बच्चा बुहारी लगाए तो मेहमान आता है?

हम रोजाना घर में बुहारी लगाते हैं। संपन्न लोगों के घर में काम वाली बाई बुहारी लगाती है। यह एक सामान्य बात है। लेकिन अगर कभी कोई बच्चा खेल-खेल में बुहारी लगाए तो यह माना जाता है कि कोई मेहमान आने वाला है। तभी तो उसे कहते हैं कि क्या किसी मेहमान को बुला रहा है? इस मान्यता का कोई ठोस कारण अथवा वैज्ञानिक आधार विद्वानों की जानकारी में हो तो पता नहीं, मगर आम जनमानस उससे अनभिज्ञ है। वह तो इस तथ्य को परंपरागत रूप से मान्यता के रूप में ही लेता है। मैने इसके रहस्य को जानने की कोशिश की, मगर मुझे भी सटीक समाधान नहीं मिला।
जहां तक मेरी समझ है, ऐसा प्रतीत होता है कि चूंकि बच्चा सहज व सरल होता है, मन-बुद्धि विशुद्ध होते हैं, उसमें अभी सांसारिक विकृतियां नहीं प्रवेश की होती हैं, इस कारण उसकी छठी इन्द्री प्रकृति के संकेतों को ग्रहण कर लेती होगी। चूंकि हम वयस्कों की नैसर्गिक शक्तियां कई प्रकार के झूठ, प्रपंच आदि के कारण शिथिल हो जाती हैं, इस कारण हमारी छठी इन्द्री संकेत ग्रहण करने की क्षमता खो देती होगी। संभव है कि अनुभव से ऐसी मान्यता स्थापित हुई हो कि बच्चा बुहारी लगाए तो वह किसी मेहमान के आने का संकेत होता है। यद्यपि बच्चे को उस संकेत का भान नहीं होता, मगर उस संकेत की वजह से वह सहज ही बुहारी लगाने लगता होगा। ऐसा छत पर बैठे-बैठे कौए के कांव-कांव करने पर भी कहा जाता है। शायद कौवे में भी संकेत ग्रहण करने की क्षमता हो।
जहां तक बुहारी का मेहमान से संबंध है तो इस बारे में मुझे किशोरावस्था की एक घटना याद आती है। कदाचित पचास से अधिक उम्र के लोगों की भी जानकारी में हो। तब मदारी टाइप के लोग काजल की डिब्बी यह कह कर बेचा करते थे कि उसे रात को सोते समय सिरहाने के नीचे रखने पर सपने में विशिष्ट अनुभव होंगे। राजा आपक मनचाही मुराद पूरी करेगा। डेमो के रूप में वे किसी एक बच्चे से कहते थे कि वह डिब्बी में गौर से देखे। कहते थे कि राजा आने वाले हैं। देखो राजा के आगमन से पहले सफाई कर्मचारी बुहारी लगा रहा है। अब पानी का छिड़काव कर रहा है। अब दरी बिछा रहा है। और अब देखो एक राजा आ रहा है। बच्चा हां में हां मिलाता जाता था। संभव है वे बच्चे को सम्मोहित कर देते थे। अन्य बच्चे इस चमत्कार को देख कर मान लेते थे कि वह डिब्बी चमत्कारी है और वे उसे खरीद लेते थे। बाद में किसी ने डिब्बी को सिरहाने के नीचे रखने पर विशिष्ट सपना देखा या नहीं, मुझे नहीं पता, मगर किशोरावस्था की इस घटना से मेरे जेहन में यह तथ्य बैठा दिया कि किसी आगंतुक के आने से पहले स्वागत में बुहारी लगाई जाती है। यह पुरानी परंपरा है। ऐसा अमूमन हम करते भी हैं। कोई मेहमान आने वाला हो तो उससे पहले साफ-सफाई करते हैं। ऐसे प्रसंग भी आपने सुने होंगे कि विशिष्ट व्यक्ति के आने पर उसके आगे बुहारने की रस्म अदा की जाती है। इस प्रकरण का यूं ही जिक्र कर दिया। महज एक संस्मरण आपसे साझा करने के लिए। आजकल ऐसे मदारी नजर नहीं आते। न जाने कहां चले गए ऐसे लोग? न जाने कहां विलुप्त हो गई ऐसी विद्या अथवा अविद्या?

-तेजवानी गिरधर
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