पहली बार हुआ भारत-चीन युद्ध के शहीदों का सम्मान

भारत और चीन के बीच हुए 1962 के युद्ध को शनिवार को पचास वर्ष पूरे हो गए। इस मौके पर सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों और रक्षा मंत्री ने नई दिल्ली स्थित अमर जवान ज्योति पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। यह पहला मौका था जब इस युद्ध में मारे गए जवानों को इस तरह से याद किया।

इस मौके पर रक्षा मंत्री एके एंटनी ने कहा कि मौजूदा दौर में भारत 1962 वाला भारत नहीं है, अब परिस्थितियां बहुत बदल चुकी हैं। भारत की आर्थिक और सैन्य क्षेत्र में तरक्की किसी से छिपी नहीं है। उन्होंने कहा कि आज का भारत अपनी भूमि के एक इंच टुकड़े की भी हिफाजत करना अच्छी तरह से जानता है, आज वह किसी के सामने झुक नहीं सकता है।

गौरतलब है कि 20 अक्टूबर 1962 को चीन से अप्रत्याशित युद्ध थोपने के बाद भारत को इसमें शर्मनाक हार झेलनी पड़ी थी। इस युद्ध की रणनीति बनाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की कड़ी आलोचना भी हुई थी। इस युद्ध में चीन के अस्सी हजार सैनिकों का सामना भारत के के महज बारह हजार सैनिकों ने किया था।

शनिवार को रक्षा मंत्री और सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों द्वारा दी गई श्रद्धांजलि के बाद अब उस युद्ध में शामिल सैनिकों को उम्मीद है कि यह सिलसिला जारी रहेगा। सेना के पूर्व लैफ्टिनेंट जनरल राज काद्यान ने भी इस फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि युद्ध के परिणाम से सैनिकों का सम्मान कम नहीं हो जाता है।

चीन के साथ 1962 की लड़ाई में वीर चक्र हासिल करने वाले शूरवीर सिपाही लांस नायक गोपाल सिंह गोसाई कसक के साथ कहते हैं कि युद्ध में मिली हार के कारण लड़ने वाले सैनिकों को वह सम्मान नहीं मिल पाया, जिसके वे हकदार थे। 17 नवंबर 1962 को तवांग जिले के नूरानांग में हुई लड़ाई के दौरान गोरखा रेजीमेंट की उनकी पल्टन ने कई चीनी हमलों को नाकाम किया था। लगभग 14,000 फीट की ऊंचाई पर कड़कड़ाती सर्दी में नूरानाग की पहाड़ियों पर हुई लड़ाई में कुल 162 जवान वीरगति को प्राप्त हुए, 264 कैद कर लिए गए और 256 जवान मौसम की मार से या अन्य कारणों से तितर-बितर हो गए थे।

सैन्य मामलों के विशेषज्ञ मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) आरके अरोड़ा के शब्दों में किसी भी मुल्क को अपनी जीत की बजाय हार को याद रखना चाहिए। इससे अधिकारियों को जहां नेतृत्व की कमियों को सीखने का मौका मिलता है, वहीं सैनिकों को भी कमजोरियों के बारे में इल्म होता है। अनेक पश्चिमी मुल्क की सेनाएं द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मिली शिकस्त की स्मृतियों को आज भी याद करती हैं। गौरतलब है कि 1962 की लड़ाई में मिली हार की जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया। युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को बहादुरी के तमगे तो दिए गए लेकिन उनके बलिदान को याद करने के लिए 50 बरस बाद अमर जवान ज्योति पर पुष्प चक्र अर्पित करने का कार्यक्रम बनाया गया है।े

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