बारीक हास्य के बादशाह जसपाल भट्टी

जसपाल भट्टी को हमेशा एक ऐसे सामाजिक व्यंग्यकार के रूप में याद किया जाएगा जिन्होंने अपने टेलिविजन शो, लेखन और अभिनय के ज़रिए लाखों लोगों के मन के गुदगुदाया.

80 और 90 के दशक में दूरदर्शन पर दिखाए गए सीरियल फ़्लॉप शो और उल्टा पुल्टा से भट्टी ने सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा.

3 मार्च 1955 को अमृतसर में जन्मे जसपाल ने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर की डिग्री ली. अपने कॉलेज के दिनों में वह अपने नुक्कड़ नाटक नॉनसेंस क्लब से मशहूर हो गए थे.

उनके अधिकतर नाटकों में भ्रष्टाचार और नेताओं का बहुत ही मनोरम अंदाज़ में मज़ाक उड़ाया गया जिसको लोगों ने हाथों हाथ लिया. उनके लोकप्रिय होने की वजह थी मध्यम वर्ग के रोज़मर्रा के मुद्दों को दिलचस्प अंदाज़ में उठाना.

कार्टूनिस्ट

टेलिविजन में आने से पहले वह ट्रिब्यून अखबार के लिए कार्टून बनाया करते थे. उनके सबसे लोकप्रिय फ़्लॉप शो को उनकी उनकी पत्नी सविता भट्टी ने न सिर्फ प्रोड्यूस किया बल्कि उसमें अभिनय भी किया.

1999 में उन्होंने पंजाबी फ़िल्म ‘माहौल ठीक है’ बनाकर फ़िल्म निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखा. कुछ हल्कों में इस फ़िल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी उठी क्योंकि कि इसमें पुलिस अफसरों के शराबी और भृष्ट होने की खिल्ली उड़ाई गई थी.

बाद मे उन्होंने कई बॉलीवुड फिल्मों में भी काम किया. उनकी ताज़ा फ़िल्म पॉवर कट 26 अक्तूबर को रिलीज़ होने वाली है.

मोहाली में अपने प्लॉट पर उन्होंने एक बोर्ड लगा रखा था जिस पर लिखा था जसपाल भट्टी की राष्ट्रीय आधार शिला फ़ैक्ट्री. इस फ़ैक्ट्री का दावा था कि वह सभी अवसरों पर बहुत कम समय में आधारशिलाएं सप्लाई कर सकती है.

आम मुद्दों को हास्य के ज़रिए जनता के बीच ले जाने में जसपाल भट्टी को महारथ हासिल थी.

मुद्रा स्फीति की ओर सबका ध्यान खींचने के लिए उन्होंने चंडीगढ़ में एक स्टॉल खोला जहाँ खाने की चीज़ों चावल, दल और तेल को अलग अलग जारों में रखा गया था. उनके आगे लिखा था, जार पर रिंग फेंक कर खाने की चीज़ें इनाम में जीतिए और अपनी पत्नी को खुश कीजिए.

जोक फ़ैक्ट्री

भट्टी के चुटीले हास्य की खूबी थी अपने आप पर हँसने और मज़ाक उड़ाने की कला. अपनी वेबसाइट पर वह अपना परिचय कुछ इस अंदाज़ में देते थे, ‘मैं सनडे ट्रिब्यून में नियमित कॉलम लिखता हूँ जिसकी वजह से ही उसकी बिक्री घटती जा रही है.’

अपने जीवन परिचय में वह अपने सारे स्कूलों के नाम बताया करते थे जहां उन्होंने पढ़ाई की थी. इसके बाद उनकी टिप्पणी होती थी कि इससे यह हरगिज़ मत समझिएगा कि मैं बहुत पढ़ा लिखा हूँ. वास्तव में मेरे सारे अध्यापक मुझे अपना शागिर्द कहते हुए शरमाते हैं.

उन्होंने अपनी पत्नी के साथ चंडीगढ़ में एक अभिनय स्कूल खोल था और उसके काम के अनुरूप उन्होंने इसका नाम रखा था ’जोक फ़ैक्ट्री ’

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