‘अब अन्ना’ नहीं ‘आम आदमी’ बने केजरीवाल

अरविंद केजरीवाल के ईमानदारी की कसमों और ‘ मैं हूँ आम आदमी’ के नारे के साथ दिल्ली में चुनावी राजनीति के मैदान में कदम रखा.

मांगे वहीं हैं, उद्देश्य भी वहीं हैं लेकिन अन्ना हज़ारे उनकी पार्टी से खुद को दूर कर लेने के निर्णय की छाया इस आयोजन पर साफ़ देखी जा सकती है. उनके पिछले आयोजनों के मुकाबले इस मौके पर जनता की मौजूदगी बहुत ही कम है.

इस मौके पर उनके द्वारा जारी किए नीति पत्र में वो तमाम बातें हैं जिनके लिए पूर्व में अरविंद केजरीवाल और अन्ना हजारे मंच से मांग करते रहे हैं.

महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जयंती के दिन अपने आंदोलन को केजरीवाल राजनीतिक पार्टी के अवतार में लाए हैं.

हालाँकि मंगलवार को केजरीवाल ने पार्टी बनाने की घोषणा कर दी है लेकिन उन्होंने पार्टी का नाम अभी घोषित नहीं किया है.

सोमवार को ही केजरीवाल ने अन्ना हजारे से भी मुलाकात की थी और अन्ना ने कहा था कि उन्‍हें केजरीवाल के पार्टी बनाने पर ऐतराज नहीं है.

अन्ना हजारे से अलगाव

हालांकि इससे पहले अन्ना हजारे जनलोकपाल के लिए चल रहे आंदोलन के राजनीतिक अखाड़े में कूदने संबंधी फैसले पर नाखुश थे और साफतौर पर कह चुके थे कि इसमें उनके नाम का किसी तरह का उपयोग न किया जाए.

मंगलवार को अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगी राजनीतिक पार्टी के दृष्टिकोण, विधान और सदस्यों तथा उम्मीदवारों के चयन के बारे में भी बताएंगे.

राजनीतिक पार्टी को लेकर अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल के बीच मतभेद की खबरें काफी दिनों से चल रही हैं और ये अक्सर सामने भी आते रहे हैं.

अन्ना का कहना था कि अरविंद और उनके रास्ते भले ही अलग हों, किंतु मंजिल एक है. उनका कहना था कि वो चुनाव लड़ने के बजाय आंदोलन के जरिए अपनी लड़ाई जारी रखेंगे.

उधर, केजरीवाल का कहना है कि वे सत्ता पर काबिज होने के लिए राजनीति में नहीं जा रहे हैं बल्कि राजनीति भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को मजबूत करने का उनका एक और प्रयास है.

चुनाव और सवाल

कहा ये भी जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक पार्टी सबसे पहले अगले साल होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनावों में किस्मत आजमा सकती है.

देखने वाली बात होगी कि अरविंद केजरीवाल की राजनीति में नई भूमिका कितनी सफल होती है.

जानकारों का कहना है कि इस तरह से भावनाओं में बहकर बनी पार्टियों का राजनीतिक भविष्य तो बहुत अच्छा नहीं रहा है क्योंकि इससे पहले भी कई लोगों ने राजनीतिक दलों के जरिए अपनी किस्मत आजमाई है.

इनमें चाहे पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त रहे टीएन शेषन हों या फिर अपनी राजनीतिक पार्टियों से मोहभंग होने के बाद खुद की पार्टी बनाने वाली उमा भारती और कल्याण सिंह जैसे कद्दावर नेता.

पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह का जनमोर्चा सफल रहा था और लेकिन जनता दल के रूप में केंद्र में सरकार बनाने के बाद ये काफ़ी जल्दी बिखर गया था.

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