आज आजादी का दिन है। इस लिहाज से सार्वजनिक अवकाश है। आप फुरसत में हैं, आपको ऑफिस, दुकान या स्कूल नहीं जाना। आज का दिन तो आजाद है लेकिन क्या रोज ऐसा हो सकता है? हर उम्र का व्यक्ति किसी न किसी चीज का गुलाम है। उस पर समय और जिम्मेदारियों की बेड़ियां पड़ी हैं।
बचपन और बुढ़ापे को आजाद पंछी माना गया है। यहां काम का बोझ नहीं होता। लेकिन आज बचपन से लेकर बुजुर्गियत तक कोई भी आजाद नहीं। प्ले स्कूल ने डेढ़ साल के मासूम के खेलने और जी भर कर सोने की आजादी छीन ली है। दूसरी तरफ जीवन के आखिरी पड़ाव में अपनों के बीच सकून के पल बिताने की हरसत ओल्ड एज होम की दीवारों में कैद गई है।
आम आदमी पैसा बनाने की अंधी दौड़ में जुटा है। सुबह का निकला देर रात घर में घुसता है। औरत घर और बच्चे संभालने वाली मशीन बन चुकी है। किशोर लड़के पर कैरियर बनाने और टॉप करने की अपेक्षाएं लदी हैं। लड़की को अकेले घर से बाहर निकलने में डर लगता है। मतलब साफ है। क्या हम आजाद देश के गुलाम नागरिक हैं?
आपका नजरिया……..
आपकी नजर में आजादी कैसी होनी चाहिए? आज गुलामी के मायने क्या हैं? क्या आपकी आजादी में कोई खलल डाल रहा है? तो देर किस बात की, खोल दीजिए अपनी शिकायतों का पिटारा और हमे लिखिए अपने दिल की बात।
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