गुड़गाँव बना अमीरों की झुग्गी?- पार्ट 1

गुड़गांव की एक पॉश कॉलोनी में करीने से सजाए गए बंगले में रहने वाला दत्त परिवार गर्मियों की छुट्टियां हॉन्ग-कॉन्ग में बिताता है.

ड्रॉइंग रूम में कदम रखते ही बड़े-बड़े आरामदायक सोफे, हर कोने में सजे हुए फूलदान और दीवारों पर लगी खूबसूरत पेंटिंग्स आपका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती हैं.

आरामदायक ज़िंदगी का एहसास देने वाले इस घर की असलियत रसोई घर में पहुंचने पर उजागर होती है.

रसोई में दर्जनों पानी की बोतलें रखी हैं जिन्हें घर की सुरुचि संपन्न मालकिन बीना दत्त हड़बड़ी में भर रही हैं.

अगले दस मिनट में पानी की सप्लाई बंद हो जाएगी और अगर पानी नहीं भरा गया तो घर के लोग प्यासे तरस जाएँगे.

ये नज़ारा गुड़गांव की ज़्यादातर रईस कॉलोनियों में हर सुबह पेश आता है.

गुड़गांव- वो शहर जिसे एक दशक पहले उभरते हुए भारत का प्रतीक कहा जाता था. लेकिन आज यहां पानी और बिजली जैसी मूलभूत सेवाओं के अभाव ने अमीरों को भी ग़रीब होने का एहसास दिला दिया है.

दत्त परिवार जैसे कितने ही समृद्घ परिवार हैं यहां, जो पानी की ज़रूरत को पूरा करने के लिए हर महीने आठ से दस हज़ार रुपए खर्च करने को मजबूर हैं.

कभी-कभी तो आलम ये होता है कि यहां के पढ़े-लिखे समृद्ध लोग भी टैंकरों से पानी लेने के लिए आपस में तू-तू मैं-मैं पर उतर आते हैं.

सपनों का शहर?

गुस्से में बीना दत्त कहती हैं, “हम ये सोच कर गुड़गांव आए थे कि चूंकि ये एक नया शहर है, तो यहां की योजना वर्ल्ड क्लास होगी और हमें हर सुख-सुविधा मिलेगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. सिर्फ नाम है डीएलएफ का. यहां न तो हमें पानी की सुविधा है और न ही बिजली की.”

परिवार के मुखिया हरिकृष्ण लाल दत्त रिटायर्ड प्रिंसिपल हैं और परिवार की इतनी आमदनी है कि गर्मियों की छुट्टियां विदेश में बिताना उनके लिए कोई मुश्किल काम नहीं है.

दत्त कहते हैं, “हम तो अपने बच्चों को भी गर्मियों में हॉन्ग-कॉन्ग भेज देते हैं. कम से कम वहां वो सब सुख-सुविधाएं उपलब्ध हैं जो एक आम आदमी के पास होनी चाहिए.”

गुड़गांव की इन चमचमाती हुई कॉलोनियों में अगर चंद घंटे ही सड़कों पर बिताएं जाएं, तो कई पानी के प्राइवेट टेंकर घूमते नज़र आ जाते हैं.

इनकी यहां जबरदस्त मांग है, लेकिन ये कोई नहीं जानता कि टैंकर वालों के पास बेचने के लिए ये पानी आता कहां से है.

अमीरों की इस बस्ती में ये हर रोज़ हज़ारों रुपए का पानी बेचते हैं, लेकिन चोरी-छुपे.

इनसे कोई सवाल-जवाब करे, तो ये झट से अपना पाइप लपेट कर वहां से छू-मंतर हो जाते हैं.

अंधेर नगरी

तेज़ी से समृद्ध होते इस शहर में ये नहीं पता चलता कि नियंत्रण आखिर है किसके हाथ में.

पानी की खपत पर कोई सरकारी नियंत्रण नहीं है.

कुछ लोग प्राइवेट टैंकरों पर निर्भर हैं तो बहुत से लोगों ने सरकारी अफसरों को रिश्वत देकर अपने घरों में गैरकानूनी बोरवेल लगवा लिए हैं.

उधर चमचमाते हुए शॉपिंग मॉल्स और सैंकड़ों शीशे की इमारतों में बसे कॉरपोरेट ऑफिसों में भी निजी बोरवेलों से ही पानी सप्लाई की जाती है.

इसके अलावा सैंकड़ों निर्माणाधीन परियोजनाओं के लिए भी कथित तौर से भू-जल का ही प्रयोग किया जा रहा है.

आज पानी को लेकर बवाल इसलिए उठा है क्योंकि स्थानीय लोगों को ये आभास होना शुरू हो गया है कि जमीन के भीतर पानी हमेशा नहीं बना रह सकता.

बड़े बड़े ब्लिडर इसी पानी को खींचकर इमारतें बनाने के काम में लगा रहे हैं. जानकार कहते हैं कि पानी की किल्लत के पीछे यही कारण है और इसीलिए इस शहर में रहने वाले लोग हमेशा इस दहशत में रहते हैं कि पानी कहीं खत्म न हो जाए.

इस संकट को दूर करने के लिए अब कुछ नागरिकों ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया है.

गुड़गांव में साल 2006 में केंद्रीय भू-जल प्राधिकरण ने एक अधिसूचना जारी कर कहा था कि निर्माण कार्य के लिए भू-जल का इस्तेमाल बंद किया जाना चाहिए. लेकिन पिछले दस सालों में ऐसा नहीं किया गया.

गुड़गांव सिटिज़न काउंसिल की वकील निवेदिता शर्मा कहती हैं, “नतीजा ये है कि आज 60 प्रतिशत जनता को पानी की सप्लाई नहीं मिलती है. आखिर इतने फ्लैट और बिल्डिंग क्यों बनाई जा रही हैं, जबकि बढ़ती आबादी की मूलभूत ज़रूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं है?”

बिखरी उम्मीदें

निवेदिता शर्मा का कहना है कि गुड़गांव की 20 लाख की जनता को हर दिन करीब 20 करोड़ लीटर पानी की ज़रूरत पड़ती है, जबकि हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण यानि हुडा केवल पांच करोड़ लीटर की ही सप्लाई कर पाता है.

जबकि हुडा का कहना है कि वो शहर की 80 प्रतिशत पानी की ज़रूरतों को पूरा कर रहा है.

लेकिन यहां सवाल ये उठता है कि अगर 80 प्रतिशत जनता को पानी की सप्लाई हुडा से मिल रही है तो गुड़गांव में कथित तौर पर 30,000 बोरवेल खोदने की ज़रूरत ही क्यों पड़ी?

मिलेनियम सिटी कहलाए जाने वाले गुड़गांव को भारत की भविष्य के शहरों के लिए एक उदाहरण माना जाता था, लेकिन यहां मूलभूत सेवाओं का ढांचा विकास की रफ्तार को पकड़ने में विफल रहा है.

शायद इसीलिए हरीकृष्ण लाल को इस शहर का भविष्य उज्जवल नहीं दिखाई देता.

वे कहते हैं, “गुड़गांव को भले ही मिलेनियम सिटी का नाम दिया गया हो, लेकिन ज़मीनी स्थिति को देखते हुए मैं ये कहूंगा कि ये धारणा बकवास है. गुड़गांव कभी सही मायने में कभी ये दर्जा हासिल नहीं कर पाएगा.”

आखिर क्यों ये सपनों का शहर लोगों के उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया?

 

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