विश्व स्तरीय शहरों से कोसों दूर भारतीय शहर

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के दो बड़े महानगर विश्व स्तरीय शहर का दर्जा पाने से अभी भी बहुत दूर हैं.

संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी की गई विश्व स्तरीय 95 शहरों की सूची में देश की व्यापारिक राजधानी मुंबई का 52वाँ और देश की राजनीतिक राजधानी दिल्ली का 58वाँ स्थान है.

रिपोर्ट में सबसे ऊपर जिन पाँच शहरों को रखा गया है, वे हैं- वियना (ऑस्ट्रिया), न्यूयॉर्क (अमरीका), टोरंटो (कनाडा), लंदन (यूके), स्टॉकहोम (स्वीडेन).

संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि नई दिल्ली और मुंबई समृद्धि की ओर बढ़ रहे विश्व के 95 शहरों की सूची में शुमार हैं, लेकिन भारत के ये दोनों महानगर खराब आधारभूत ढांचे और खराब पर्यावरण स्थितियों जैसी वजहों के चलते इस दिशा में केवल ‘आधा सफर’ ही तय कर पाए हैं.

‘यूएन हैबिटेट’ के विशेषज्ञों की रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ वर्ल्ड सिटीज’ में पांच मानदंडों के आधार पर शहरों का मूल्यांकन किया गया है. ये पाँच मानदंड हैं- उत्पादकता, जीवन की गुणवत्ता, आधारभूत ढांचा, पर्यावरण और समानता, इन्हीं के आधार पर शहरों की समृद्धि का आकलन किया जाता है.

इन सभी पांच श्रेणियों में भारतीय शहर ढाका, काठमांडू और कंपाला जैसे शहरों से थोड़ा ही ऊपर हैं.

पेइचिंग

नई दिल्ली में जारी इस रिपोर्ट में चीन के दो शहरों-शंघाई और पेइचिंग का स्थान काफी ऊपर है.

रिपोर्ट से जुड़े मुख्य अध्ययनकर्ता एडवर्डो लॉपेज मॉरेनो ने नई दिल्ली में बताया, ‘दोनों भारतीय शहर समूह 4 के तहत आते हैं और वे समृद्धि के मध्यम स्तर पर हैं. समृद्धि से मतलब सिर्फ आर्थिक संपन्नता से नहीं, बल्कि शहर में आधारभूत ढांचे और जीवन की गुणवत्ता से भी है.’

उनके मुताबिक इन दोनों शहरों को खराब पर्यावरण स्थितियों का खामियाजा भुगतना पड़ा है, खासकर नई दिल्ली को.

रिपोर्ट में हालांकि, बंगलौर में हुई सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति की सराहना की गई है और हैदराबाद को भारत की औषधीय राजधानी कहा गया है.

रिपोर्ट में भारत के सबसे बड़े शहरों-कोलकता, दिल्ली, मुंबई और चेन्नई को जोडऩे के लिए देश की स्वर्णिम चतुर्भुज योजना का भी उल्लेख किया गया है.

इसमें यह भी कहा गया है कि पिछले कुछ दशकों में एशियाई शहरों ने अपने आधारभूत ढांचे में जबर्दस्त निवेश किया है.

रिपोर्ट में उल्लेख है कि भारत में ग्रामीण क्षेत्रों की कीमत पर शहरों का तेजी से विस्तार हो रहा है और सुझाव दिया गया है कि शहरों में जमीन के इस्तेमाल को लेकर उचित नीति बनाई जानी चाहिए.

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