जिंदगी के संघर्षो का लुत्फ उठाते थे पंडित रविशंकर

सितार वादक पंडित रविशकर भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक ऐसा चेहरा थे, जिन्हें विश्व संगीत का गॉडफादर कहा जाता था। वह केवल सितार वादक ही नहीं थे बल्कि संगीत के एक घराने थे जिन्हें नई पीढ़ी हमेशा ही अनुसरण करती रहेगी। 92 साल के होने के बाद भी रविशंकर का दिल जवान था। उनकी उम्र भले ही बढ़ती जा रही थी, लेकिन दिल से वह कभी भी बूढ़े नहीं हुए। रविशंकर मानते थे कि जिंदगी एक संघर्ष है और इस संघर्ष के साथ चलना ही जीवन है। मुझे इस संघर्ष में मजा आता है। आज भी शास्त्रीय संगीत को कुछ नया देने की चाहत रखने वाले सितार वादक ने बुधवार सुबह संगीत की दुनिया को अलविदा कह दिया।

संगीत का सफर

पंडित रविशकर देश के उन प्रमुख साधकों में से थे, जो देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी काफी लोकप्रिय थे। वे लंबे समय तक तबला उस्ताद अल्ला रक्खा खां, किशन महाराज और सरोद वादक उस्ताद अली अकबर खान के साथ जुड़े थे। वाइलिन वादक येहुदी मेनुहिन और फिल्मकार सत्यजीत रे के साथ ने उनके संगीत सफर को एक नया मुकाम दिया।

पंडित रविशकर को उनके संगीत सफर के लिए 1999 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी नवाजा गया। उन्हें 14 मानद डॉक्ट्रेट, पद्म विभूषण, मेगसायसाय पुरस्कार, तीन ग्रेमी अवॉर्ड और 1982 में गांधी फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ मौलिक संगीत के लिए जार्ज फेन्टन के साथ नामाकन मिला था।

प्रसिद्ध सितार वादक एवं शास्त्रीय गायक शुजात हुसैन खान ने एक बार कहा था कि मेरा मानना है इस वक्त सितार में दो प्रमुख विरासत हैं। वर्तमान दौर के साधक उस्ताद विलायत खां साहब और पंडित रविशकर। खान ने कहा पंडितजी ने सितार को पूरी दुनिया में लोकप्रिय किया और उन्होंने एक राह दिखाई, जिस पर नई पीढ़ी के संगीतज्ञ चल रहे हैं। उन्होंने कहा सितार बहुआयामी साज होने के साथ ही एक ऐसा वाद्य यंत्र है, जिसके जरिये भावनाओं को प्रकट किया जाता है और पंडित जी ने इस काम को बखूबी निभाया है।

शास्त्रीय संगीत में पंडित रविशकर के कद का पता दो ग्रेमी पुरस्कार विजेता तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन के उस बयान से पता चलता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि वे अपने जीवन का सबसे बड़ा पुरस्कार पंडित रविशकर द्वारा उन्हें उस्ताद कहने को मानते हैं। उस वक्त उनकी उम्र केवल 20 वर्ष की थी।

पंडितजी के बारे में जॉर्ज हैरिसन ने कहा है कि रविशकर विश्व संगीत के गॉडफादर हैं। पंडित रविशकर ने पहला कार्यक्रम 10 साल की उम्र में दिया था। भारत में पंडित रविशकर ने पहला कार्यक्रम 1939 में दिया था। देश के बाहर पहला कार्यक्रम उन्होंने 1954 में तत्कालीन सोवियत संघ में दिया था और यूरोप में पहला कार्यक्रम 1956 में दिया था।

1944 में औपचारिक शिक्षा समाप्त करने के बाद वे मुंबई चले गए और उन्होंने फिल्मों के लिए संगीत दिया। उन्होंने सारे जहां से अच्छा का संगीत बनाया है।

बचपन में तकरीबन आठ साल वो अपने बड़े भाई के साथ रहे और इस दौरान अमेरिका और यूरोप के कई दौरे किए। जिससे इन देशों के लोगों की पसंद और उनके मन को परखने में उन्हें काफी मदद मिली।

पंडितजी का जीवन

पंडितजी का जन्म उत्तरप्रदेश के वाराणसी में हुआ था। 7 अप्रैल 1920 में उनका जन्म हुआ था। उनका परिवार मूलत पूर्वी बंगाल के जैस्सोर जिले के नरैल का रहने वाला था, जो अब बाग्लादेश में रहने लगे थे। बीटल्स ग्रुप और जॉर्ज हैरीसन जैसे प्रख्यात अंतरराष्ट्रीय संगीतकारों के प्रेरणा स्त्रोत रह चुके पंडित रविशकर के मुताबिक संगीत ही उनके जीवन की प्रेरणा रहा है और उन्होंने जिंदगी भर ना सिर्फ इसका लुत्फ उठाया है बल्कि इसे महसूस भी किया है।

अपने परिवार के बारे में एक बार उन्होंने कहा था, मुझे अपनी दोनों बेटियों पर गर्व है। अनुष्का ने हाल ही में एक बेटे को जन्म दिया है। हमने उसका नाम ज़ुबिन रखा है। मेरी पत्नी सुकन्या ने अब तक बहुत अच्छी तरह से मेरा खयाल रखा है।

पंडित रविशकर को भारत और अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों से ऑनरेरी डिग्री मिल चुकी हैं। वो संगीत जगत का अंतरराष्ट्रीय ग्रैमी पुरस्कार भी जीत चुके हैं। उनकी बेटी अनुष्का शकर भी विश्व प्रसिद्ध सितार वादक हैं और वो भी ग्रैमी पुरस्कार जीत चुकी हैं।

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