क्या भारत में कभी चल पाएगी बुलेट ट्रेन?

दुनिया के कई देशों में ट्रेनें 250-300 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती हैं लेकिन भारत में ट्रेनें इसकी आधी गति को भी नहीं छू पाई हैं.

हालांकि अब भारत सरकार ने ट्रेनों की रफ्तार को बढ़ाने के लिए कुछ उपाए करने शुरु किए हैं.

भारतीय रेल अधिकारियों के अनुसार देश में सबसे तेज़ ट्रेन इस समय भोपाल शताब्दी है जो दिल्ली और आगरा के बीच कहीं-कहीं 140-150 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ती है. लेकिन इसकी औसत गति केवल 86 किलोमीटर प्रति घंटा ही है.

भारत की तेज़ गति की मानी जाने वाली शताब्दी ट्रेनें 70 से 85 किलोमीटर प्रति घंटे की औसत रफ्तार से ही चल पाती हैं.

भारत के पास दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है लेकिन रफ्तार के मामले में वो बहुत पीछे है.

ट्रेन सेट

रेलवे के प्रवक्ता अनिल सक्सेना का कहना है, ”भारतीय रेलवे इस पर एक साथ तीन चीज़ों पर गंभीरता से काम कर रहा है ताकि ट्रेनों की गति को 200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार तक ले जाया जा सके. इसमें जापान हमारी मदद कर रहा है.”

इस अभियान में सबसे पहले ट्रेन सेटों के अगले साल तक भारत में आने की संभावना है. सक्सेना का कहना है, ”इन इलेक्‍ट्रिकल मल्‍टीपल यूनिट (ईएमयू) ट्रेन सेट की मदद से शताब्‍दी और राजधानी ट्रेनों को वर्तमान पटरियों और सिग्नलिंग ढांचे पर अतिरिक्‍त खर्च किए बिना 130 से 150 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार पर चलाया जा सकेगा.”

एक ट्रेन सेट की कीमत 200 करोड़ रुपये के करीब होगी.

इसके अलावा, मौजूदा ट्रैकों और गाड़ी के डिब्बों में बदलाव किए जाएंगे ताकि गति को बढ़ाया जा सके.

अधिकारियों ने बताया कि मंत्रालय ने सात कोरिडॉर चुने हैं, जिन पर तेज़ रफ्तार वाली ट्रेनें चलाने के लिए ‘फिज़िबिलिटी स्टडी’ यानी ये किस हद तक संभव है, इसका अध्ययन कराया जा रहा हैं.

एक अधिकारी ने बताया कि इनमें से दो पर यह अध्ययन पूरा हो चुका है, तीन के जल्दी ही पूरी होने की उम्मीद है और इसके साथ ही दो को लेकर जल्द ही टेंडर मंगाए जाएंगे.

सात कॉरिडोर

अधिकारियों के अनुसार जिन कोरिडॉरों का अध्ययन पूरा कर लिया गया है उनमें 650 किलोमीटर का पुणे-मुंबई-अहमदाबाद कॉरिडोर भी शामिल है. इसी साल 31 जुलाई को हावड़ा-हल्दिया का अध्ययन भी पूरा करके मंत्रालय को सौंपा गया था.

इसके अलावा 991 किलोमीटर का दिल्ली-आगरा-लखनऊ-वाराणसी-पटना कॉरिडोर पर भी अध्ययन पूरा हो गया है और रेल मंत्रालय को इसका प्रारूप सौंपा गया है.

हैदराबाद-चेन्नई के 664 किलोमीटर कॉरिडोर पर अध्ययन की अंतरिम रिपोर्ट मंत्रालय में दे दी गई है.

चेन्नई-तिरूअनंतपुरम के 850 किलोमीटर कॉरिडोर की अभी फाइनल रिपोर्ट आनी है.

अधिकारी ने कहा कि दिल्ली-जयपुर-अजमेर-जोधपुर के 591 किलोमीटर कॉरिडोर और दिल्ली-चंडीगढ़-अमृतसर के 450 किलोमीटर कॉरिडोर का अध्ययन कराने के लिए प्रस्ताव अभी विचाराधीन है.

उन्होंने कहा कि इस कॉरिडोर के लिए तकनीकी मूल्यांकन कर लिया गया है जबकि आर्थिक बिड को अंतिम रूप दिया जा रहा है.

गोल्डन कॉरिडोर

दिल्ली-मुंबई गोल्डन कॉरिडोर के लिए अध्ययन अगले साल कराया जाएगा. यह जापान की मदद से किया जा रहा है. इसका मकसद है कि ट्रेनों की रफ्तार को 160-200 किलोमीटर प्रति घंटा तक बढ़ाना.

मंत्रालय के अनुसार इसी तरह के अध्ययन कुछ और कॉरिडोर पर भी किए जाएंगे.

इनमें मुंबई-कोलकाता, चेन्नई-बंगलौर, दिल्ली-जयपुर और अहमदाबाद-मुंबई कॉरिडोर शामिल हैं.

क्यों हैं भारत पीछे ?

रेलवे विश्लेषकों का कहना है कि भारत को चीन, जापान और अन्य देशों के आस-पास पहुंचने में 15 साल से अधिक लग सकते हैं लेकिन मौजूदा ट्रैकों में बदलाव करने के बाद इनकी गति को 200 किलोमीटर तक बढ़ाया जा सकता है.

लेकिन सवाल ये है कि भारत के बाकी देशों से इतना पिछडने का आखिर कारण क्या है?

रेलवे बोर्ड के पूर्व चेयरमैन इकबाल इंदर मोहन सिंह राणा का कहना है, ”भारत इतना खर्च बर्दाश्त ही नहीं कर सकता. पहले सुरक्षा देखनी होती है. हमारे लिए वक्त इतना कीमती नहीं है.”

उनका कहना है कि भारत की धीमी चलने वाली ट्रेनों का कारण यहां के ट्रैक हैं. राणा के मुताबिक तेज़ गति के लिए ज़रूरी है कि मोड़ तीखे न हों, साथ में ये भी कि कोई मानवरहित फाटक न हों.

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