खुद हमने ही कर रखी है हिंदी की ‘हिंदी‘

हिंदी दिवस हर साल मनाया जाता है। इस साल भी मनाया गया। बड़ी-बड़ी बातें की गईं। मगर नतीजा वही ढ़ाक के तीन पात। हिंदी को अधिकाधिक उपयोग में लेने के नाम पर लाखों, करोड़ों रुपए के बजट स्वीकृत होते हैं, कदाचित उसका कुछ प्रभाव हुआ भी है, हिंदी का मान्यता बढ़ी है, मगर शुद्ध हिंदी लिखने के लिए कुछ नहीं किया गया है। कितने अफसोस की बात है कि दुर्गति शब्द के लिए कुछ लोग मजाक में ‘हिंदी‘ शब्द में लिया करते हैं। जैसे कम से कम हिंदी की ‘हिंदी‘ तो मत करो। मगर खुद हमने ही कर रखी है हिंदी की ‘हिंदी‘।
कैसी विडंबना है कि यदि अंग्रेजी में हम किसी शब्द की स्पेलिंग गलत लिख देते हैं तो उसकी खिल्ली उड़ाई जाती है, हेय दृष्टि से देखा जाता है, जबकि हिंदी में हम कई गलतियां करते हैं, मगर उन पर कोई गौर ही नहीं करता। मुझे अफसोस होता है कि जिस भाषा को हमने सीखा है, उसके प्रति तो गंभीर हैं, मगर अपनी मातृ भाषा की सुध ही नहीं है। ऐसा नहीं है कि केवल आम आदमी, जिसकी हिंदी के बारे में समझ कम है, वही वर्तनी व व्याकरण की गलतियां करता है, पढ़े लिखे लोग भी धड़ल्ले से त्रुटियां करते हैं। आप देखिए, दुकानों पर लगे साइन बोर्ड्स में कितनी गलतियां होती हैं। चलो, वे तो कम पढ़े लिखे आर्टिस्ट बनाते हैं तो गलतियां स्वाभाविक हैं, मगर साइन बोर्ड बनवाने वालों को तो जानकारी होनी चाहिए। सरकार से अच्छी खासी तनख्वाह लेने वाले भी खूब गलतियां करते हैं। चाहे पुलिस की तहरीर हो, या फिर कोई सरकारी आदेश, उनमें ढ़ेरों त्रुटियां मिल जाएंगी। अखबारों तक में आपको गलतियां मिल जाएंगी।
कहने का निहितार्थ ये है कि हिंदी के बढ़ावे की तो बात की जाती है, मगर शुद्ध हिंदी की दुर्गति की जा रही है। सरकार व अखबारों तक ने प्रचलित हिंदी शब्दों की जगह अंग्रेजी के शब्द काम में लेने की स्टाइल शीट बना रखी है। आम पाठकों के लिए सुग्राह्य भाषा के नाम पर ऐसा किया जा रहा है। जैसे पहले पुलिस अधीक्षक शब्द प्रचलन में था, मगर उसकी जगह एसपी शब्द को केवल इसीलिए काम में लेने को कहा जाता है, क्योंकि वह आम आदमी को आसानी से समझ में आ जाता है। जिला रसद अधिकारी की जगह डीएओ, जिला परिवहन अधिकारी की जगह डीटीओ, यातायात निरीक्षक की जगह टीआई या ट्रेफिक इंस्पैक्टर शब्द काम में लिया जाता है। इसी प्रकार अभियंता शब्द की जगह इंजीनियर शब्द काम लिया जा रहा है।
आपको जानकारी होगी कि पहले जिलाधीश शब्द काम में लिया जाता था, उसकी जगह सरकार ने ही जिला कलेक्टर शब्द काम में लेने के आदेश दे रखे हैं, क्योंकि जिलाधीश शब्द में अधिनायकवाद की बू आती है। पिछले कुछ समय से देखने में आ रहा है कि अखबारों में शीर्षक को आकर्षक बनाने के नाम पर अंग्रेजी के शब्द घुसेड़े जा रहे हैं।
यह ठीक है कि पूरी शुद्ध हिंदी लिखना तनिक कठिन है। अंग्रेजी के अनेक शब्दों का ठीक-ठीक अनुवाद उपलब्ध नहीं है, इस कारण अंग्रेजी के शब्दों का हिंदी भाषा में उपयोग किया जाता है। जैसे रेलवे, ट्रेन, सिगरेट इत्यादि अनेक ऐसे शब्द हैं, जिनका हिंदी रूपांतरण हुआ ही नहीं है। कुछ साहित्यकारों ने प्रयास किया भी है, मगर वह किताबों में ही दफ्न है। जैसे ट्रेन के लिए लोह पथ गामिनी शब्द गढ़ा गया, मगर उसका उपयोग करता कौन है? इसी प्रकार सिगरेट के लिए श्वेत धूम्रपान दंडिका शब्द बनाया गया, मगर वह कोई भी काम में नहीं लेता।
कई लोग तो हिंदी बोलते वक्त विशेष रूप से अंग्रेजी के शब्द काम में लेने में अपनी शान समझते हैं। चलो, जो शब्द सहज रूप में हिंदी में शामिल हो गए हैं, उनका उपयोग करने में करने में कोई दिक्कत नहीं है, मगर कई लेखक अपनी लेखनी में अलग तरह का फ्लेवर देने के लिए अंग्रेजी व उर्दू के शब्दों का उपयोग करने लगे हैं। हालांकि यह बहस का मसला है कि ऐसा करना उचित है या नहीं।
एक दिलचस्प तथ्य ये है कि संभवत: हिंदी ही अकेली ऐसी भाषा है, जिसमें जैसा बोला जाता है, वैसा ही लिखा जाता है। उसके बावजूद लोग ठीक से हिंदी नहीं लिख पाते। अंग्रेजी जैसी अंतरराष्ट्रीय भाषा की हालत ये है कि उसमें बी यू टी बट होता है, जबकि पी यू टी पुट बोला जाता है। इसके अतिरिक्त कई ऐसे शब्द हैं, जिनमें कोई अक्षर साइलेंट होता है। वह शब्द में होता तो है, मगर बोला नहीं जाता।
एक ऐसी गलती की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं, जो आम है। जैसे वर्तनी को लोग वतर्नी लिख देते हैं। अंतर्निहित को अंतनिर्हित लिख देते हैं। ऐसे ही अनेक शब्द हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि प्राथमिक कक्षाओं में ये सिखाया ही नहीं जाता कि आधा र कैसे काम में लिया जाए। जैसे जहां भी उच्चारण में किसी अक्षर से पहले आधा र आता है, तो वह उस अखर के ऊपर लगता है। जैसे वर्तनी। इसी प्रकार उच्चारण में जिस अक्षर के बाद में आधा र आता है तो वह उस अक्षर के नीचे लगाया जाता है। जैसे प्रकार। यह मूलभूत सिद्धांत है, मगर कई लोगों को इसका ज्ञान ही नहीं है।
शब्दों के गलत इस्तेमाल के भी अनेक उदाहरण मिल जाएंगे। जैसे- बेफालतू। अब ये शब्द है ही नहीं। शब्द है फालतू। इसका मतलब ये है कि व्यर्थ। मगर कई लोग बेफालतू शब्द का इस्तेमाल किया करते हैं। इसी प्रकार कई लोग ‘बावजूद भी‘ शब्द का इस्तेमाल करते हैं, जबकि बावजूद में ‘भी‘ शब्द अंतर्निहित है। बावजूद का अर्थ होता है, उसके बाद भी, ऐसे में ‘भी‘ जोडऩा वाकई गलत है।
इसी प्रकार इस नियम की भी जानकारी कई लोगों को नहीं होती कि वर्णमाला के किसी अक्षर के साथ अनुस्वार का आधा अक्षर जोडऩे पर उसी पंक्ति के अंतिम अक्षर को काम में लिया जाता है। जैसे टण्डन, सम्पन्न, हिन्दी। हालांकि अब अनुस्वार के लिए केवल बिंदी को मान्यता दे दी गई है। जैसे टंडन, संपन्न, हिंदी।
एक शब्द के बारे में तो मुझे लंबे समय बाद जानकारी हुई। संस्कृत की जानकार व आर्य समाजी श्रीमती ज्योत्सना, जब भास्कर में कॉपी डेस्क पर काम करती थीं तो उन्होंने बताया कि आम तौर पर ‘ज्ञान‘ शब्द का उच्चारण हम ‘ग्यान‘ की तरह करते हैं, जबकि असल में उसका उच्चारण ‘ज्यान‘ की तरह होना चाहिए। शब्द की संरचना में भी दिख रहा है कि य के साथ ‘ज्‘ जोड़ा गया है, न कि ‘ग्‘। अब ये ‘ज्यान‘ की जगह ‘ग्यान‘ कब हो गया, पता नहीं। इसी प्रकार धरती के लिए हम पृथ्वी शब्द काम में लेते हैं, जो कि गलत है, असल में वह शब्द है पृथिवी। कुछ इसी तरह हम शमशान शब्द काम में लेते हैं, जबकि वह है श्मशान।
मुझे ख्याल आता है कि दैनिक भास्कर में नौकरी के दौरान नागौर जिले के एक संवाददाता ने एक शब्द विन्यास काम में लिया कि लापरवाही का शीलशीला बदसूरत जारी है। उसकी खूब खिल्ली उड़ी। सवाल ये है कि हिंदी पत्रकारिता में हिंदी भाषा के अल्पज्ञ कैसे प्रवेश पा जाते हैं? एक और प्रसंग याद आता है। भोपाल से संपादन शाखा के एक वरिष्ठ अधिकारी अजमेर इकाई में काम करने वालों का परीक्षण आए थे। एक पत्रकार साथी जब साक्षात्कार देने गए तो स्थानीय संपादक जी ने कहा कि ये शामिल बाजा है। यह सुन कर अधिकारी हंस पड़े। उन्होंने उससे कुछ भी नहीं पूछा। जब वे साथी बाहर आए तो उनसे हमने पूछा कि क्या सवाल किए गए, इस पर उसने कहा कि कुछ नहीं पूछा, केवल स्थानीय संपादक जी ने यह कहा कि यह शामिल बाजा है। हमें उसका अर्थ समझ में नहीं आया। बाद में अकेले में मैने संपादक जी से शामिल बाजा का अर्थ पूछा तो उन्होंने बताया कि बैंड कंपनी में शामिल बाजा उसे कहते हैं, जो अकेले कुछ नहीं बजा पाता, सभी अपने-अपने वाद्य यंत्र बजाते हैं तो वह भी उनके साथ हो जाता है। यानि कि वह किसी भी वाद्य यंत्र को बजाने में पारंगत नहीं होता, केवल सहायक की भूमिका अदा करता है। मैने अपने साथियों को यह नई जानकारी दी तो वे खूब हंसे।
खैर, हिंदी भाषा के बारे में मेरी जो भी जानकारी है, उसमें से कुछ उपयोगी टिप्स पर फिर कभी बात करेंगे।

-तेजवानी गिरधर
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