प्रदेश में चिकित्सालय बीमार, भगवान भरोसे नागरिक

चिकित्सकों की भारी कमी से गहराता संकट

bhopalडा.एल.एन.वैष्णव
भोपाल/भले ही प्रदेश सरकार राज्य के प्रत्येक नागरिक को बेहतर से बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ दिलाने के लिये करोडों रूपयों का भारी भरकम बजट उपलब्ध करा रही हों ? विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से केन्द्र एवं राज्य सरकार किसी भी प्रकार की धन की कमी न रख रही हो परन्तु प्रधान सेवक नरेन्द्र मोदी और शिवराज सिंह पुजारी की भगवान राज्य की जनता को स्वास्थ्य सेवाओं का कितना लाभ मिल पा रहा है यह प्रश्न आये दिन प्रदेश से कहीं न कहीं से सेवाओं में कमी को लेकर सामने आते ही रहते हैं?स्वास्थ्य सेवाओं की लचरता का इससे बडा उदाहरण क्या हो सकता है कि प्रदेश के एक कद्ावर मंत्री जयंत कुमार मलैया के गृह नगर में वहां पदस्थ कलेक्ट्रर की मां को एम्बूलेंस भी नसीब नहीं हो पाती और वह असमय काल का ग्रास बन जाती है। ज्ञात हो कि दमोह में गत कुछ माह पूर्व कलेक्ट्रर डा.श्रीनिवास शर्मा का देहांत स्वास्थ्य सेवायें समय पर नहीं मिल पाने के चलते उनकी माता का निधन हो गया था। विभागीय सूत्रों की माने तो यहां पर प्रथम श्रेणी चिकित्सकों के 62 पद स्वीकृत हैं और 22 कार्यरत हैं। जबकि द्वितीय श्रेणी चिकित्सकों के 79 पद स्वीकृत हैं और 36 कार्यरत हैं। जानकार बतलाते हैं कि प्रति एक हजार पर एक चिकित्सक होना चाहिये परन्तु वर्तमान स्थिति को देखें तो प्रति 10 हजार पर 01 चिकित्सक है। देखा जाये तो प्रदेश में स्वास्थ्य सेवायें लचर बनी हुई हैं और विभाग में दीमक के रूप में चर्चितों के द्वारा हर योजना और उसके लिये आवंटित धन को चट कैसे करना है बाखूबी आता है। विभागीय सूत्रों की माने तो आपको आश्चर्य होगा कि वर्ष 2003-04 में राज्य का कुल जितना बजट था लगभग उसके समकक्ष यानि 26,761 करोड़ रुपए प्रदेश सरकार ने गत 10 साल में स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च किए हैं। इतनी अधिक रकम खर्च होने पर भी राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं का स्वयं बीमार होना किसी आश्चर्य से कम तो नहीं है? चिकित्सकों की भारी मात्रा में कमी है सूत्रों की माने तो लगभग 60 प्रतिशत की कमी प्रदेश में चिकित्सको की है।
चिकित्सकों की भारी कमी-
प्राप्त जानकारी के अनुसार मध्यप्रदेश में रोगों के विशेषज्ञों की भारी कमी बतलायी जाती है। विभाग के ही सूत्रों की माने तो राज्य में जनरल मेडिसिन 611, गायनकोलॉजी 594,एनेस्थीसिया 308,पीडियाट्रिक्स 484,नेत्र विज्ञान 112,अस्थि रोग 162,ईएनटी 81,रेडियोलॉजी 93,पैथोलॉजी 120,सर्जरी 528,टीबी 51 एवं डेंटिंस्ट 51 यनि कुल 3195 पद स्वीकृत हैं जबकि इसके एवज में 1210 विशेषज्ञ कार्य कर रहे हैं। देखा जाये तो 1063 रोग विशेषज्ञो की कमी प्रदेश के चिकित्सालयों में बनी हुई है।
जूझते चिकित्सालय-
राज्य के बडे चिकित्सालय भी चिकित्सकों की भारी कमी से जूझ रहे हैं। सूत्रों की माने तो मरीजों की चिकित्सा सामान्य चिकित्सकों के हवाले है यहां रोग विशेषज्ञों की सामान्य चिकित्सक सेवायें दे रहे हैं। बतलाया जाता है कि राज्य में 3195 विशेषज्ञों की आवश्यकता है जबकि 1210 वर्तमान में कार्य कर रहे हैं। वहीं मेडीकल ऑफीसरों के स्वीकृत 3859 पदों की जगह 2989 सेवायें दे रहे है। चिकित्सकों की भारी कमी के चलते अनेक महत्वपूर्ण शल्य क्रियाओं अर्थात् आपरेशनों को टालना पडता है जिसके चलते एक बडी समस्या बन जाती है। समय पर राज्य के जरूरत मंद नागरिकों को चिकित्सा सुविधा का लाभ नहीं मिल पाता है। संबधित विभाग की रिपोर्ट पर नजर डालें तो राज्य के 334 सामूदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में 07 जगहों पर को देने वाले विशेषज्ञ कार्यरत है। प्रदेश में 308 एनिस्थिसिया विशेषज्ञों के पद स्वीकृत बतलाये जाते हैं। ज्ञात हो कि शल्य क्रिया के दौरान इनकी अति आवश्कता होती है। चिकित्सा से जुडे जानकारों की माने तो नियमों के अनुसार सी-सेक्शन के दौरान स्त्री रोग विशेषज्ञ, शिशु रोग विशेषज्ञ और एनिस्थिसिया विशेषज्ञ होना अति आवश्यक होता है।
भगवान भरोसे शिव के भगवान-
राज्य के चिकित्सालयों की स्थिति दयनीय बनी हुई है और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की भगवान रूपी जनता भगवान भरोसे नजर आ रही है। मामले को स्वयं नजदीक से मुख्य मंत्री श्री चौहान अचानक दौरे के दौरान देख चुके हैं प्रदेश की राजधानी का हमीदिया अस्पताल की बात करें या फिर अन्य शासकीय चिकित्सालयों की सभी की स्थिति दयनीय बनी हुई है। आपातकालीन सुविधाओं का भी अभाव कई जगहों पर देखा जा सकता है। प्रदेश के वित्त मंत्री श्री मलैया के गृह नगर का हाल से हम आपको अवगत करा ही चुके हैं। राज्य के कुछ जिलों पर भी नजर डालें तो है। रीवा के संजय गांधी अस्पताल में नवंबर महीने में 340 बच्चों का जन्म हुआ। अस्पताल के रिकॉर्ड के मुताबिक, इनमें से 106 बच्चों की मौत हो गई। अस्पताल के लेबर रूम में इन्वर्टर की सुविधा तक नहीं है। बालाघाट जिले में प्रसूति के लिए डॉक्टरों के 11 पद स्वीकृत हैं, लेकिन सिर्फ दो ही डॉक्टरों के भरोसे पूरा विभाग चल रहा है। सूत्रों की माने तो सात से आठ हजार डिलीवरी केस प्रति बर्ष आते हैं। बात करें दतिया की तो मेडिकल कॉलेज प्रारंभ करने की तैयारियां जोरों पर है। जिले में 30 में से 13 विशेषज्ञ डॉक्टरों के पद खाली हैं। प्रदेश के मंडला जिला चिकित्सालय का ब्लड बैंक 13 साल से बिना लाइसेंस के चल रहा है। सूत्रों की माने तो अप्रैल 2015 में जब रिन्युअल की अर्जी पर इंस्पैक्शन हुआ, 21 कमियां मिलीं। न कमियां दूर हुईं न नया लाइसेंस मिला। ब्लड बैंक है कि अभी भी चल रहा है। ज्ञात हो कि अस्पताल को मिला तो आईएसओ सर्टिफिकेट मिला है। वहीं जिला नीमच के लोगों को तो यह याद ही नहीं है कि जिला अस्पताल के नेत्र चिकित्सा वार्ड का ताला आखिरी बार कब खुला था। अस्पताल के इस वार्ड को स्टोर रूम बना दिया गया है।

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