भोजपुरी के लिए किए झूठे वादों के लिए मशहूर बिहार सरकार

aaबिहार से प्रकाशित होने वाले एक दैनिक समाचार पत्र में खबर छपी थी, जिसमें बिहार के नए युवा एवम् कला संस्कृति मंत्री का बयान आया था की अब बिहार में ही सेंसर बोर्ड का गठन किया जाएगा, जिससे की फिल्मों के सेंसर के लिए बिहार के फिल्म #निर्माताओं, #निर्देशकों को मुम्बई और कोलकाता नहीं जाना पड़ेगा ।
इसी मुद्दे पर भोजपुरी फिल्म जगत के मशहूर जन_संपर्क_अधिकारी संजय_भूषण_पटियाला का कहना है की यही #नितीश_सरकार पिछले दस सालों से बिहार में शासन कर रही है प्रारूप वही है सिर्फ परिवेश बदल गया है, क्योंकि तब नितीश कुमार भाजपा के साथ थे और आज लालू यादव के साथ । और सबसे बड़ी बात तो ये है की पिछले कार्यकाल तक तो भोजपुरी फिल्म जगत से ही रिश्ता रखने वाले #विनय_बिहारी ही युवा कला और संस्कृति मंत्री थे तब भी भोजपुरी फिल्मों को लेकर कोई रचनात्मक कार्य नहीं हुआ , और ना ही किसी ने कोई ठोस पहल ही हुयी । यहाँ तक की राजनीति से गहराई तक सम्बन्ध रखने वाले #शत्रुघ्न_सिन्हा, #कुणाल_सिंह, #मनोज_तिवारी, #रवि_किशन, #भरत_शर्मा जैसे कई लोगों ने सिर्फ अपने मतलब की रोटियाँ ही राजनीति के तवे पर सेंकी है । इनमे सभी लोगों की ऊँची रसूख वालों से जान पहचान और अच्छी राजनितिक पकड़ है , इसके बावज़ूद किसी ने भी आज तक कोई सार्थक प्रयास दिल से नहीं किया और जो कुछ थोडा बहुत बेमन से किया भी तो वे प्रयास भी निरर्थक साबित हुए हैं । यहाँ तक की सबलोग मिलकर आजतक #अपनी_मातृभाषा_भोजपुरी को #संविधान_की_आठवीं_अनुसूची में शामिल तो करा नहीं पाए और आज वही लोग सरकारी नुमाइंदा बनकर प्रदेश में सेंसर बोर्ड के गठन के वादे कर रहे हैं ।
#दिल्ली से #भाजपा के सांसद #मनोज_तिवारी जो की #भोजपुरी_फिल्मों के #महानायक कहे जाते हैं उन्ही की पार्टी की केंद्र में भाजपा की सरकार भी है और भोजपुरिया क्षेत्र से #चौवन_54 #सांसद लगभग भाजपा के ही होने के बावज़ूद आज #भोजपुरी को उपेक्षित नज़रों से देखा जाता है । अगर #मनोज_तिवारी ने वाकई दिल से लगाकर यह बात #प्रधानमंत्री से कहा होता तो शायद मोदी जी की #भाषणों के #शुरूआती_अंश बनकर #उपेक्षित रहने वाली भोजपुरी आज इतनी बेइज्जत अपने क्षेत्र में ही नहीं होती और अपने अस्मिता की लड़ाई नहीं लड़ रही होती । लेकिन मनोज तिवारी जैसे लोगों ने भी इस भोजपुरी को सिर्फ स्वार्थ सिद्धि का जरिया बना रखा है । जिन्हें भोजपुरी के मान सम्मान से कोई लेना देना नहीं है सिर्फ कोरे कागज़ी वादे करके उनपर सुर्खियाँ और तालियाँ बटोरना और उसी की रोटी खाना ही उनका कर्तव्य बन कर रह गया है । वरना प्रधानमंत्री के बिहार भ्रमण में उनके भाषणों के शुरुआत में बोली गयी शिष्टाचारपरक भोजपुरी आज संविधान की आठवीं अनुसूची में कब की शामिल हो चुकी होती । यहाँ तक की उत्तर प्रदेश में भी अखिलेश यादव की सरकार ने सिर्फ अनुदान की घोषणा करके छोड़ दिया है , अब तक सैकड़ों फिल्मों की फाईलें सरकार की उस समिति के पास पड़ी पड़ी धूल फाँक रही है पर आजतक किसी को भी कोई फिल्म सब्सीडी नहीं मिल पाई है । कहीं ऐसा ना हो की बिहार सरकार के युवा संस्कृति मंत्री शिवचंद्र राम का यह बयान भी एक जुमला बनकर रह जाए ।
अगर सरकार वाकई इस कदम को लेकर गंभीर और प्रतिबद्ध है तो इसके लिए एक समयसीमा तय हो, और इसके लिए कार्यरत और जवाबदेह लोगों की एक सूची तैयार की जाए , जिससे समय समय पर इससे सम्बंधित प्रगति की जानकारी सबको मिलती रहे , क्योंकि अबतक की पिछली सरकारों ने जनता को सिर्फ सरकारी वादे और दावे के नाम पर सिर्फ छला ही है ।

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