किसान पुत्र सलीम ने किसान के दर्द को संसद में किया बयाँ

अफ्रीकी देशों में दलहन की खेती का मसौदा तैयार कर रही मोदी सरकार को सलीम की फटकार

चौधरी मुनव्वर सलीम
चौधरी मुनव्वर सलीम
कृषि प्रधान देश की उपजाऊ ज़मीन को छोड़ स्वदेशी का नारा देनी वाली मोदी हुकूमत अफ्रीकी देशों में दाल की खेती करने की तैयारी कर रही है सूत्रों की माने तो इस संदर्भ में कृषि व वाणिज्य मंत्रालय और सरकारी कंपनी एमएमटीसी के उच्चाधिकारी अफ्रीकी देश मोजांबिक का दौरा भी कर चुके हैं मोदी हुकूमत ने यह कदम उस समय उठाने की जुर्रत की है जब भारतीय किसान खेती से परेशान हो कर आत्महत्याएं करने पर मजबूर हैं ऐसे में मोदी हुकूमत का यह क़दम किसान विरोधी नज़र आता है जिसकी गंभीरता को भांपते हुए दिनांक 19 जुलाई 2016 को हंगमेदार सत्र में किसानों के हित में लगातार संसद में गरजने वाले सपा सांसद चौ मुनव्वर सलीम ने एक बार फिर दलहन की खेती करने वाले किसानों के हक़ में अपनी आवाज़ बुलंद की है |
वर्ष 1980 में जब सर ज़मीन ए विदिशा पर किसान नेता और भारत के प्रधानमंत्री रह चुके स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह ने जैन कालेज परीसर में हो रही एक ऐतिहासिक जनसभा का संचालन एक नौउम्र को करते हुए देखा और उस नौजवान के सीने में धधकती हुयी क्रांति की ज्वाला को महसूस किया तब मंच से उतरने के बाद पूरी केंद्रीय और प्रादेशिक लीडरशिप को पीछे छोड़ चौधरी चरण सिंह ने इस नौजवान को बुलाया और गाल पर ममतामय हाथ फेरते हुए उसके संचालन की तारीफ करते हुए उसकी हौसला अफ़ज़ाई के लिए उसको अपनी एम्बेस्डर कार में बैठाया तब किसी ने भी यह नहीं सोचा होगा कि एक दिन यही नौजवान चौधरी मुनव्वर सलीम के रूप में संसद में चौधरी चरण सिंह के भांती ही किसानों के दर्द को अपने सीने में महसूस करते हुए उसे बयान करेगा !
सलीम ने दिनांक 19 जुलाई 2016 को उपेक्षा का शिकार होते किसानों के दर्द से खुद को जोड़ते हुए न सिर्फ़ दलहन के घटते रकबे पर सदन का ध्यान आकर्षित किया बल्कि सदन और केंद्र सरकार को अपने तथ्यात्मक भाषण से यह भी समझाने की कोशिश की है कि जब सरकार ही विदेशों की धरती पर जाकर दाल की खेती करेगी तब आत्हत्या से दोस्ती करते किसान पर दोगुनी मार पड़ेगी यानी कि जो बचे हुए दलहन किसान हैं वो आसमानी ज़ुल्म का शिकार तो हो ही रहें हैं कभी क़ुदरत उन्हें सूखे से तो कभी अतिवर्षा से तो कभी ओलावृष्टि से परेशान कर रही है और उसके बाद साहूकार तथा सरकारी बैंकें उन्हें तंग कर रही है ऐसे में अगर सरकार विदेश से दाल पैदा कर के हिन्दुस्तान में बेचेगी तो उनके मुँह से रोटी भी छीन जाएगी |
ऐसे हालत का पूर्व आभास करते हुए सलीम ने दलहन खेती से भारतीय किसानों का मोह भंग होने को चिंतनीय क़रार देते हुए और भारत की धरती माँ की विशेषता को बताते हुए स्वर्गीय महेंद्र कपूर द्वारा गाए हुए नग़मे ” मेरे देश की धरती सोना उगले,उगले हीरे मोती “को अपने भाषण का हिस्सा भी बनाया तथा किसानों के दलहन की खेती के प्रति होते इस मोह भंग को महंगाई का मुख्य कारण बताते हुए इसे सीधा माध्यम वर्गीय परिवारों और गरीब नागरिकों से जुड़ा हुआ क़रार दिया |
जब मुल्क में बुलेट ट्रैन को लाने की तैयारी हो रही है और मेक इन इण्डिया का नारा पूरे ज़ोर शोर से बुलंद किया जा रहा तब सलीम ने सदन सहित पूरे मुल्क के सामने ऐसे चौंकाने वाले आंकड़े पेश किये हैं जो कृषी प्रधान देश पर 45 वर्षों से हुकूमत करने वाली सरकारों की कार्यपद्धती पर एक बड़ा सवालिया निशान लगा रहें हैं यानी कि पिछले 45 वर्षों में केवल 22 लाख हेक्टेयर रकबा दलहन खेती का बड़ा है यानी वर्ष 1970 -71 में जो दलहन खेती का रकबा 2 करोड़ 25 लाख हेक्टेयर रकबा था वह तेज़ी से बढ़ती आबादी के साथ वर्ष 2014 -15 में केवल 2 करोड़ 47 लाख हेक्टेयर रकबा आंका गया है |
मैं अपने पाठकों को और विशेष रूप से किसानों को शब्द-शब्द उस भाषण का पढ़ाना चाहता हूँ जिसमे उनका दर्द भी शामिल है और मोदी सरकार को नसिाहत भी है इस भाषण को मौजूदा नस्ल ज़रूर पढ़े तो अंदाज़ा हो जाएगा कि चौधरी चरण सिंह तो अब इस दुनियाँ में नहीं है लेकिन उनके जज़्बातों को आज भी एक सांसद भारतीय संसद में बयान करने का हौसला और जज़्बा रखता है पेश है सपा सांसद चौधरी मुनव्वर सलीम का वह जज़्बाती भाषण जो उन्होंने दिनांक 19 जुलाई 2016 को संसद में दिया है —
माननीय सभापति महोदय,
भारत के किसानों का दलहन की खेती से मोहभंग होना मध्यमवर्गीय और गरीब नागरिकों के चूल्हे से सीधा संबंध रखता है | वर्ष 1970-71 में दलहन की कुल खेती 2.25 करोड़ हेक्टेयर में की जाती थी। वर्ष 2014-15 में वह 2.47 करोड़ हेक्टेयर पर अटकी हुई है। पिछले तीन-चार दशक में जहां आबादी बढ़ने से दालों की मांग बढ़ी है तो घरेलू पैदावार में उसके अनुरूप में वृद्धि न होना एक चुनौती है। इस दौरान उत्तर प्रदेश में दो से ढाई लाख हेक्टेयर, हरियाणा में दस लाख हेक्टेयर, पंजाब में चार लाख हेक्टेयर, बिहार में तीन लाख हेक्टेयर, पश्चिम बंगाल में चार लाख हेक्टेयर, राजस्थान में दो लाख हेक्टेयर और हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर में लगभग 50 हजार हेक्टेयर दलहन रकबा घटा है ।
विशेष रूप से उत्तरी भारत की भूमि से दलहन खेती का लगभग समाप्त हो जाना केंद्र सरकार का किसानों के प्रति संवेदनहीन और लापरवाही का सबूत है | दलहन खेती की समाप्ती के पीछे मूल कारण खाद-बीज का महंगा होना और जंगली जानवरों के ज़रिये किये गया उजाड़ तथा किसान और साहूकार के बीच कोई मूल्यांकन तथा कीमत का निर्धारण नहीं होना है |
मेरी जानकारी के अनुसार भारत की राष्ट्रप्रेमी सरकार अफ्रीकी देशों की धरती पर दलहन की खेती करने जा रही है,सरकार का यह क़दम देश के बिलखते और समस्याओं से जूझते किसानों के साथ मज़ाक है ?
मैं हिन्दुस्तानी किसान के उस दर्द में शामिल होना चाहता हूँ जो महेंद्र कपूर ने अपनी आवाज़ में यूं बयाँ करा है “मेरे देश की धरती सोना उगले,उगले हीरे मोती ” मैं कृषि प्रधान देश के किसान की कसक से खुद को जोड़ते हुए मांग करता हूँ कि सरकार उप्र सहित तमाम उत्तरी राज्यों की दलहन खेती को लागत के अनुसार मूल्य देकर तथा विशेष सहयोग से पुनः स्थापित करे और केंद्र सरकार अफ्रीकी देशों में खेती करने का जो अनुबंध कर रही है उसके बजाये वह दलहन खेती हेतु देश के किसानों को सुविधा मुहैया कराये !

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