आदिवासियों के पारंपरिक हथियारों पर लगा प्रतिबंध

छत्तीसगढ़ के नारायणपुर ज़िले में पुलिस ने आदिवासियों के पारंपरिक हथियार रखने पर पाबन्दी लगा दी है. इन हथियारों में कुल्हाड़ी, टंगिया, तीर-धनुष आदि शामिल हैं.

पुलिस का कहना है कि यह पाबन्दी सिर्फ साप्ताहिक हाट, बाज़ारों और मेलों में पारंपरिक हथियार ले जाने पर लागू रहेगी.

पुलिस अधीक्षक के आदेश में अवहेलना करने वालों पर कानूनी कार्रवाई किये जाने की बात का उल्लेख किया गया है.

हालांकि बढ़ते दबाव के बाद पुलिस ने अब तीर-धनुष पर से प्रतिबन्ध हटाने की बात कही है.

नारायणपुर के पुलिस अधीक्षक मयंक श्रीवास्तव का कहना है कि पहले यह फैसला लिया गया था कि बाज़ार-हाट और मेलों में तीर-धनुष, कुल्हाड़ी, अग्नेआस्त्र, छूरी और चाकू लेकर जाने पर प्रतिबन्ध रहेगा.

अब उनका कहना है कि तीर धनुष पर से प्रतिबन्ध हटा लिया गया है.

बीबीसी से बात करते हुए मयंक श्रीवास्तव ने कहा, “हाट, बाज़ार और मेले हमेशा माओवादियों के निशाने पर रहे हैं. वह अक्सर यहाँ पुलिसवालों पर या फिर आम आदिवासी ग्रामीणों पर हमले करते आ रहे हैं. यही वजह है कि हमने इस तरह का फैसला किया है.”

विरोध

सर्व आदिवासी सभा सहित कई आदिवासी संगठनों नें नारायणपुर पुलिस के इस फैसले का विरोध करना शुरू कर दिया है.

सभा के अध्यक्ष रमेश ठाकुर का कहना है कि कुल्हाड़ी, तीर-धनुष और टांगिया आदिवासियों की परंपरा का हिस्सा है.

उनका कहना है, “इसपर प्रतिबन्ध लगाना दुर्भाग्यपूर्ण है. सरकार माओवादियों से लड़ने में अक्षम है और वह इसका गुस्सा आम आदिवासी ग्रामीणों पर निकाल रहे हैं. यह हमारे पारंपरिक अधिकारों का हनन है.”

सियासी हलचल

मगर पुलिस का तर्क है कि वह यह प्रतिबन्ध सिर्फ हाट-बाज़ारों के लिए ही लगा रही हैं.

दूसरी जगहों पर इन पारंपरिक हथियारों को लेकर जाया जा सकता है.

पुलिस के अधिकारी कहते हैं कि बाज़ार-हाट जाने वाले आदिवासी अपने पारंपरिक हथियार निकटवर्ती थाने या पुलिस कैंप में जमा कर सकते हैं.

चूँकि वर्ष 2013 में छत्तीसगढ़ में विधान सभा के चुनाव होने वाले हैं, इसलिए नारायणपुर की पुलिस के इस आदेश ने सियासी हलचल बढ़ा दी है.

अब भारतीय जनता पार्टी के अन्दर से ही इस आदेश के विरोध के स्वर उठने लगे हैं.

 

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