विश्वसंत उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि का 25वां पुण्य स्मरण दिवस 25 को

– 15 राज्यों के पांच हजार से ज्यादा श्रावकों की रहेगी उपस्थिति-
– समारोह में कोई विशिष्ट, अतिविशिष्ट व्यक्ति नहीं होगा-

उदयपुर। तारक गुरु जैन ग्रंथालय एवं जैनाचार्य श्री देवेन्द्र मुनि शिक्षण एवं चिकित्सा शोध संस्थान ट्रस्ट द्वारा रविवार 25 मार्च को विश्वसंत उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि महाराज का 25वां रजत पुण्य स्मरण दिवस प्रातः 8.30 बजे तारक गुरु जैन ग्रंथालय, शास्त्री सर्कल पर आयोजित किया जाएगा। यह श्रमण संघीय सलाहकार दिनेश मुनि एवं उनके सहयोगी संतों का क्रांतिकारी कदम है। यहां के जैन समाज का यह पहला ऐसा समारोह होगा जिसमें कोई अतिथि एवं अध्यक्ष नहीं होगा और न इसमें किसी राजनेता, दानवीर, समाजसेवी का स्वागत सत्कार ही किया जाएगा। यह जानकारी बुधवार को आयोजित प्रेसवार्ता में तारक गुरु जैन ग्रंथालय के महामंत्री वीरेन्द्र डांगी ने दी। इस अवसर पर उपाध्यक्ष गणेशलाल गोखरू, कोषाध्यक्ष विजयसिंह छाजेड, मानसिंह रांका भी उपस्थिति थे।
वीरेन्द्र डांगी ने बताया कि अमृत पुरुष जैनधर्म दिवाकर आचार्य सम्राट देवेन्द्र मुनि महाराज के दिव्य आशीर्वाद से इस समारोह में श्रमण संघीय चतुर्थ पट्टधर युग प्रधान आचार्य सम्राट शिव मुनि, श्रमण संघीय प्रमुख मंत्री शिरीष मुनि, शेरे राजस्थान वरिष्ठ प्रवर्तक अहिंसा दिवाकर रूपचन्द महाराज, महाश्रमण पूज्य जिनेन्द्र मुनि, तपस्वी प्रवीण मुनि, श्रमण संघीय सलाहकार दिनेश मुनि, डॉ. द्वीपेन्द्र मुनि, डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि, सहमंत्री शुभम मुनि, शमित मुनि, निशांत मुनि, दर्शन मुनि, शाश्वत मुनि, शुद्वेश मुनि, शौर्य मुनि, जयंत मुनि, पंडित रत्न उपप्रवर्तक अक्षय ऋषि, सेवाभावी अमृत ऋषि, महासती मंडल में चारित्र प्रभा, डॉ. दिव्य प्रभा, चन्दन बाला, कल्पना, प्रिय दर्शना, प्रियदा, साध्वी डॉ. राजश्री, डॉ. रूचिका, विनयप्रभा, आभाश्री, विनयवती, हेमवती, डॉ. हर्षप्रभा, सुलक्षण प्रभा तथा डॉ. प्रतिभा का पावन सान्निध्य प्राप्त होगा।
लुधियाना के नीरु-विजयकुमार, भव्या-पीयूष, रोहाना जैन, मुम्बई के धनसुखभाई, अश्विनभाई, रशेषभाई, जयराजभाई दोशी, उदयपुर-दुबई के नगिनादेवी-स्व. सम्पतिलाल, राजकुमार-नीता बोहरा रजत स्मृति समारोह के मुख्य सहयोगी परिवार तथा अन्य सहयोगी हैं। स्व. बसंतदेवी-स्व.हनुमतमल की स्मृति में वीरेन्द्र-रजनी, डॉ. वैभव, डॉ. अनिता, शुभम, अंकिता, निलय, मानस डांगी परिवार, उदयपुर गौतम प्रसादी के लाभार्थी हैं। समारोह की पत्रिका के लाभार्थी श्रीमती चंद्रकांता, हंसराज-पूनम, मुकेश-लीना, दिग्विजय, मोहक, छवि एवं खुश चौधरी परिवार हैं।
समारोह के लिए कोर्ट चौराहा से शास्त्री सर्कल मेन रोड पर 30,000 वर्गफीट का भव्य पांडाल बनाया जा रहा है। समारोह में राजस्थान के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक, तेलंगाना, दिल्ली सहित 15 राज्यों के पांच हजार से अधिक श्रावक-श्राविकाएं भाग लेकर पुष्कर मुनि के समाधिस्थल श्री गुरु पुष्कर धाम में नतमस्तक होंगी। समारोह को लेकर विभिन्न समितियों का गठन किया गया है जो अपने-अपने कार्य में जुटी हुई हैं। पूरे देश में 4000 से अधिक पत्रिकाओं और उदयपुर शहर में 1500 पत्रिकाओं द्वारा निमंत्रण दिया गया है।
समारोह में पुस्तक लोकार्पण का आयोजन भी उल्लेखनीय रहेगा। इसके अंतर्गत ‘जैन कर्म सिद्धांत में आचार्य देवेन्द्र मुनि का अवदान’ पुस्तक का मुम्बई के धनसुखभाई, अश्विनभाई दोशी, ‘स्वर्ण किरण’ का उदयपुर के कन्हैयालाल मोदी, ‘कुछ हीरे कुछ मोती’ का पूना की गुलाब बेन सर्राफ, ‘पुष्कर सूक्तिकोश’ का बैंगलोर के सुभाष गदिया, ‘पावन प्रसंग’ का बैंगलोर के राजेन्द्र-हिमांशु लोढा, ‘जैन कथाएं’ का पूना के डॉ. किशोर सर्राफ, ‘अनुभूति के आलोक’ का माधवनगर के राजेन्द्रकुमार बेदमुथा तथा ‘बिन्दु में सिन्धु’ का राजकुमार बोहरा द्वारा लोकार्पित की जायेंगी। इसी क्रम में सोमवार 26 मार्च को दोपहर 12 बजे आयंबिल दिवस का आयोजन तथा मंगलवार 27 मार्च को प्रातः 8.30 बजे नमस्कार महामंत्र का जाप किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि पुष्कर मुनि के 25वें पुण्य स्मरण दिवस की कडी में गत 17-18 मार्च को अहमदाबाद के सुप्रसिद्ध चिकित्सकों द्वारा फ्री चेकअप केम्प का आयोजन किया गया था।
सलाहकार दिनेश मुनि ने बताया कि उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी ने जो संथारा लिया था वह इतिहास की सर्वथा अनूठी घटना है। ऐसा संथारा पिछले 500 वर्ष के इतिहास में अन्य किसी ने नहीं लिया। इस संथारा का नाम ‘पादोपगमन’ था। जिस प्रकार वृक्ष से जमीन पर गिरने के बाद वह शाखा न हिलती-डुलती है और न किसी प्रकार हलन-चलन ही करती है, उसी प्रकार इस संथारे का धारक संथारा ग्रहण करने के बाद किसी तरह की कोई हलचल नहीं देता है। न उसके हाथ-पांव हिलते-डुलते हैं और न कोई अन्य अंग ही स्फूरन देता है। यहां तक कि नजरों की पलकें तक अपलक रहती हैं। इस समय उनके आसपास 250 से अधिक संत-सतियों की उपस्थिति थी।
उन्होंने बताया कि उदयपुर में ही उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी ने अंतिम स्वांस ली थी और श्री तारक गुरु जैन ग्रंथालय परिसर में ही उनके पार्थिक शरीर को मुखाग्नि दी गई थी। उसी स्थल पर उनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए 21 वर्ष पूर्व ‘श्री गुरु पुष्कर पावन धाम-स्मारक’ बनाया गया। उनकी 25वीं पुण्यतिथि के अवसर पर लाखों रूपये लगाकर उसका जीर्णोद्धार करा श्री तारक गुरु जैन ग्रंथालय परिसर में कलर इत्यादि कराया गया है। मुख्य स्थल पर अष्टधातु से निर्मित कलश व स्मारक परिसर में उनका चित्र व नवकार महामंत्र अष्टमंगल लगाये जा रहे हैं। स्थानकवासी जैन समाज में प्रथम मौका था जब वर्ष 2007 में स्मारक शिखर पर स्वर्ण युक्त कलश स्थापित किया गया। पुष्कर मुनि ऐसे महागुरु थे जिन्होंने आचार्य सम्राट देवेन्द्र मुनि जी जैसे आचार्य समाज को दिये जिन्होंने साहित्य की विविध विधाओं में 450 से अधिक ग्रंथों का लेखन कर कीर्तिमान स्थापित किया।
श्री दिनेश मुनि ने बताया कि उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि के 25वें पुण्य स्मृति दिवस को भव्य रूप प्रदान करने के लिए वे पूना (महाराष्ट्र) का चातुर्मास संपन्न कर डॉ. द्वीपेन्द्र मुनि एवं डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि के साथ 77 दिनों में 1500 किलोमीटर का विहार कर उदयपुर आए हैं। उल्लेखनीय है कि मुनित्रय का अगला चातुर्मास नासिक (महाराष्ट्र) में है जिसके लिए उन्हें 1000 किलोमीटर की यात्रा करनी है।

लोगो का लोकार्पण :
प्रेसवार्ता में लोगो का विमोचन किया गया जिसमें पुष्कर मुनि का चित्र, उनके समाधिस्थल का चित्र और 3॰ अगस्त 1976 को उनके द्वारा लिखे गये नवकार महामंत्र को भी रेखांकित किया गया है। लोकार्पण पौत्र शिष्य डॉ. द्वीपेन्द्र मुनि, डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि एवं संस्था के पादाधिकारियों द्वारा किया गया।

उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी के बारे में :
विश्व संत उपाध्याय पुष्कर मुनिजी (अम्बालाल) ने मेवाड के सेमटाल (वर्तमान में पुष्करनगर) गांव के निवासी ब्राह्मण सूरजमल पालीवाल की धर्मपत्नी वालीबाई की कुक्षी से 17 अक्टूबर 191॰ की आश्विन शुक्ला चतुर्दशी वि. सं. 1967 को जन्म लिया। उनकी संघर्षमय जीवन यात्रा का प्रथम पडाव माता के स्वर्गवास से शुरु हुआ। अंबालाल के मन में विचार उत्पन्न हुआ कि संसार असार है। मृत्यु को देख मन में वैराग्य का भाव जागृत होने से उन्होंने महास्थवीर ताराचंदजी म. से मात्र 14 वर्ष की अल्पायु में 12 जून 1924 की ज्येष्ठ शुक्ला 10 वि. सं. 1981 को गढ जालौर में जैन भागवती दीक्षा अंगीकार करली।
उपाध्याय पुष्कर मुनि वैदिक एवं श्रमण संस्कृति के अनूठे सेतु थे। वे दीक्षा ग्रहण करने के बाद जैन साधना पद्धति पर बढते गये। गीता एवं उपनिषद् के घोषों के बीच आगम की गाथाओं एवं नमोक्कार महामंत्र का निनाद उनके व्यक्तिव का एक आवश्यक सोपान बन गया। पुष्कर मुनि संस्कृत के साथ-साथ वैदिक, बौद्ध, न्याय आदि दर्शनों तथा गीता, उपनिषद् एवं आगम ग्रन्थों के प्रकाण्ड विद्वान थे। तीस अगस्त 1976 भाद्रपद शुक्ला 6 वि. सं. 2033 संवत्सरी महापर्व पर वे उपाध्याय पद से सुशोभित हुए। पुष्कर मुनि हिन्दी, प्राकृत, संस्कृत, पाली, राजस्थानी, गुजराती, मराठी, उर्दू आदि 9 भाषाओं के ज्ञाता होने के साथ-साथ साहित्य-लेखन के धनी थे। आध्यात्मिक और नैतिक विषयों पर उन्होंने 135 पुस्तकों का लेखन किया। उन्होंने जैन कथा के 111 भागों, 300 विषय, 1000 से अधिक कहानियों का लेखन कर अपना नाम अमर किया। उनके उपदेश प्रेम, अहिंसा, सहिष्णुता पर आधारित होते थे। उन्होंने अपने प्रवचनों और व्यवहार द्वारा जीवन के उच्चतम नैतिक, मानवीय और आध्यात्मिक मूल्यों को प्रस्तुत किया।

error: Content is protected !!