तीन करोड़ को छोड़ा ‘बेसहारा’

kumbhstamp1 2013-2-11इलाहाबाद । कुंभ मेला 2013 का सबसे महत्वपूर्ण पर्व मौनी अमावस्या। सिर्फ इसी एक दिन के लिए उप्र सरकार का पूरा प्रशासनिक अमला, रेलवे का पूरा अमला पिछले लंबे समय से तैयारियों में जुटा रहा। तीन करोड़ से अधिक श्रद्धालु आने का आंकलन भी लगाया गया था पर जब मौका आया तो सब नदारद हो गए। संगम से लेकर इलाहाबाद जंक्शन तक बेहद अफसोसजनक अराजकता का माहौल दिखा। पूरा प्रशासनिक अमला शाही स्नान को संपन्न कराने में लगा रहा। बगल में संगम घाट पर महिलाएं, वृद्ध व बच्चे बारबार मच रही भगदड़ के बीच कुचले जाते रहे पर कोई देखने नहीं आया।

यहां कोई मौत नहीं हुई तो यह गंगा मइया की कृपा थी। यह अलग बात है कि इलाहाबाद जंक्शन पर अधिकारियों की इस लापरवाही की सारी कसर निकल गई। यहां बेसहारा छोड़ी गई दो लाख से अधिक श्रद्धालुओं की भीड़ जरा-सी बात पर भड़की तो दर्जनों महिलाएं, बच्चे व बुजुर्ग कुचल गए। 37 की मौत हो गई सौ से अधिक घायल हो गए।

1250 करोड़ के कुंभ मेले को संपन्न कराने के लिए मंडलायुक्त की अध्यक्षता में एक कोआर्डिनेशन समिति बनी थी। इस समिति का काम ही था श्रद्धालुओं को संगम तक पहुंचा कर वापस उनके गंतव्य तक पहुंचाने का इंतजाम करना। यह समिति पूरी तरह निष्क्रिय बनी रही। शाही स्नान घाट से सटे हुए संगम घाट पर पहुंचे करोड़ों श्रद्धालु इस उपेक्षा का शिकार बने। यहां शनिवार रात से ही यहां लगातार भगदड़ मचती रही। स्थिति यह थी कि श्रद्धालु सीधे गंगा के किनारे तक सरसामान लेकर पहुंच रहे थे और किनारे पर कब्जा करके खड़े हो जाते थे। यहां कपड़े बदलने आदि में वक्त लग रहा था। पीछे से लगातार आ रहा श्रद्धालुओं का रेला गंगा तक पहुंचने के लिए दबाव बनाता था तो इनमें से दर्जनों श्रद्धालु हर बार नदी में गिर जाते थे। इसी तरह जब स्नान करके निकलने वाले श्रद्धालु दबाव बनाते थे तो स्नान के लिए आ रहे व घाट पर परिजनों के इंतजार में खड़े श्रद्धालुओं के बीच संघर्ष की स्थिति बन जाती थी। इस भगदड़ में बड़ी संख्या में महिलाएं, वृद्ध व बच्चे कुचल कर घायल हुए। लाखों के कपड़े, चप्पल-जूत व अन्य सरसामान घाट पर ही छूट गए।

इलाहाबाद जंक्शन इस उपेक्षा का सबसे बड़ा उदाहरण बना। यहां व्यवस्था यह बनी थी कि हर प्लेटफार्म पर एक मजिस्ट्रेट व पुलिस बल तैनात रहेगा। रेलवे ने प्लेटफार्म पर भीड़ बढ़ने से रोकने के लिए हर दिशा के लिए अलग-अलग बाड़े स्टेशन के बाहर बना रखे थे। दावा यह किया गया था कि इन बाड़ों में श्रद्धालुओं को एकत्र किया जाएगा। टिकट समेत सारी सुविधाएं दी जाएंगी और ट्रेन आने पर उन्हें ले जाकर उसमें बिठा दिया जाएगा। यह सारी कवायद हवा हवाई साबित हुई। सारी भीड़ प्लेटफार्म पर थी और उन्हें सुरक्षित गंतव्य तक पहुंचाने वाला कोई नहीं थी। यहां तक कि भगदड़ मचने के बाद भी रेलवे के अधिकारियों को पहुंचने में दो घंटे से अधिक लग गए।

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