सड़क विकास प्राधिकरण के महाप्रबंधक द्वारा आरटीआई का उड़ाया मखौल

जानकारी के नाम पर आवेदक को भेजे कोरे कागज
nhwiसिरोंज। सूचना के अधिकार की जानकारी देने में सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों द्वारा किस प्रकार की अनियमितताएं बरती जा रही हैं इसके अनेक उदाहरण सामने आ रहे हैं। ताजा मामला उस समय सामने आया जब आरटीआई कार्यकर्ता विनोद सेन द्वारा म0प्र0 ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण, परियोजना क्रियांवयन इकाई-2 कार्यालय विदिषा में एक जानकारी चाही गई थी, मांगी गई जानकारी में लोकसूचना अधिकारी एंव महाप्रबंधक जैसे जिम्मेदार पद पर बैठे अधिकारी द्वारा जिस प्रकार आवेदक को गुमराह किया गया है, उससे सूचना के अधिकार की जानकारी जैसे महत्वपूर्ण अधिकार का किस प्रकार मखौल उड़ाया गया है यह बात स्पष्ट हो गई है।
यह है मामला
आरटीआई कार्यकर्ता विनोद सेन द्वारा दिनांक 31/12/2014 को म0प्र0 ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण, परियोजना क्रियांवयन इकाई-2 कार्यालय विदिषा में सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी गई जिसे समय सीमा में न दिये जाने पर 4/2/2015 को प्रथम अपील उसी कार्यालय में की गई जिसके फलस्वरूप उन्हें नित नये-नये बहाने बनाकर गुमराह किया जाता रहा, और इस संबंध में एक अन्य आवेदन आवेदक द्वारा दिया गया जिसमें पूर्व में मांगी गई जानकारी न दिये जाने का उल्लेख किया गया, जिसकी पावती भी आवेदक के पास उपलब्ध है।
कोरे काग़जों में पहुंचाई गई जानकारी
उस समय महाप्रबंधक अजय दिवाकर नाम के अधिकारी का गैरजिम्मेदार रवैया सामने आया जब उन्होंने जानकारी देने के एवज में कोरे कागज़ आवेदक को डाक से पहुंचा दिये गये। इस प्रकार के गै़र जिम्मेदारी पूर्ण रवैये को लेकर कलेक्टर विदिषा से इसकी षिकायत की गई जिसके संबंध में कलेक्टर ने इस मामले में जांच का आष्वासन फिलहाल आवेदक को दिया है।
जानकारी न देने का पत्र ही पहंुचा दिया आवेदक को
महाप्रबंधक अजय दिवाकर द्वारा पहुंचाया गये पत्र में उस समय और भी अधिक आष्चर्य हुआ जब पत्र के विषय में यह दर्षाया गया कि आवेदक को जानकारी नहीं दी जा रही है, लेकिन आगे पत्र में यह भी बताया गया कि आवेदक को जानकारी भी दी जा रही है, एक ही पत्र में देा प्रकार की बात लिखने से यह बात समझ से परे हैं कि कौन सी बात को सही माना जाये, जानकारी देने वाली बात को या फिर जानकारी न देने वाली बात को।
पत्रों में सूचना के अधिकार के नियमों का हुआ खुला उल्लंधन
लोक सूचना अधिकारी/महाप्रबंधक द्वारा आवेदक के पत्रों को पड़ने से ऐसा प्रतीत होता है कि या तो उन्हें सूचना के अधिकार के नियमों की पूर्ण जानकारी नहीं है या फिर उनके द्वारा लिखवाये गये पत्रों को बिना पड़े ही उनके द्वारा हस्ताक्षर कर आवेदक को पत्र पहुंचा दिये गये अन्यथा बिना जानकारी का अवलोकन और प्रथम अपील के बाद भी राषि जमा करने जैसी बात न लिखी गई होती।
महाप्रबंधक के विरूद्ध कार्यवाही की अपील
आवेदक श्री सेन द्वारा कलेक्टर को दिये गये अपने आवेदन में स्पष्ट किया गया है कि उन्होंने प्रथम बार दिनांक 31/12/2014 को कार्यालय से जानकारी चाही गई थी, जिसकी प्रथम अपील दिनांक 4/2/2015 को की गई थी, उसके पष्चात् इस मामले में ध्यानार्षण के रूप में दिनांक 25/4/2015 को जानकारी देने के संबंध में आवेदन कार्यालय महाप्रबंधक को दिया गया। इस संबंध में आवेदक श्री सेन का कहना है कि जिम्मेदार अधिकारी द्वारा इस प्रकार का गै़र जिम्मेदाराना रवैया अपनाये जाने से वह बहुत आहत हुए हैं और कलेक्टर महोदय से अपने द्वारा लिखित षिकायत की गई है जिसमें महाप्रबंधक अजय दिवाकर के विरूद्ध नियमानुसार कार्यवाही की मांग की है।

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