अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग छह
श्री रास बिहारी गौड़
हास्य-व्यंग्य लिखने वाले किसी साहित्यकार की जीवन शैली भी हास्य और व्यंग्य से लबरेज हो, ऐसा इत्तेफाक कम ही मिलेगा। बात-बात में, हर बात में से झटपट हास्य-विनोद तलाश कर परोसना नि:संदेह विलक्षण क्षमता का द्योतक है। ऐसा अद्भुत, सजीव हास्य-पुंज, मस्तमौला हमारे अजमेर में उन्मुक्त ठहाके लगाता, लगवाता है। जी हां, अगर आप उनको निजी तौर पर जानते हैं तो जरूर मेरी बात की ताईद करेंगे। उनके रुक-रुक कर लंबे ठहाके लगाने का स्वछंद अंदाज ही ऐसा है कि बरबस अपनी ओर खींच लेता है। अगर किसी की बात पर आप की हंसी छूट पड़े, वो तो सामान्य है, मगर खुद बात करने वाला भी गर उसे एंजोय कर रहा है, तो इसके मायने वह यह सब स्वांत: सुखाय कर रहा हो सकता है। ऐसा हो ही नहीं सकता कि वे जिस चक्कलस या महफिल में बैठे हों, वहां हंसी-ठट्ठे की आवाजें न गूंजती हों।
हम बात कर रहे हैं टीवी लाइव शो लॉफ्टर चैलेंज के जरिए अजमेर का नाम रोशन करने वाले श्री रासबिहारी गौड़ की, जो किसी परिचय के मोहताज नहीं। राष्ट्रीय साहित्यिक क्षितिज पर उनके कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अजमेर जैसे शहर में नेशनल लेवल के लिटेरचर फेस्टिवल आयोजित कर चुके हैं, जिनमें देश के टॉप के साहित्यकार शिरकत करते रहे हैं। साहित्य के क्षेत्र में उनके इस दुस्साहस, मैं उसे दुस्साहस ही कहूंगा, उसकी अपनी अलग कहानी है, को दाद देने का मन करता है। ऐसे फेस्टिवल अजमेर जैसे टांग-खिंचाऊ शहर में आयोजित करना तो दूर, उसके बारे में सोचने की तक की हिम्मत किसी साहित्यकार अथवा आयोजक ने नहीं जुटाई है। उनके प्रयासों से जल्द ही एक और लिटरेचर फेस्टिवल होने वाला है। ऐसी शख्सियत पर अजमेर को नाज होना चाहिए।
ऐसा नहीं हैं कि वे केवल आला दर्जे के हंसोड़ ही हैं, बल्कि उतने ही धीर-गंभीर चिंतक भी हैं, जो कि देश के ज्वलंत विषयों पर उनकी नक्काशी लेखनी में झलकती है। बतौर बानगी चंद्रयान की विफलता पर फेसबुक पर उनकी त्वरित टिप्पणी के कुछ अंश देखिए:-
हमने अनेक क्षेत्रों के अनेक अभियानों में कई कई उपलब्धियां अर्जित की(भले ही उन्हें नकारने का राजनीतिक आग्रह इन दिनों प्रबल है)। अंतरिक्ष में आदमी भेजने से लेकर परमाणु विस्फोट तक। हर अभियान को पहले अभियान बनाया और बाद में उसकी सफलता का जश्न। लेकिन चंद्रयान के केस में हमने मिशन को ईवेंट बना दिया। एक दिन पहले प्रधानमंत्री ने देश से लाइव देखने का आग्रह कर दिया। स्वम प्रयोगशाला में दर्जनों कैमरों के बीच अपनी व्यग्रता का सीधा प्रसारण करवाया। जरा सोचिए..! अति महत्वाकांक्षी प्रयोग का लाइव टेलीकास्ट समूचे वैज्ञानिक मन पर कितना दबाब बना रहा होगा। वह दबाब ही था जो इसरो प्रमुख की आंख से आंसू बनकर टपका। माना प्रधानमंत्री को उसका क्रेडिट या राजनीतिक लाभ लेना था तो यह प्रयोग की सफलता के बाद विधिवत बधाई या सम्मान समारोह आयोजित कर लिया जा सकता था और असफलता के संदर्भ में चुपचाप नई शुरुआत की जा सकती थी। खेलों के मामले में दबाब झेलते खिलाडिय़ों को हमने नायक से खलनायक बनते कईं बार देखा है।
सतही महत्वकांक्षा के कारण विज्ञान सहित आम देशवासी को बेवजह असफलता बोध भोगना पड़ा। स्वयं को महानायक सिद्ध करने की चाह में हमने अपने नायक के आंसुओं को भी इवेंट बना दिया।
अभियान को इवेंट मत बनाइये। वरना हम असली नायकों में फिल्मी हीरो देखना शुरू कर देंगे, जिसकी उम्र मात्र तीन घंटे होती है। हमें अबुल कलाम चाहिए, जो तीन घंटे नहीं, तीन पीढिय़ों तक याद रहे। आंसू का क्या, वे तो कैमरा हटते ही सूख जाते हैं।
यद्यपि उनकी पहचान एक हास्य कवि के रूप में कायम हुई है, मगर व्यवस्था पर कड़क चोट करने की वजह से कई बार विरोधी विचारधारा वाले विचलित हो कर उन्हें ट्रोल करने लगते हैं।
यद्यपि उनकी आजीविका का जरिया सरकारी नौकरी है, मगर आज एक प्रतिष्ठित लॉफ्टर के रूप में देशभर में उनकी मांग बनी हुई है। स्वर्गीय श्री गिरिराज किशोर गौड़ के घर 25 जनवरी 1964 को जन्मे श्री गौड़ ने बीएससी की डिग्री हासिल की है। वे शुरू से कविता, साहित्य के सरोकारों के सामाजिक गतिविधियों में जुड़े हुए हैं। वे अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित कवि सम्मेलन व लॉफ्टर शो में शिरकत करते रहते हैं। कई टीवी चैनल्स पर काव्य पाठ कर चुके हैं। उनकी रचनाएं देशभर की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। उनकी एक पुस्तक लोकतंत्र के नाम प्रकाशित हो चुकी है। स्थानीय न्यूज चैनल पर अनेक राजनीतिक वार्ताएं आयोजित कर चुके हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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