झारखंड लोक सेवा आयोग में भर्ती प्रक्रिया में बड़ी धांधली की आशंका

jharkhand pscएक तरफ लगातार मौतों के बाद से जहां मध्य प्रदेश का व्यापम घोटाला सुर्खियों में बना हुआ है। वहीं झारखंड में भी कुछ ऐसा ही एक बड़ा भर्ती घोटाला उजागर हुआ है। माना जा रहा है कि इसका पूरी तरह खुलासा होने पर नेता, अफसर, पुलिस अधिकारी, प्रफेसर्स समेत कई बड़े लोगों के नाम सामने आ सकते हैं।

पिछले दिनों मई में झारखंड लोक सेवा आयोग ने राज्य सिविल सेवा की मुख्य परीक्षा का आयोजन कराया था। यह झारखंड लोक सेवा आयोग द्वारा पिछले 14 सालों में 5वीं बार आयोजित कराई गई परीक्षा थी। आयोग के लिए इस परीक्षा का आयोजन कराना इस बार बेहद मुश्किल भरा काम रहा क्योंकि पिछली चारों परीक्षाओं में खूब धांधली उभर कर सामने आईं। आयोग की विश्वसनीयता उस समय खतरे में पड़ी जब 2010 में इसके सदस्य गोपाल प्रसाद सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई।

राज्य के विजिलंस विभाग और पुलिस विभाग ने भी बाद में जांच में पाया कि ‘विशेष’ परीक्षार्थियों को नौकरी दिलाने के इस पूरे खेल में आयोग के टॉप अफसरों समेत तत्कालीन सचिव और अध्यक्ष भी शामिल रहे हैं।

रांची निवासी आरजेडी स्टूडेंट यूनियन के नेता मनोज कुमार आयोग द्वारा आयोजित कराई गई तीसरी सिविल सेवा परीक्षा में बैठे थे। उनका कहना है, ‘जिन कैंडीडेट्स ने अपनी मेहनत से प्रीलिम्स परीक्षा क्लियर की उन्हें उन ‘विशेष’ अभ्यर्थियों के मुकाबले पीछे कर दिया गया। आयोग के अधिकारियों और बाबुओं की सांठ-गांठ से ऐसे लोगों को तमाम सरकारी विभागों, यूनिवर्सिटी, सहकारी संगठनों में नौकरी दिलाई गई।’

मामले ने उस समय राजनीतिक रंग ले लिया जब एजेएसयू पार्टी चीफ सुदेश महतो के बेटे मुकेश महतो, बीजेपी नेता राधा कृष्ण किशोर के भाई राधा प्रेम किशोर और 2010 में गिरफ्तार हुए गोपाल सिंह के बेटों कुंदन व रजनीश का नाम उजागर हुआ।

मनोज के मुताबिक पिछली चारों परीक्षाओं में अधिकारियों की मिलीभगत से जमकर धांधली हुई। उनके मुताबिक प्रीलिम्स परीक्षा में उन्हीं छात्रों को पास किया गया जिनकी आयोग में अच्छी पहुंच थी।

इस मामले में याचिकाकर्ता बुधदेव ओरांव के वकील राजीव कुमार का कहना है कि यह मामला असल में एक बहुत बड़ा घोटाला है जिसमें राज्य के कई बड़े नाम शामिल हैं। उन्होंने कहा, ‘झारखंड के लोक सेवा आयोग में हुई धांधली व्यापम घोटाले से कहीं ज्यादा व्यापक है। इसके तहत कई लोगों को गलत तरीकों से अलग-अलग विभागों में नौकरी के लिए चुना गया। इस मामले में जिन 19 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी वे सभी फिलहाल इस समय जमानत पर बाहर घूम रहे हैं।’

मनोज कुमार ने 2010 में मुख्य परीक्षा क्लियर करने के बाद इंटरव्यू दिया लेकिन उसमें अयोग्य घोषित कर दिया गया। मनोज जैसे कई कैंडीडेट्स ऐसे हैं जो अब न्याय के लिए लड़ रहे हैं। हालांकि इस मामले पर झारखंड लोक सेवा आयोग के परीक्षा नियंत्रक विवेक नारायण ने कहा, ‘मैं फिलहाल आयोग में नया आया हूं और ऐसी किसी भी गड़बड़ी के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है।

वहीं इन गड़बड़ियों के बारे में बीजेपी की राज्य इकाई के उपाध्यक्ष राकेश प्रसाद ने कहा, ‘मामला फिलहाल कोर्ट में है और इस पर किसी भी तरह की टिप्पणी करना उचित नहीं होगा। जो भी दोषी होगा उसके खिलाफ कानून के हिसाब से कार्रवाई की जाएगी भले ही वह किसी भी पार्टी का हो।’

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