नरोदा पाटिया दंगों के मामले में शुक्रवार को एक विशेष अदालत ने पूर्व मंत्री माया कोडनानी को कुल 28 वर्ष की कैद की सजा सुनाई है, जबकि बाबू बजरंगी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है.
बाकी दोषियों को 21 सालों की सजा दी गई है.
एक सरकारी वकील ने पत्रकारों से कहा कि अदालत ने दोषियों को मौत की सजा नहीं दिए जाने के कारण भी गिऩाए.
वकील के मुताबिक अदालत ने कहा, “घटना 2002 में हुई और फैसला 10 सालों के बाद आया है. पिछले 10 सालों में दोषी काफी कुछ भुगत चुके हैं.”
माया कोडनानी को दो धाराओं में सजा दी गई. एक धारा में उन्हें 10 साल जबकि दूसरी धारा में उन्हें 18 वर्ष की सजा दी गई.
साल 2002 में हुए इन दंगों में 97 मुसलमानों की मौत हो गई थी. इस घटना में 32 लोगों को दोषी पाया गया था.
अदालत ने घटना को लोकतंत्र पर काला धब्बा बताया.
मीडिया से बात करते हुए एक दूसरे वकील ने पत्रकारों को बताया कि अदालत ने माना है कि नरोदा पाटिया में बलात्कार की घटनाएँ हुईं.
वकील का कहना था, “अदालत ने बाबू बजरंगी को जब तक वो मरे नहीं तब तक की सजा दी है. अदालत ने मायाबेन को एक धारा में 18 साल और दूसरी धारा में 10 साल की सजा दी है. अदालत ने कहा है कि 10 साल की सजा खत्म होने के बाद ही उम्रकैद की सजा शुरू होगी. इस तरह से मायाबेन को 28 साल की सजा दी गई है.”
बलात्कार पर हर्जाना
वकील के मुताबिक एक महिला के साथ बलात्कार की घटना पर अदालत ने राज्य सरकार से कहा कि वो उस महिला को पाँच लाख रुपए हर्जाने की रकम दे.
गौरतलब है कि अदालत ने भाजपा विधायक और नरेन्द्र मोदी सरकार में पूर्व मंत्री माया कोडनानी और बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी को इस मामले में दोषी पाया था.
अदालत ने मामले में अभियुक्त बनाए गए 29 अन्य लोगों को बरी कर दिया है.
ये वाकया 28 फरवरी 2002 को गोधरा कांड के बाद हुआ था जब शहर के नरोदा पाटिया इलाके को घेर कर 97 लोगों की हत्या कर दी गई थी.
आरोप है कि इस भीड़ का नेतृत्व कोडनानी ने किया था और बाबू बजरंगी भी शामिल थे.
बाबूभाई बजरंजी जो बाबू बजरंगी के नाम से जाने जाते हैं, वे बजरंग दल के सदस्य थे. 2002 में नरोदा पाटिया दंगों के सिलसिले में बाबू बजरंगी अभियुक्त थे.
2007 में एक स्टिंग ऑपरेशन में बाबू बजरंगी ने कथित तौर पर माना था कि वे दंगों में शामिल थे. बाद में विश्व हिंदू परिषद में शामिल हो गए थे.
गुजरात दंगों के दौरान सबसे क्रूरतम घटनाओं में से एक इस दंगे में 33 लोग घायल भी हुए थे.
नरोदा पाटिया कांड का मुकदमा अगस्त 2009 में शुरू हुआ और 62 आरोपियों के खिलाफ आरोप दर्ज किए गए थे. सुनवाई के दौरान एक अभियुक्त विजय शेट्टी की मौत हो गई.
अदालत ने सुनवाई के दौरान 327 लोगों के बयान दर्ज किए. इनमें पत्रकार, कई पीड़ित, डॉक्टर, पुलिस अधिकारी और सरकारी अधिकारी शामिल थे.