डीएमके यूपीए सरकार से बाहर, दिया 21 तक का अल्टीमेटम

cabinet-ministers-fails-to-broker-peace-with-karunanidhi-over-sri-lankaनई दिल्ली। श्रीलंकाई तमिलों के मुद्दे पर सरकार से नाराज चल रही डीएमके ने मंगलवार को यूपीए सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। हालांकि उसने 21 मार्च से पहले मांगों से संबंधित प्रस्ताव संसद से पास कराए जाने पर अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का भी एलान किया है। उधर, वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने सरकार पर किसी भी खतरे से इन्कार करते हुए कहा कि सरकार इस संबंध में संसद में प्रस्ताव लाने को तैयार है। मालूम हो कि लोकसभा में डीएमके के 18 सांसद हैं और समर्थन वापसी के बाद सरकार के पास 224 सांसदों का ही समर्थन बचा है। हालांकि सपा, बसपा, राजद, जदएस के 61 सांसदों के बाहर से समर्थन जारी रहने से सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा। यूपीए सरकार में डीएमके के कोटे से एक कैबिनेट और चार राज्यमंत्री हैं। सभी मंत्री आज शाम पांच बजे अपना इस्तीफा प्रधानमंत्री को सौपेंगे।

डीएमके प्रमुख एम करुणानिधि ने मंगलवार को चेन्नई में सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा की। उन्होंने कहा कि यदि 21 मार्च तक उनकी मांगों से संबंधित प्रस्ताव संसद से कराया जाता है तो वह अपने फैसले पर पुनर्विचार कर सकते हैं। गौरतलब है कि 21 को जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की बैठक है जिसमें अमेरिका श्रीलंका में तमिलों पर हुए अत्याचार के खिलाफ एक प्रस्ताव लाने जा रहा है। डीएमके की मांग है कि भारत न सिर्फ इस प्रस्ताव का समर्थन करे बल्कि अपनी तरफ से कुछ बातें इसमें जोड़े।

इससे पहले करुणानिधि को मनाने चेन्नई पहुंचे उनके करीबी रक्षा मंत्री एके एंटनी, वित्त मंत्री पी. चिदंबरम और कांग्रेस के तमिलनाडु प्रभारी एवं स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद के सामने करुणानिधि ने दो नई मांगें रखी। उन्होंने केंद्रीय मंत्रियों से संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में अमेरिकी प्रस्ताव पर उनके द्वारा दिए गए दो संशोधन को मंजूर कर संसद से पारित कराने की मांग की। पहले संशोधन में श्रीलंकाई सेना द्वारा तमिल ईलम पर हुए अत्याचारों को नरसंहार और युद्ध अपराध की श्रेणी में रखने की मांग। दूसरे सुझाव में उन्होंने कहा कि युद्ध अपराध, मानवता विरोधी अपराध, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के उल्लंघन व तमिलों के नरसंहार की समयबद्ध जांच को विश्वसनीय व स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय आयोग गठित हो।

उल्लेखनीय है कि घरेलू माहौल साधने की कवायद में केंद्र सरकार ने 25 मार्च को श्रीलंका के साथ संभावित रक्षा सचिव स्तरीय सैन्य संवाद टाल दिया है। वहीं जिनेवा में होने वाले मतदान से पूर्व उच्चस्तरीय विचार-विमर्श के लिए संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि दिलीप सिन्हा को भी दिल्ली बुलाया है। इस कवायद के जरिए मानवाधिकार में संभावित प्रस्ताव पर ताजा स्थिति और भारत का रुख तय होगा। हालांकि, अभी तक द्रमुक की अपेक्षाओं के विपरीत सरकार श्रीलंका का मुखर विरोध करती नहीं दिख रही। 15 मार्च को जिनेवा में श्रीलंका पर यूनिवर्सल पीरियॉडिक रिपोर्ट पर हुए मतदान में भी भारत ने श्रीलंका के आगे तमिलों के मुद्दे पर अपनी अपेक्षाएं तो स्पष्ट कीं, पर निंदा से परहेज किया।

वहीं, भारत में श्रीलंका के राजदूत प्रसाद करियावसम ने कहा, तमिलों के मुद्दे पर श्रीलंका पहले ही काम कर रहा है। अब किसी भी औपचारिक प्रस्ताव का नकारात्मक असर होगा। श्रीलंका में तमिलों के अधिकारों को लेकर पहले भी तमिलनाडु विरोध जताता रहा है। 2012 में मुख्यमंत्री जयललिता ने श्रीलंकाई सैनिकों के प्रशिक्षण को रोकने की मांग की थी, जिसके बाद केंद्र ने उन्हें बेंगलूर स्थानांतरित कर दिया था।

इस बीच, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मंगलवार को पार्टी संसदीय दल की बैठक में कहा कि हम श्रीलंका में मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर अपने कड़े रुख पर कायम हैं। उन्होंने कहा कि हम श्रीलंकाई तमिलों को लेकर पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं। उनके खिलाफ हुए अत्याचारों के आरोप की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि जिस तरह से श्रीलंकाई तमिलों पर अत्याचार और उन्हें कानूनी अधिकारों से वंचित रखने की खबरें आ रहे हैं वह तकलीफदेह है। दूसरी ओर, सोनिया गांधी ने अपने कार्यकर्ताओं को कभी भी लोकसभा चुनाव के लिए तैयार रहने का आह्वान किया है।

यूपीए सरकार को समर्थन :

कांग्रेस – 203

एनसीपी – 9

आरएलडी – 5

एनसी – 3

इंडियन मुस्लिम लीग – 2

केरल कांग्रेस – 1

वीसीके – 1

———

कुल – 224

बाहर से समर्थन :

सपा – 22

बसपा – 21

आएजेडी – 3

जद एस – 3

एआईएमएम – 1

एआईयूडीएफ – 1

निर्दलीय – 9

——

कुल – 61

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