अरुण मिश्रा पर किसका हाथ?

उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम के मुख्य अभियंता अरुण मिश्रा सुर्खियों में हैं। एक तरफ उनके खिलाफ चल रही जांच ठप पड़ गई है और दूसरी तरफ उनको बहाल कर प्रबंध निदेशक कार्यालय में तैनाती दी गई है। मिश्रा के गुनाहों की फेहरिस्त के बावजूद उन पर किसकी सरपरस्ती है। आखिर कौन है जो उनको संरक्षण दे रहा है और किसके इशारे पर एसआइटी जांच पर ब्रेक लगाया गया है। यह यक्ष प्रश्न है। उनके खिलाफ सीबीआइ और इडी जैसी एजेंसियों को साक्ष्य जुटाने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ रही है।

अरुण मिश्रा पर गाजियाबाद के ट्रोनिका सिटी आवंटन में पांच सौ करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप है। 2007 में बसपा सरकार ने जब स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम [एसआइटी] का गठन किया, तब पहली जांच मिश्रा के खिलाफ ही सौंपी गई। कहने को जांच चलती रही, लेकिन निर्णायक कार्रवाई नहीं हो सकी। अब तो जांच को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। एसआइटी का कोई अफसर इस मसले पर बोलने को भी तैयार नहीं है।

गौरतलब है दो वर्ष पहले सीबीआइ जांच में पता चला कि ट्रोनिका सिटी आवंटन में पांच सौ करोड़ का हेरफेर करने के बाद अरुण ने 2005-06 में देहरादून के पंजाब नेशनल बैंक की विधानसभा शाखा व आर्यवानप्रस्थ आश्रम शाखा के अफसरों के साथ काले धन को सफेद करने का खेल खेला। इसी के बाद सीबीआइ का घेरा बढ़ता गया। 24 फरवरी, 2011 को मिश्रा के लखनऊ समेत नौ ठिकानों पर सीबीआइ ने छापा मार कर गोरखधंधे का दस्तावेज कब्जे में ले लिया। वह सीबीआइ जांच में जेल तक हो आए और प्रवर्तन निदेशालय ने करोड़ों की संपत्ति भी जब्त कर ली, लेकिन अभी दोनों एजेंसियों को मिश्रा से संबंधित बहुत से दस्तावेज सरकारी विभागों से नहीं मिल रहे हैं।

सूत्रों के मुताबिक यूपी तथा उत्तराखंड के अलावा कई राज्यों में मिश्रा और जुड़े लोगों की बेशकीमती संपत्ति है, लेकिन इसके दस्तावेज नहीं मिल रहे हैं।

बसपा सरकार में भी निलंबन के बाद हुए थे बहाल :

सपा सरकार बनने के बाद अरुण मिश्रा ने फिर से पुराना ढर्रा अख्तियार कर लिया। शासन ने निलंबन निरस्त कर दिया। इसके पहले बसपा सरकार में भी निलंबन निरस्त हुआ था। 25 मई 2007 को बसपा सरकार ने अरुण मिश्रा को ट्रोनिका सिटी आवंटन घोटाले के आरोप में निलंबित किया। ऊंची पहुंच का लाभ उठाते हुए दस माह बाद ही मिश्रा बहाल हुए। मिश्रा जिस बसपा सरकार की आंख की किरकिरी थे, उसी सरकार ने दस माह में ही आंखों का तारा बना लिया। उनकी मुश्किलें 24 फरवरी 2011 को सीबीआइ के छापे के बाद बढ़ीं। वह लगभग दो माह तक अवकाश पर रहे। इस दौरान 22 अप्रैल 2011 को उन्होंने कार्यभार ग्रहण किया, लेकिन जब सीबीआइ ने उनके बारे में सरकार से पत्राचार किया तो 24 अप्रैल को उन्हें दुबारा निलंबित कर दिया गया। तबसे वह निलंबित थे और सपा सरकार ने उनको फिर बहाल कर तैनाती भी दे दी।

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