एमवे इंडिया के पावर ऑफ़ प्रोग्राम के सकारात्मक प्रभाव

• महत्वपूर्ण सर्वेक्षणों से स्पष्ट तौर पर पता चला है कि दिल्ली में 5 वर्ष से कम आयु का प्रत्येक दूसरा अल्पपोषित बच्चा कुपोषण से प्रभावित है।
• एक वर्ष के जागरूकता अभियान से 79% बच्चे कुपोषित श्रेणी से बाहर आ गए हैं।
भारत में सामाजिक वर्ग पहले से ही स्पष्ट तौर पर अलग-अलग निर्धारित है और यह पोषण-संबंधी परिदृश्य में अधिक स्पष्ट तौर से देखा जा सकता है। 2018 में लॉन्च किए गए एमवे इंडिया के पावर ऑफ़ 5 प्रोग्राम से पता चला है कि भारत में 5 वर्ष से कम आयु का प्रत्येक दूसरा अल्पपोषित बच्चा कुपोषण से प्रभावित है।
एमवे ने विश्व स्तर पर सफल इस समुदाय-आधारित प्रोग्राम पावर ऑफ़ 5 को भारत में ममता-हेल्थ इंस्टीट्यूट फॉर मदर एंड चाइल्ड के सहयोग से लॉन्च किया था। इस प्रोग्राम के तहत 5 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों की माताओं एवं देखभाल-कर्ताओं को लक्षित किया गया था और इसका उद्देश्य संपूरक भोजन, स्वच्छता प्रथाओं, विकास-निगरानी और आहार विविधता सहित पोषण संबंधी ज्ञान एवं प्रथाओं को बेहतर बनाना है।
शुरूआती चरण में, यह प्रोग्राम उत्तरी-पश्चिमी दिल्ली के किरारी क्षेत्र में शुरू किया गया था जो एक नगरीय झुग्गी व पुनर्वास कॉलोनी है। पांच वर्ष से कम उम्र वाले 9700 से अधिक बच्चों का सर्वेक्षण किया गया था और यह पता चला था कि अधिकांश बच्चे पोषण की अत्यधिक कमी से जूझ रहे थे। इनमें से 17% बच्चे कमज़ोर थे, 31% का वजन कम था और 46% अविकसित थे। 9700 बच्चों में से, 1700 कमज़ोर थे और प्रोग्राम के पूरे सत्र के दौरान निरंतर निगरानी के लिए चिन्हित किये गए थे। बाद में यह भी पाया गया कि इन 1700 कमजोर बच्चों में से 73% का वजन कम था और 44% अविकसित थे। इस अभियान के अंत में चौंका देने वाले परिणाम प्राप्त हुए थे और साथ ही यह देखकर प्रोत्साहन भी मिला कि कमजोर-श्रेणी में बच्चों की संख्या 1700 से 328 (79% की कमी), कम वजन वाली श्रेणी में बच्चों की संख्या 1236 से 455 (44% की कमी) और अविकसित-श्रेणी में बच्चों की संख्या 750 से 484 (14% की कमी) रह गयी थी।
एमवे इंडिया के सीईओ, अंशु बुधराजा का कहना है,हमारे देश में कुपोषण की स्थिति चिंताजनक है, पूरे विश्व के 150.8 मिलियन कुपोषित बच्चों में से 31% बच्चे भारत में हैं और पूरे विश्व के सभी कमजोर बच्चों में से आधे बच्चे भी भारत में ही हैं। एमवे इंडिया में, हम देश में पोषण स्तर को बढ़ाने के लिए भारत सरकार के राष्ट्रीय पोषण मिशन में योगदान देने के लिए पोषण एवं कल्याण अभियान में अपने व्यापक वैश्विक अनुभव का उपयोग करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
साथ ही उनका यह भी कहना है कि “हमारा समुदाय-आधारित पोषण शिक्षण कार्यक्रम यह भी दर्शाता है कि एक सरल, लेकिन व्यापक पहुँच पांच वर्ष से कम आयु वाले बच्चों के पोषण की स्थिति में सुधार करने का एक तरीका है। प्रोग्राम 'पावर ऑफ़ 5 अभियान के प्रथम वर्ष का परिणाम काफी प्रोत्साहन-वर्धक है, और हम इस प्रोग्राम को बहुत बड़े पैमाने पर आगे बढ़ाने का प्रयोजन रखते हैं जिससे अंततः देश की प्रत्येक माँ और बच्चे के जीवन पर प्रभाव पड़ेगा। पोषण-संबंधि चिन्हित क्षेत्रों में सामुदायिक कार्य जारी रखते हुए, हमारी योजना देश भर के अन्य राज्यों में भी इसे दोहराने की है। ”
भारत सरकार के राष्ट्रीय पोषण मिशन के साथ मिलकर, पावर ऑफ़ 5 प्रोग्राम ने पाँच वर्ष से कम आयु वाले 10000 बच्चों और 30000 से अधिक माताओं व देखभाल करने वालों को जागरूकता पैदा करने और शिक्षात्मक जानकारी प्रदान करने के लिए सर्वांगीण समाधान प्रदान करके लाभान्वित किया है। चिन्हित लाभार्थियों को समय पर समावेशी सेवा प्रदान करते हुए आशा कार्यकर्ताओं, एएनएम और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को माता-पिता एवं समुदायों के बीच व्यवहार परिवर्तन लाने के लिए संवेदनशील बनाया गया है। इस प्रोग्राम से शिशु स्तनपान प्रथाओं, टीकाकरण कवरेज और विटामिन ए की खुराक और कृमिहरण कवरेज में भी काफी सुधार हुआ।
ममता-एचआईएमसी के कार्यकारी निदेशक डॉ. सुनील मेहरा का कहना है, "5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण हमारे देश के बाल स्वास्थ्य एवं विकास कार्यक्रम के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है, इसके परिणामस्वरूप बाल मृत्यु दर लगभग 50% है। हम विश्व स्तर पर सफल होने वाला प्रोग्राम
यहाँ शुरू करने के लिए एमवे इंडिया के साथ साझेदारी करके बहुत उत्साहित हैं, इस प्रोग्राम के तहत नगरीय-गरीब इलाकों में 10,000 बच्चों की कुपोषण, कमजोरी और विकास न होने की समस्याओं पर ध्यान दिया जायेगा। और यह ध्यान देना भी उत्साहजनक है कि कार्यक्रम के पहले वर्ष के चरण में ही माता-पिता के ज्ञान व भोजन की प्रथाओं में सुधार के अलावा इन बच्चों की पोषण-स्थिति में भी महत्वपूर्ण बदलाव देखा गया है।अभियान के बारे में अतिरिक्त जानकारी
अभियान के दौरान प्रस्तुत किये गये समाधान और उनके परिणाम भारत में कुपोषण को दूर करने के लिए जमीनी-स्तर पर सहभागिता और माताओं व देखभाल-कर्ताओं के शिक्षण की व्यापक आवश्यकता को दर्शाते हैं। लाभार्थी समूहों को नियमित परामर्श प्रदान किया गया है ताकि वे अपने बच्चों की बेहतर देखभाल कर सकें। पूरे प्रोग्राम के दौरान इससे जुड़े प्रत्येक व्यक्ति को बेहतर रूप से सक्षम बनाने के लिए कई शिक्षण सत्र और पोषण संबंधी उपायों के प्रदर्शन भी आयोजित किए गए थे।
शिशु और बच्चे को खिलाने का अभ्यास
0-24 माह की आयु-वर्ग वाले 98.5% बच्चों के परिवारों ने बताया कि बच्चे को जन्म से ही स्तनपान कराया गया था, जबकि प्रारंभिक सर्वेक्षण में यह 85.8% था।
प्रसव के बाद पहले तीन दिनों में बच्चे को स्तनपान के अलावा अन्य चीजों का सेवन करवाने वाले परिवारों की संख्या 30% (प्रारंभिक प्रतिशत) से घटकर 11.5% (अंतिम प्रतिशत) हो गई है। इन अन्य चीजों में शहद, इन्फेंट-फार्मूला, जनम-घुट्टी, शुगर-सिरप, ग्राइप वाटर, शुगर/ ग्लूकोज का घोल और फलों का रस शामिल है।
पिछले वर्ष 86.2% की तुलना में लगभग 91.5% परिवारों ने बच्चे को जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान कराना शुरू कर दिया है। टीकाकरण कवरेज
बीसीजी, हेपेटाइटिस और डीपीटी टीकों की डोज़ उच्च दर्ज की गई है। आवश्यक टीकों की टीकाकरण कवरेज में शुरूआती स्तर (61.5%) से अंतिम स्तर (81.5%) तक उल्लेखनीय सुधार देखा गया है।
विटामिन ए की खुराक और कृमिहरण
पिछले छह महीनों के भीतर लगभग 77.5% बच्चों को विटामिन ए की एक खुराक मिली थी, जिसकी मात्रा शुरूआती सर्वेक्षण में 70% थी।
शुरूआती सर्वेक्षण में 46.3% की तुलना में पिछले छह महीनों में आंत्रिक-कीड़ों के लिए किसी भी दवा का सेवन 54.1% दर्ज किया गया था।

error: Content is protected !!