प्रेमशंकर धगट का नाम जिला चिकित्सालय के द्वार लिखा गया

प्रकाशित समाचार पर संबधितों ने मानी गलती,लिखा गया नाम
प्रदेश के वित्त मंत्री ने किया था,संबधित विभाग ने मानी गलती 

2 सितंम्बर 2014 की उदघाटन की फोटो
2 सितंम्बर 2014 की उदघाटन की फोटो

 

11 सितंम्बर 2014 की नाम परिवर्तन की फोटो
11 सितंम्बर 2014 की नाम परिवर्तन की फोटो

-डा. एल. एन. वैष्णव- दमोह / जिला चिकित्सालय के नवनिर्मित द्वार को लेकर पिछले कुछ दिनों से उपजे विवाद पर अंत:विराम उस समय लग गया जब द्वार के उपर प्रेमशंकर धगट के नाम को लिखवा दिया गया। विदित हो कि जिला चिकित्सालय के नवनिर्मित द्वार के नामकरण तथा स्वतंत्रत संग्राम सेनानी प्रेमशंकर धगट के नाम को विलोपित करने के प्रयास को लेकर उठा मुद्दा जहां गर्माता जा रहा था तो वहीं मंत्री,सांसद,जिला प्रशासन एवं संबधित विभाग की मंशा तथा कार्यप्रणाली पर प्रश्र चिन्ह अंकित होने की चर्चा इस समय नगर में जमकर व्याप्त हो रही थी ? इस नामकरण के पीछे की मंशा पर सवाल जहां जनमानस में होते सुने जा रहे हैं तो वहीं स्व.धगट के उनके भ्राता गोविन्द धगट एवं पौत्र अधिवक्ता अनिल धगट ने इस प्रक्रिया को नियम विरूद्ध बतलाते हुये कहा था कि यह पूर्वजों तथा देश के प्रति अपना सर्वस्व निछावर करने वालों को दरकिनार करने की एक सोची समझी साजिश नजर आती है। मामले को लेकर पूर्ण रूप से तैयार अनिल धगट के अनुसार मैने सात दिन का वक्त दिया है अगर वह सुधार नहीं करते न्यायालय में उक्त प्रकरण को चुनौती देने के लिये तैयार हूं। इनके अनुसार अगर किसी का नाम जोडा या विलोपित किया जाता है तो उसके लिये जिला पंचायत,नगर पलिका,निगम एवं जिला प्रशासन के द्वारा विधि अनुसार प्रस्ताव पारित कर शासन को भेजा जाता है। इसके पश्चात् ही नाम जोडने अथवा विलोपित करने का कार्य किया जाता है। ज्ञात हो कि दशकों से स्व.प्रेमशंकर धगट के नाम से संचालित जिला चिकित्सालय के मुख्य द्वार का नामकरण ङ्क्षसघई रघुवर प्रसाद के नाम से कर गत 2 अक्टूबर को प्रदेश के वित्त मंत्री श्री मलैया ने किया था।
खबर का हुआ असर-
जिला चिकित्सालय के नवनिर्मित द्वार को लेकर उपज रहे प्रश्र नामक शीर्षक तथा मुख्यमंत्री श्री शुक्ल ने प्रेमशंकर धगट के नाम से किया था चिकित्सालय, प्रदेश के वित्त मंत्री ने किया था लोकापर्ण मामला गर्माया उप शीर्षक से समाचार का प्रकाशन इस समाचार पत्र द्वारा किया गया था। जिसका असर मात्र कुछ ही दिनों में सामने आ गया तथा संबधित विभाग ने अपनी गलती को मानते हुये विवादित द्वार के सबसे उपर प्रेमशंकर धगट का नाम अंकित करवा दिया।
ज्ञापनों के साथ आपत्तियां हो रही-
उक्त प्रकरण को लेकर जहां विभिन्न प्रकार के प्रश्र उपज रहे थे तो वहीं दूसरी ओर विभिन्न प्रकार के सामाजिक संगठनों द्वारा आपत्तियों के साथ ही ज्ञापनों का सिलसिला जारी रहा था। वहीं दूसरी ओर लगातार प्रश्रों के उपजने तथा संबधित विभाग एवं मंत्री,जिला प्रशासन के संबधित विभागों की किरकिरी होने के कारण उन्होने इस विवाद को समाप्त करने की दिशा में प्रयास कर दिये ओर प्रेमशंकर धगट का नाम अंकित करवा दिया।
इन प्रश्नों के उपजने की थी चर्चा-
-कानून के जानकारों के अनुसार किसी शासकीय भवन का नामकरण अथवा विलोपित करने के पूर्व जिलापंचायत,नगरपालिका,नगर निगम से पारित प्रस्ताव को जिला प्रशासन शासन को भेजता है उसके पश्चात् शासन उसकी अनुमति देता है। क्या इसके लिये यह प्रक्रिया अपनायी गयी?क्या रोगी कल्याण समीति को इस प्रकार के अधिकार प्रदान किये गये हैं? अगर नहीं तो फिर मंत्री,सांसद तथा अधिकारी इस साजिश में सम्मिलित नहीं हैं? एक व्यक्ति को अचानक आठ बसंत देखने के बाद यह बात याद आती है कि उसके पिता मालगुजार थे? क्या मंत्री की नजदीकी का फायदा तथा एक समाज विशेष का होने का लाभ तो नहीं उठाया जा रहा है या दिया जा रहा है? ज्ञात हो कि जिनके नाम पर द्वार किया गया वह,उनके परिजन,मंत्री,सिविल सर्जन तथा निर्माण एजेंसी के अनुविभाग के यंत्री एक वर्ग के बतलाये जाते हैं? जिसको लेकर जनता में जमकर चर्चायें हो रही थी।

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