में नजर आती है। दोनों षिल्पकार मृगनयनी से जुड़कर कर्मचारी से मालिक बन गए हैं और ग्राहकों के लिए उच्च गुणवत्ता की सामग्री देने के लिए प्रतिबद्ध हो गए हैं। यही कारण है कि टाउन हाल दषहरा मैदान में षिल्पकला के लिए नगर के कई कलाप्रेमी पहुॅंच रहे हैं।
जानकारी के अनुसार मृगनयनी एम्पोरियम मप्र षासन 26 जुलाई से 12 दिवसीय हस्तषिल्प एवं हाथकरघा विकास निगम प्रदर्षनी का आयोजन कर रहा है। षिल्पकारों एवं बुनकरों को प्रोत्साहन देने तथा नीमच नगर की कला प्रेमी जनता को षिल्प, हेंडलूम, पर्यावरण एवं षरीर की अनुकूलता वाले परिधान प्रदर्षन एवं विक्रय के लिए उपलबध कराए जा रहे हैं। मेले में प्रांत के अधिकांष भागों से आए लगभग 50 कलाकार अपनी सामग्री का प्रदर्षन कर रहे हैं। इन्हीं कलाकारों में इंदौर से आए कलाकार दम्पत्ति षील एवं रत्ना लष्करी के हाथों की बनाई सामग्री बेजोड़ है। दम्पत्ति पहले रोजगार की तलाष में भटकते रहे। कुछ दिन इन्होंने इंदौर के कारखानों में काम किया, लेकिन आखिर में मृगनयनी ने इन्हें आश्रय दिया और आज मृगनयनी से जुडकर न केवल लाभांवित हो रहे हैं वरन अपनी कला का विस्तार करके अन्य लोगों को रोजगार के लिए प्रेरित कर रहे हैं। दम्पत्ति भगवान के चढ़ने वाले नारियल के छिलकों के रेषे का उपयोग उपयोगी तथा सजावटी सामग्री बनाने के लिए करते हैं। लष्कर दम्पत्ति ने जब से अपने घर पर काम प्रारंभ किया उनका जीवन स्तर काफी बदल गया है। नारियल के छिलकों के रेषे से सजावटी चिड़िया के घोसले और उसमें चिड़िया के अंडे तथा चिड़िया का परिवार इतनी खूबसूरती से सजाते हैं कि अनायास यह घोसला जीवंत लगने लगता है। उनकी बनाई सामग्री पर्यावरण के अनुकूल होती है। इसलिए घर की सजावट के साथ ही वातावरण को सुकुन देती है। रत्ना अपने हाथों से सजावटी पेड, कलात्मक मोबाईल स्टेंड, फलावर पॉट व चमड़े के आकर्षक खिलोने बनाती है। यह सामग्री बाजार में कहीं भी उपलब्ध नहीं होती है। जिससे मेले में आने वाले लोग इसे हाथों-हाथ लेते हैं। कॉटन के कपड़ों का इन दिनों काफी चलन है। हर वर्ग और खासकर उच्च वर्ग तो कॉटन को काफी पसंद कर रहा है। मेले में भोपाल से आए षिल्पी षैलेंद्र सैन कॉटन के षर्ट और कुर्ते की जो रैंज है वह अदभुत है। इससे भी ज्यादा अदभुत कुर्ते, षर्ट बनाने की बात है। भोपाल का गैस कांड किसी से छिपा नहीं है और उस कांड का खामियाजा भुगत रही महिलाआंे को मृगनयनी के माध्यम से संबल देने का प्रयास निगम कर रहा है। ऐसी ही महिलाओं को रोजगार देने तथा उन्हें कला से जोड़ने का काम श्री सैन कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि कॉटन के कुर्ते और षर्ट बनाने के लिए वे फैक्ट्री का नहीं हेंडलूम के बने कपड़े का इस्तेमाल करते हैं। उनका मकसद है कि इससे सभी को रोजगार मिलता है और सामग्री की गुणवत्ता उच्च कोटी की होती है। श्री सैन ने बताया कि काटन के कुर्ते और षर्ट की जो श्रृंखला मेले में है वह बाजार में कही भी मिलना मुष्किल है। हेंडलूम से कपड़ा लेकर भोपाल स्थित वर्कषाप में काम करने वाली महिला षिल्पियों से षर्ट व कुर्ते बनवाते हैं। यह महिलाएं समूह बनाकर काम करती है जिससे अच्छे कुर्ते और षर्ट बनने के साथ ही उन्हें भी अच्छा पारिश्रमिक मिल जाता है। मेला प्रभारी श्री दिलीप सोनी ने बताया कि मेले में इस बार आए षिल्पकारों की संख्या ज्यादा है। इससे उनकी बनाई सामग्री भी खूब बिक रही है। मेला पूरी तरह से निःषुल्क है और सुबह 11 से रात्रि 9 बजे आम जनता के लिए खुला है।
Santosh Gangele

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