अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग ग्यारह
अजमेर की पत्रकार बिरादरी में कुछ नाम ऐसे भी रहे, जिन्हें फील्ड पर कभी नहीं देखा गया, या यूं कहें कि एडिटिंग डेस्क व पेज डिजाइनिंग से शुरुआत की और अंत तक उसी वर्क प्रोफाइल में रह कर एक इतिहास हो गए। उनमें से दो ऐसे हैं, जिनसे वर्षों का साथ रहा, मगर मुझ से ज्यादा करीबी वरिष्ठ पत्रकार श्री अमित टंडन की है, लिहाजा उन पर उन्होंने ही कलम चलाना सहज स्वीकार कर लिया।
पेश है उनका नजरिया:-

श्री यशवंत भटनागर
ऐसे नामों में दो लोग याद आते हैं। एक श्री यशवंत भटनागर और दूसरे श्री अनिल दुबे। हालांकि श्री दुबे जब तक अजमेर में रहे तो डेस्क तक सीमित रहे मगर पिछले करीब डेढ़ दशक पहले जबसे किशनगढ़ में भास्कर के ब्यूरो चीफ बनाये गए थे तो वहां फील्ड वर्क में भी उन्होंने जड़ें जमाईं।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर वाली कहावत को चरितार्थ करने वाले पत्रकार साथियों में श्री नरेन्द्र चौहान के बाद श्री यशवंत भटनागर का नंबर आता है। आप फितरतन इन्हें रहीम, कबीर, रैदास, कुछ भी संज्ञा दे सकते हैं। दीन दुनिया से दूर एक शांत धीर गम्भीर इंसान।
श्री भटनागर को पत्रकारिता में 30 साल से ज्यादा ही हो गए होंगे। कॉलेज में पढ़ाई के साथ ही उन्होंने दैनिक नवज्योति में डेस्क पर काम शुरू कर दिया था। ये वो दौर था जब बेरोजगार युवा सौ-डेढ़ सौ रुपए की जेबखर्ची के लिए पार्ट टाइम जॉब अक्सर कर लिया करते थे। और उस पर अखबार की नौकरी, तो एक रुतबा माना जाता था। श्री भटनागर का सफर शुरू तो हुआ नवज्योति से, लेकिन जल्दी ही एक मोड़ ऐसा आया कि शहर में आधुनिक राजस्थान नाम से एक और अखबार शुरू हुआ और अपने साथी श्री अरुण बरोठिया के साथ श्री भटनागर उसे जमाने मे जुट गए। उस वक्त छोटे, मझोले हर तरह के अखबार की अहमियत थी और अखबारनवीसों का रुतबा हुआ करता था। आधुनिक राजस्थान ने भी जल्दी पैर जमाए, मगर श्री भटनागर की किस्मत कहीं और लिखी थी। इस बीच रोज़मेल नाम से एक और नया अखबार शुरू हुआ और स्थापित करने वाली टीम में भी श्री भटनागर का नाम जुड़ा। वो अखबार बहुत तेजी से बढ़ा और शहर में छा गया। हालांकि कुछ समय बाद किन्हीं कारणों से रोज़मेल बंद हो गया और श्री भटनागर चूंकि अब पत्रकारिता में रम चुके थे, तो किसी और क्षेत्र में जॉब तलाशने की जगह अखबार में ही काम ढूंढा और उस वक्त के सबसे बड़े टेबलॉयड दैनिक न्याय से जुड़ गए। हर अखबार में उन्होंने डेस्क और समाचारों के संपादन का कार्य ही किया। न्याय में भी हालांकि कुछ टूटन पैदा हुई और कुछ समय के लिए वो अजमेर से बंद हुआ। मगर तब न्याय के अन्य साझेदारों ने अलवर में संस्करण खोला तो श्री भटनागर अपने एक अन्य साथी वरिष्ठ पत्रकार श्री ओम माथुर के साथ अलवर चले गए। (श्री माथुर वर्तमान में दैनिक नवज्योति के स्थानीय संपादक हैं)
अलवर में भी दानापानी ज्यादा नहीं था। इसी दरम्यान न्याय के और साझेदार ने अहमदाबाद में एक अखबार गुजरात वैभव शुरू किया और श्री भटनागर वहां चले गए। कुछ समय वहां कार्य करने के बाद अजमेर लौटे और पुन: उसी दैनिक नवज्योति को जॉइन किया, जहां से कैरियर की शुरुआत की थी। उसके बाद कई साल तक वहीं डेस्क पर संपादन किया। 1997 जब भास्कर ने अजमेर में कदम रखा, तब श्री भटनागर वहां जुड़े और सिटी डेस्क, डाक डेस्क, स्क्रीनिंग डेस्क आदि कई डेस्क के प्रभारी के रूप में अपनी सेवाएं दीं।
ये एक ऐसा सफर था, जिसमें मंजि़ल का पता नहीं था। सिर्फ सड़क थी और चलते जाना था। बस एक जुनून था कि काम करना है। बिना रिपोर्टिंग किये सिर्फ डेस्क पर काम करके पत्रकारिता में एक लंबी पारी खेलना और मीडिया जगत में नाम बनाना आसान नहीं होता। शायद ऐसे उदाहरण मिलें भी नहीं। मगर श्री भटनागर एक अपवाद बने। खबरों का ऐसा ज्ञान, भाषा पर पकड़, सम्पादन में कसावट। अनेक न्यू कमर्स रहे, जिन्होंने उनके अधीन रह कर काम सीखा। श्री भटनागर से मार्गदर्शन पाने वालों में राजस्थान पत्रिका जयपुर संस्करण के स्थानीय संपादक श्री अमित वाजपेयी भी हैं। ऐसे ही अनेक वर्तमान पत्रकार व डेस्क संपादक उनके अधीन रहे और आज अच्छा काम कर रहे हैं।

श्री अनिल दुबे
अब कुछ बात श्री अनिल दुबे की। श्री दुबे आए तो जोधपुर से थे, मगर अजमेर के होकर रह गए। भास्कर में संपादन डेस्क पर काम करते-करते उनमें जब प्रबंधन को योग्यता नजऱ आई, तो उन्हें किशनगढ़ ब्यूरो के प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी गई। जैसा पूर्व में अजऱ् किया कि श्री दुबे ने कभी बिरले ही रिपोर्टिंग की होगी, क्योंकि वे अजमेर संस्करण में डेस्क कार्मिक ही थे। मगर किशनगढ़ में जब प्रभारी के रूप में रिपोर्टिंग का मोर्चा संभाला तो कई आयाम स्थापित किये। मार्बल नगरी की महत्ता के अनुरूप स्थानीय समाचारों को जिले भर में शाया कर वहां अखबार के लिए अच्छा मार्केट तैयार किया। यूं कहें कि भास्कर अखबार को किशनगढ़ में स्थापित करने में श्री दुबे की महत्वपूर्ण भूमिका थी, तो गलत नहीं होगा। असल में ब्यूरो चीफ पर ही विज्ञापन, परिशिष्ट, स्पेशल पृष्ठ आदि की जि़म्मेदारी अधिक होती है। सोर्स डेवलप करके समाचार की संख्या बढ़ाना, अखबार की बिक्री बढ़ाना, रेवेन्यू जनरेट करना, सब ब्यूरो चीफ के ऊपर होता है, और श्री दुबे सबसे लंबे समय तक भास्कर के लिए किशनगढ़ में इस पद पर रहे और बखूबी अपने काम को अंजाम देते रहे।
-अमित टंडन
7976050493

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