सैलेरी विवाद के चलतने पी-7 न्यूज चैनल बंद

p_7_news_783248486भारत के मीडिया इतिहास में यह अपने तरह की अनहोनी घटना थी। जिस दफ्तर से रोज देश दुनिया की खबरों से जनता को रुबरू करवाया जाता था, शुक्रवार को उसी दफ्तर से, उन्हीं उपकरणों के जरिए एक आखिरी ब्रेकिंग न्यूज जारी कर दी गयी। “सैलेरी विवाद के चलतने पी-7 न्यूज चैनल बंद।” जैसे ही यह ब्रेकिंग न्यूज टीवी स्क्रीन पर ब्रेक हुई हंगामा और अफरातफरी और अधिक बढ़ गयी। लाइव काटो। डीटीएच को फोन करो। टिकर हटाओ की अफरातफरी के बीच वह ब्रेकिंग न्यूज थोड़ी ही देर में स्क्रीन से तो गायब हो गया लेकिन गायब होते होते चैनल को भी गायब कर गया। पी-7 न्यूज चैनल अब पूर्णकालिक रूप से बंद हो चुका है।

चैनल के साथ क्या हुआ यह जानना जितना जरूरी है उतना ही यह जान लेना जरूरी है कि समाचार के कारोबार में उतरनेवाले व्यापारियों के साथ ऐसा क्यों होता है? अब तक कम से कम तीन चैनल तो ऐसे हैं ही जो कारोबार की मदद करने के लिए समाचार के कारोबार में उतरे थे, लेकिन ज्यादा देर तक टिक नहीं पाये। एस-1, वायस आफ इंडिया और अब पी-7 न्यूज। भले ही इन चैनलों ने भी पत्रकारिता करने का दावा किया हो लेकिन इन चैनलों को चालू करने का मकसद कहीं न कहीं कारोबार को मदद करना ही था। लेकिन इन्हें यह नहीं पता कि समाचार एक ऐसा कारोबार है जिसे सिर्फ और सिर्फ पत्रकार ही कर सकता है। जरूरी नहीं कि वह पेशेवर पत्रकार हो लेकिन पत्रकारिता और जनसरोकारों की संवेदनशीलता वह सामग्री है जो किसी मीडिया का मसाला तैयार करता है। पूंजी के बल पर मीडिया संस्थान को खड़ा तो किया जा सकता है लेकिन उसे बहुत देर तक खड़ा नहीं रखा जा सकता। पी-7 के साथ भी यही हुआ।

पूंजी के बल पर दल बल के साथ मीडिया के मैदान में उतरा पर्ल समूह के पास पैसे की कोई कमी न थी, न है। अगर कुछ नहीं है तो वह जज्बा जो रात रात भर किसी खबर के लिए जगाकर रखता है। इनके लिए भी मीडिया भी पीआर का खर्च करने का एक धंधा था, और बहुत शानौ शौकत के साथ वे इस धंधे में उतरे थे। लेकिन जल्द ही धंधे की चमक दमक में भीतरी राजनीति गरमाने लगी और इसी गरमाई हुई राजनीति में तेज तर्रार ज्योति नरायन को हटाकर ‘ठंड रख’ केसर सिंह को डायरेक्टर बना दिया गया। केसर सिंह चैनल की क्यारी को संवारने की बजाय बिगाड़ते चले गये और हालात ऐसे हो गये कि जिस समूह के पास एक लाख करोड़ कीमत वाली जमीन जायदाद हो वह कर्मचारियों को एक एक महीने की सैलेरी भी नहीं दे पा रहा था। जाहिर था, चैनल समूह के लिए सफेद हाथी साबित होने लगा था, जिसे बंद कर देने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था।

इसीलिए इस्तीफा दे चुके केसर सिंह को दोबारा चैनल में भेजा गया। वे आये और पर्ल समूह के भीतर प्रकाशन बंद करने के मास्टरमाइंड कहे जाने वाले उदय सहाय को भी अपने साथ लाये। संपादकीय प्रभारी बनाकर। शुक्रवार को भी दोनों साथ ही नोएडा दफ्तर पहुंचे थे। एक तीसरे निदेशक भी साथ थे, शरद दत्त और साथ में एचआर हेड  विधु शेखर भी। तीन महीने से सैलेरी के लिए तरस रहे चैनल के एक पत्रकारनुमा कर्मचारी को केबिन में बुलाकर सूचित किया गया कि अब रविवार से आने की जरूरत नहीं है। आप लोग घर जाएं तो फिर अब लौटकर यहां न आयें। केबिन से बाहर निकलते ही यह सूचना पूरे दफ्तर में जंगल के आग की तरफ फैल गयी। और फैल गया यह संदेश भी कि मालिकान चैनल बंद करके भाग रहे हैं। जाहिर है, इतनी जानकारी सामने आने पर चैनल में काम करनेवाले करीब साढ़े तीन सौ कर्मचारियों का उबल पड़ना अस्वाभिवक नहीं था।

तत्काल डिपुटी लेबर कमिश्नर शमीम अख्तर को फोन लगाया गया। नोएडा के लेबर कमिश्नर की कोर्ट में चैनल में काम करनेवाले कर्मचारियों का सैलेरी विवाद पहले से पेडिंग पड़ा था और शुक्रवार को ही सुनवाई पूरी करने के बाद लेबर कमिश्नर यूपी सिंह ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। डिपुटी लेबर कमिश्नर शाम होने के बावजूद पी-7 के दफ्तर पहुंच गये। इतने में स्थानीय सीओ अनूप सिन्हा को भी संपर्क किया गया और हालात को देखते हुए वे भी हाजिर हो गये। गहमा गहमी के माहौल में  कर्मचारियों और प्रबंधन के बीच बातचीत शुरू हुई। बात पुख्ता हो इसलिए सिटी मजिस्ट्रेट भी वहां पहुंच गये और चैनल में ताला बंद करके जा रहे निदेशक द्वय और वहां मौजूद कर्मचारियों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर कर लिये गये। समझौते के मुताबिक प्रबंधन तीन महीने की बकाया सैलेरी के साथ साथ तीन महीने की क्षतिपूर्ति देने के बाद ही अपने यहां के कर्मचारियों को विदा करेगा। जो समयसीमा तय हुई है उसके मुताबिक 15 दिसंबर तक कर्मचारियों की सभी बकारा सैलेरी दे दी जाएगी और 15 जनवरी तक क्षतिपूर्ति की आपूर्ति कर दी जाएगी।

तब तक क्या होगा? क्या ये कर्मचारी और पत्रकार चैनल के दफ्तर आते जाते रहेंगे। कर्मचारियों का कहना है कि वे आयेंगे जरूर लेकिन सिर्फ अपना पैसा लेने के लिए, जो अगले दो महीने में चरणबद्ध तरीके से उन्हें दिया जाना है। लेकिन चैनल का कामकाज अब ठप ही रहेगा। न तो प्रबंधन ही अब चैनल चलाकर रखना चाहता है और कर्मचारी तो पहले ही चैनल को ब्रेक करने की ब्रेकिंग न्यूज चला चुके हैं। फिर भी एक आखिरी सवाल तो बचता ही है जो चैनल मालिक और कर्मचारियों के हित से परे पत्रकारिता के हित से भी जुड़ता है। क्या मीडिया भी एक ऐसा धंधा है जिसमें पूंजी निवेशकर पूंजी निकाल ली जाती है? अगर बात सिर्फ इतनी होती तो ये चैनल इस तरह दुर्दशा के शिकार न होते। मीडिया का धंधा इससे कहीं अधिक संवेदनशील है और निवेशक से ज्यादा समझदारी की मांग करता है। अगर किसी के भीतर यह समझदारी नहीं है तो अच्छा हो कि वह इस धंधे से दूर ही रहे। नहीं तो उनका भी हश्र वही होगा जो पी-7 न्यूज का हुआ। एक आखिरी ब्रेकिंग न्यूज आयेगी और वह किसी और के बारे में नहीं बल्कि खुद उन्हीं के बारे में होगी। कुछ कुछ उसी तरह जैसे पी-7न्यूज के साथ हुआ।
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