अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग तेरह
डॉ श्रीमती शकुंतला तंवर
पत्रकारिता पर तो अक्सर साहित्य से छेड़छाड़ और भाषा को बिगाड़ने के आरोप लगते रहे हैं। हालांकि पत्रकारिता ने हमेशा उस भाषा शैली का इस्तेमाल करने का प्रयास किया है, जिसे आम आदमी आसानी से समझ सके। इस बात से इनकार नहीं है कि यदा कदा कुछ अखबारों ने अपनी ही शब्दावली थोप कर कभी हिंदी को शर्मिंदा किया हो, मगर ऐसे उदाहरण बिरले ही होंगे।
मगर, भाषा को लेकर अक्सर चलने वाले विवादों और बहस के बीच हिन्दी कि साहित्यिक सेवा सेवा करने वाले कुछ भाषा के पुजारी भी रहे जिन्होंने इसे हमेशा इसे पूजा की तरह निभाया।
उनमें से यदि अजमेर से एक बड़ा नाम चुनने की बात आए तो डॉ श्रीमती शकुंतला तंवर का नाम याद आता है।
मुल्क को आजादी मिलने के अगले वर्ष सन 48 में 27 जून को जन्मीं श्रीमती तंवर 1970 में राजकीय महाविद्यालय अजमेर से हिन्दी में स्नातकोत्तर किया और प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण कर अपनी साहित्य यात्रा का आगाज़ किया।
डॉ तंवर वर्ष 2008 तक सावित्री स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्रवक्ता के पद पर कार्यरत रह कर बालिकाओं को हिंदी साहित्य का अपना ज्ञान बांटती रहीं और इस दौरान अपने साहित्यिक सृजन को भी ऊंचाइयों तक ले जाती रहीं। हालांकि अपनी नौकरी से वे जरूर सेवानिवृत्त हैं, लेकिन एक लेखक, कवियत्री या साहित्यकार के रूप में उनकी यात्रा अनवरत है।
“कामायनी एवं उर्वशी महाकाव्यों में कामध्यात्म के नए आयाम” विषय पर अपना शोध पूर्ण कर वर्ष 1987 में राजस्थान विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
श्रीमती तंवर की लेखन विधाओं की बात करें तो, शायद ही कोई क्षेत्र होगा जो छूटा होगा। गीत, कविता, मुक्तक, हाइकु आदि पद्य के अतिरिक्त के गद्य में समीक्षा, आलेख परिचर्चा, निबंध, कहानियां उनकी साहित्यिक यात्रा में उनके साथी रहे। देश भर की अनेक पत्र पत्रिकाओं (गगनांचल, कदिम्बिनी, अणुव्रत, मुम्बई की युगीन काव्या, कोलकाता की नैणसी, हैदराबाद से प्रकाशित संकल्य व पुष्पक, बड़ौदा की नारी अस्मिता, जबलपुर की दीपशिखा, उदयपुर से प्रकाशित मधुमती, जयपुर की साहित्य समर्था, इंदौर की गुंजन आदि) अनेक पत्रिकाओं ने उनकी रचनाओं को स्थान देकर उनकी विचार शीलता का सम्मान किया।
डॉ शकुंतला तंवर की अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुईं जो साहित्य के विद्यार्थियों के लिए प्रेरणास्रोत बनीं। वर्ष 2000 में गीत काव्य “मन में कई समंदर, 2003 में कविता संग्रह “सूर्य की साक्षी में”, 2013 में हाइकु संग्रह “मखमली छुअन”, तथा कविता संग्रह “मुझे भी कुछ कहना है” प्रकाशित हो चुकी हैं, और एक पुस्तक “चिंतन के शिखर पर” प्रस्तावित है।

अमित टंडन
केवल लेखन ही नही, अपितु संपादन भी श्रीमती तंवर का एक पहलू है। 1989 से वर्ष 2007 तक निरन्तर उन्होंने कॉलेज की पत्रिका मृणालिनी का संपादन किया। इसके अतिरिक्त 2011 में आधुनिक काव्य संचयन सहित अनेक न पत्रिकाओं का संपादन अथवा सह संपादन किया। वे आकाशवाणी पर भी सक्रिय रहीं और समय समय पर अनके गोष्ठियों एवं परिचर्चाओं में उनके उपस्थिति नज़र आई। विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं व समूहों से जुड़ कर असंख्य काव्य गोष्ठियां, परिचर्चा, विमर्श बैठकों का आयोजन व संचालन वे करती रही हैं और ये क्रम अब भी जारी है। मशहूर पत्रिका कदिम्बिनी की ओर से गठित कदिम्बिनी क्लब की अजमेर इकाई का वर्षों तक संचालन करके उन्होंने अजमेर के कवियों-साहित्यकारों को एक सूत्र में जोड़े रखा। ना केवल वरिष्ठ सृजनकार उनके आयोजनों का हिस्सा रहे, बल्कि नवांकुरों को भी वे मंच प्रदान कर आगे बढ़ाती रहीं।
साहित्य सेवा के लिए उन्हें कई बार अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया जाता रहा है। उनकी पुस्तक “मन में कई समंदर” को लखनऊ में केशवचंद्र स्मृति पुरस्कार से नवाज़ा गया; “सूर्य की साक्षी में” पुस्तक को भी वर्ष 2008 में ही जबलपुर में शकुंतला दुबे सम्मान प्रदान किया गया। वर्ष 10 में जैमनी हरियाणवी अकादमी द्वारा सम्मानित किया गया, वहीं अलवर में जगमग दीप ज्योति की ओर से उन्हें कुमुद टिक्कू सम्मान प्रदान किया गया। उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में भी उन्हें साहित्य मधुपर्क व मार्तण्ड सम्मान से नवाज़ा गया।
इतना कार्य करने के बाद भी उनकी उंगलियां अभी भी कलम चलाने से थकी नही हैं औऱ सृजन का सफर जारी है। अजमेर के साहित्य गौरव के रूप में डॉ श्रीमती शकुंतला तंवर का नाम सबसे ऊपर की पंक्ति में है।
-अमित टंडन
7976050493

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