इस तर्क को मान भी लिया जाए तो सिन्हा ने जो कुछ कहा है, उसे सिरे से भी नहीं नकारा जा सकता। आखिरकार वे भी वित्त मंत्री व आर्थिक मामलों के जानकार रहे हैं। केवल खीज निकालने मात्र के लिए हवाई अथवा अतथ्यात्मक बात नहीं कर सकते। जनता तो सब समझ रही है, क्योंकि वह भोग रही है, मगर वे कुंठा निकालने मात्र के लिए अपनी प्रतिष्ठा को दाव पर नहीं लगा सकते। अगर उनका मकसद केवल वित्त मंत्री को विफल बताना है, तो भी ऐसे ही तर्कों का सहारा लेंगे न, जो कि आसानी से गले उतर जाएं।
यूं भी यह कोई रहस्य नहीं कि जीडीपी में गिरावट दर्ज की गई है और जीएसटी पर अमल के बाद आर्थिक सुस्ती का माहौल बना है। यह पहले से स्पष्ट था भी कि जीएसटी पर अमल के दौरान बाधाएं आएंगी और उसका कुछ न कुछ असर आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों पर पड़ेगा। यह भी पहले से स्पष्ट था कि नोटबंदी का कुछ न कुछ विपरीत असर जीडीपी के आंकड़ों पर दिखेगा। इस परिपेक्ष में भी सिन्हा का बयान उचित प्रतीत होता है।
इसमें कोई दोराय नहीं कि कालेधन की अर्थव्यवस्था पर लगाम लगाने और कर व्यवस्था में सुधार करने की जरूरत के तहत ही नोटबंदी व जीएसटी के प्रयोग किए गए, इसको लेकर सरकार पर सवाल खड़े नहीं किए जा सकते, मगर पुख्ता बंदोबस्त किए बिना ही जल्दबाजी में लागू किए जाने के कारण समस्याएं उत्पन्न हुई है। हुआ ये कि पहले तो बिना सोचे समझे नोटबंदी लागू की, जिससे बाजार का हाल बेहाल हो गया, फिर यकायक जीएसटी भी लागू कर दी, नतीजा ये हुआ कि बाजार संभलता, उससे पहले ही उसे एक और बड़ा झटका लग गया। यह सरकार भी समझ ही रही होगी। विशेष रूप से जीडीपी में गिरावट आने के बाद तो यह स्पष्ट हो ही गया कि त्रुटि हो गई है। हां, भले ही जेटली ने अर्थव्यवस्था को डुबोने के लिए ऐसा सायास नहीं किया हो, जैसा कि सिन्हा के बयान में कहा गया है, मगर इतना तो तय है कि गलत कदम का नुकसान देश भुगत रहा है।
यदि यह मान भी लिया जाए कि टैक्स देने वालों की संख्या बढ़ी है, सब्सिडी का दुरुपयोग रुका है और वित्तीय समावेशन का दायरा बढ़ा है, मगर दूसरी ओर आर्थिक हालात बिगड़े हैं, इसे नकारा नहीं जा सकता। सिन्हा का बयान कुंठा मान कर यदि सरकार आंख मूंदने की कोशिश करती है तो यह एक और बड़ी गलती होगी।
-तेजवानी गिरधर
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