भारतीय स्वाधीनता संग्राम में स्वराज का नारा देने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की आज 92वीं पुण्य तिथि है। तिलक ने अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय जनता को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई थी। अपने समाचार पत्रों में अंग्रेजों के खिलाफ लिखने पर उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा, लेकिन भारत मां का यह सिपाही किसी भी परिस्थिति में नहीं झुका।
भारतीयों को तुरंत स्वराज दे अंग्रेज सरकार
‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा’, के नारे के साथ तिलक ने भारतीय जनता को संघर्ष के लिए तैयार किया। तिलक ने जनता के सामने अंग्रेज सरकार की क्रूरता को उजागर करते हुए भारतीय संस्कृति को अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने मांग की कि ब्रिटिश सरकार तुरंत भारतीयों को पूर्ण स्वराज दे। उन्होंने शराबबंदी के लिए भी आवाज उठाई। तिलक पहले कांग्रेसी नेता थे, जिन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करने की मांग की।
केसरी और मराठा में अंग्रेजों को ललकारा
तिलक ने अपने समाचार पत्रों ‘केसरी’ और ‘मराठा’ के जरिए ब्रिटिश सरकार को ललकारा। इसके लिए अंग्रेज सरकार ने कई बार उन्हें जेल में डाला। ‘क्या ये सरकार पागल हो गई है?’ और ‘बेशर्म सरकार’ जैसे उनके लेखों ने भारतीयों के मन में अंग्रेजों के खिलाफ जबरदस्त क्रांति पैदा की।
इन समाचार पत्रों के लेखों को जनता ने इतना पसंद किया कि 2 साल में ही ‘केसरी’ देश का सबसे ज्यादा बिकने वाला भाषाई समाचार-पत्र बन गया था। लंदन के अखबारों ने तिलक पर लोगों को भड़काने का आरोप लगाया। इस आरोप में तिलक को 18 महीने की जेल हुई। तिलक के विचारों से अंग्रेज इतने अधिक नाराज थे कि उन्होंने तिलक को भारतीय अशांति का दूत घोषित कर दिया।
गणेश उत्सव की शुरुआत की
तिलक इस बात को भली-भांति जानते थे कि जब तक भारतीय जनता को अपनी संस्कृति से नहीं जोड़ा जाएगा, अंग्रेज सरकार से लड़ना मुश्किल है। जाति और संप्रदायों में बटे समाज को एकजुट करने के लिए तिलक ने महाराष्ट्र में गणेश उत्सव और शिवाजी उत्सव की शुरुआत की। उनका मानना था कि इस तरह के सार्वजनिक मेल-मिलाप के कार्यक्रम लोगों में सामूहिकता की भावना का विकास करेंगे। गणेश उत्सव ने अंग्रेजों के खिलाफ जनआंदोलन खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई।
भारतीय इतिहास के लाल-बाल-पाल
आजादी के आंदोलन में उतरने के लिए तिलक ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता ली, लेकिन स्वराज की मांग को लेकर कांग्रेस के उदारवादी नेताओं को उनका रुख पसंद नहीं आया। सन 1907 के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में बंट गई। गरम दल की कमान बाल गंगाधर तिलक के साथ लाला लाजपत राय और विपिन चंद्र पाल को सौंपी गई। यह तीनों नेता भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में लाल-बाल-पाल के नाम से जाने गए।
तलवारों का जमाना बीत गया
बाल गंगाधर तिलक योजना बनाकर काम करने में विश्वास रखते थे। तिलक ने अस्त्र-शस्त्र की ट्रेनिंग लेने के बाद कहा था, ‘मैं जरूरत पड़ने पर देश के लिए जान भी दे सकता हूं, लेकिन बेकार में बिना सोचे-समझे जान गंवाने का मेरा कोई इरादा नहीं है। अब तलवारों का जमाना गया। अब हमें योजनाएं बनाकर लड़ाई लड़नी होगी।’ उनकी इसी क्रांतिकारी सोच के कारण अंग्रेज सरकार उन्हें अपना बड़ा शत्रु मानती थी।
‘आधुनिक भारत का निर्माता खो दिया’
भारतीय जनता के दिलों में बसने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1 अगस्त 1920 को मुंबई में अपनी अंतिम सांस ली। उनके अंतिम संस्कार में 2 लाख से ज्यादा लोग शामिल हुए। उस मृत्यु पर देश में ऐसा कोई भारतीय नहीं था, जिसकी आंखों में आंसू नहीं हो। उनकी मृत्यु पर महात्मा गांधी ने कहा था, ‘हमने तिलक के रूप में आधुनिक भारत का निर्माता खो दिया है।’