लखनऊ में बसपा कार्यकारिणी की बैठक खत्म होने के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने यूपीए से समर्थन वापस लेने के मामले पर संशय अभी बरकरार रखा है। हालांकि उन्होंने कहा कि आज पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में यूपीए सरकार के अनेक जनविरोधी कदमों पर चर्चा हुई। मायावती ने कहा कि यूपीए सरकार और बसपा के बीच किस तरह के संबंध रहेंगे, यह सिर्फ वही उचित समय पर तय करेंगी। यह कहते हुए उन्होंने फिलहाल यूपीए को समर्थन बरकरार रखने के संकेत दिए। मायावती ने मनमोहन सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि कांग्रेस की ये सरकार भ्रष्टाचार में पूर्ण रूप से लिप्त है, इसलिए देश व पार्टी हित में उन्हें खुद सही मौके पर अंतिम निर्णय लेना होगा।
माया के इस फैसले पर सोनिया गांधी ने राहत की सांस ली है। इससे पहले मायावती ने मंगलवार को अपनी महारैली में यूपीए सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि बुधवार की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में बसपा संप्रग सरकार अपना समर्थन देने पर दोबारा विचार करेगी। वहीं, कांग्रेस इस मामले में पूरी तरह से आश्वस्त है कि मायावती ऐसा कुछ भी नहीं करेंगी। कांग्रेस के प्रबंधकों को भरोसा है कि मायावती अभी संप्रग सरकार से समर्थन वापस नहीं लेंगी। हालांकि उनके भरोसे को पीछे दो आधार हैं। पहला यह कि मायावती अभी लोकसभा चुनाव नहीं होने देना चाहतीं। क्योंकि वह अभी चुनाव के लिए तैयार नहीं हैं, इसलिए वह कांग्रेस के साथ कोई रस्सा कस्सी नहीं चाहती है।
हालांकि मंगलवार को मायावती की महारैली में एफडीआइ के मुद्दे पर बसपा का रुख नरम दिखा। उन्होंने एफडीआई का न तो समर्थन किया न ही विरोध किया। उन्होंने उत्तर प्रदेश को ‘क्राइम प्रदेश’ व अखिलेश यादव को ‘घोषणा मुख्यमंत्री’ करार दिया। इसके अलावा मायावती के भविष्य में एफडीआइ के समर्थन के फैसले को भी संप्रग एक सियासी खिड़की के रूप में देख रहा है।
उसका मानना है कि मायावती ने एफडीआइ को गरीबों के लिए फायदेमंद होने पर समर्थन का बयान देकर अपने लिए एक विकल्प खोल रखा है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता और केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद ने कहा भी कि ‘जिस तरह से मायावती हमें समर्थन दे रही थीं, आगे भी उसके जारी रहने की उम्मीद है।’ उन्होंने जोड़ा कि रिटेल में एफडीआइ के विरोध का कोई औचित्य नजर नहीं आता, क्योंकि इससे किसानों को ही फायदा मिलेगा यह स्पष्ट है।
गौरतलब है कि सपा सरकार के छह महीने पूरे हो गए है। इस बात को ध्यान में रखकर ही उन्होंने 9 अक्टूबर को महारैली का आयोजन किया था। इस रैली में उन्होंने सपा पर आरोप लगाया कि सपा सरकार दुर्भावना की शिकार है। यह एक भ्रष्ट सरकार है। उन्होंने कहा कि फिलहाल वह चुप हैं लेकिन वक्त आने पर विपक्ष को करारा जवाब दिया जाएगा।
कांशीराम व अन्य दलित महापुरुषों का अपमान करने और अपनी मूर्ति को तोड़े जाने के मुद्दे पर उन्होंने सपा के साथ कांग्रेस और भाजपा को भी आड़े हाथों लिया। नौ अक्टूबर को प्रत्येक वर्ष मनाने का आह्वान करते हुए कहा दलित विरोधी नीतियों वाले दलों की सच्चाई सबको बताएं। पूर्व मुख्यमंत्री ने अपने शासनकाल व सपा सरकार के छह माह के कार्यकाल का अंतर भी समझाया। कहा कि उत्तर प्रदेश क्राइम प्रदेश बन गया है। पिछले छह महीने में डेढ़ दर्जन साप्रदायिक दंगे व तनाव की घटनाएं हो चुकी हैं। बसपा शासन में जेल में बंद माफिया व गुंडों को आजाद कर दिया, जो अब सरकार चला रहे हैं। काग्रेस शासित हरियाणा में महिलाओं व दलितों पर अत्याचार बढ़ने का हवाला देते हए उन्होंने कहा कि हरियाणा महिला उत्पीड़न प्रदेश बन गया है। मुख्यमंत्री अखिलेश को घोषणाओं के मामले में अपने पिता से आगे बताते हुए कहा कि इन घोषणाओं का कोई आधार नहीं है।
गाय-भैंस चरा रहे होते मुलायम
अपने सवा घंटे के संबोधन में मायावती की भाषा काफी तीखी रही। डॉ. अंबेडकर की दो दर्जन से अधिक मूर्तियां तोड़े जाने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा बाबा साहब द्वारा बनाए संविधान से ही मुलायम सिंह व उनके परिवार को आरक्षण का लाभ मिल रहा है वरना मुलायम और उनके परिजन किसी सामंतवादी के खेत में गाय-भैंस चराते नजर आते। उन्होंने दलितों के साथ पिछड़े वर्ग व अगड़ी जातियों के गरीबों की खुलकर पैरोकारी की। सपा सरकार पर दलित व पिछड़े (गैर यादव) समाज के अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रताडि़त करने का आरोप भी लगाया।
परिवार से कोई चुनाव नहीं लड़ेगा
मायावती ने परिवारवाद की राजनीति पर जमकर प्रहार किया। अपने संकल्प को दोहराते हुए उन्होंने कहा कि उनके परिवार का कोई भी सदस्य अथवा रिश्तेदार चुनाव नहीं लड़ेगा। हां, पार्टी को मजबूत बनाने का काम कर सकता है। उन्होंने कहा कि विशेष परिस्थितियों को छोड़ बसपा में परिवारवाद को कोई महत्व नहीं दिया जाएगा।