संतों की दुनिया में कोई राजा या कलमाड़ी नहीं होता

नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के रूप में पेश किए जाते हैं या नहीं, यह सवाल आगे का है लेकिन इसी मुद्दे पर जनता दल यूनाइटेड [जद यू] के नेता शिवानंद तिवारी के बयान ने संतों के तेवर तीखे कर दिए हैं। महाकुंभ क्षेत्र में आए संत राजनीतिक हस्तियों की विश्वसनीयता पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्राचीन काल से ही संत राजनीति को दिशा देते आए हैं। जूना अखाड़ा के जगदगुरु स्वामी पंचानन गिरि ने तो यहां तक कह दिया कि संतों की दुनिया में कोई राजा या कलमाड़ी नहीं है।

शिवानंद के बयान पर संतों ने जिस तरह तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है, उससे इस मुद्दे के तूल पकड़ने की संभावनाएं हैं। विहिप के नेता जहां इस मामले पर कुछ भी बोलने से परहेज करते दिखे, वहीं शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद ने सधी प्रतिक्रिया जताई। उन्होंने कहा-इस मसले को जनता के हवाले कर देना चाहिए। प्रधानमंत्री जनता चुनती है, यह उनका अधिकार है। हमारा काम उन्हें दिशा देना है, जो उस पद पर बैठेगा। उसे हम जनहित में कार्य करने का आशीर्वाद देंगे, ताकि समाज का भला हो। संतों के लिए समाज का हर व्यक्ति बराबर है चाहे वह प्रधानमंत्री हो या न हो। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने अलबत्ता शिवानंद तिवारी के बयान की निंदा की- हर व्यक्ति को अपना विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता है। कुछ लोग उसका गलत उपयोग करते हैं। वे अपने स्वार्थ को संतों के माध्यम से दूसरों पर थोप रहे हैं। अगर संत उनका नाम प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत करेंगे तो उनका यह बयान न होता। वैसे यह जनता का मामला है वही इसका निर्णय करे। काशी सुमेरुपीठाधीश्‌र्र्वर स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि संत प्राचीनकाल से राजनीति को दिशा देते आए हैं। श्रीराम और कृष्ण भी संतों की सलाह पर अपना राज्य चलाते थे। इसी कारण उनके राज्य में सबको समान अधिकार प्राप्त था। दूसरी ओर जूना अखाड़ा के जदगुरु स्वामी पंचानन गिरि ने राजनेताओं को अपनी हद में रहने की सीख दे डाली। कहा कि संत समाज के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करके त्याग करते हैं, संतों में कोई राजा, कलमाड़ी, बंगारू लक्ष्मण जैसे व्यक्ति नहीं होते। कुरुक्षेत्र पीठाधीश्‌र्र्वर जगदगुरु स्वामी महेशाश्रम ने कहा कि धर्म से राजनीति को ऊर्जा मिलती है, धर्मविहीन राजनीति आवारा पशुओं के समान होती है। यही कारण है कि प्राचीनकाल से शासन चलाने वाले लोग संतों की सलाह पर ही काम करते थे। संतों का विरोध करने वाले समाज का भला नहीं कर सकते क्योंकि उनकी सोच काफी छोटी है। अग्नि अखाड़ा के सचिव एवं श्रीमहंत स्वामी कैलाशानंद ने कहा कि राजनीति जब-जब दिशाहीन हुई है तब संतों ने उन्हें दिशा दी है, आगे भी हम अपने कर्तव्य का पालन करते रहेंगे, क्योंकि हमारा मुख्य उद्देश्य समाज कल्याण है, जो राजनीति से संचालित होती है, इसलिए उसकी गंदगी दूर करने के लिए हम किसी भी हद तक जा सकते हैं

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