खुशी में सीटी क्यों बजाई जाती है?

मेरे एक मित्र ने एक टिपिकल सा सवाल पूछा है – खुशी में सीटी क्यों बजाई जाती है? जहां तक मेरी समझ है, मनुष्य की मानसिक अवस्था से जुड़े इस सवाल का मोटे तौर पर जवाब ये है कि यह हमारी अभिव्यक्ति की प्रवृत्ति की निष्पत्ति है।
असल में प्राणी मात्र में अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थिति में भीतर के भाव को अभिव्यक्त करने का स्वाभाविक गुण है। आपने देखा होगा कि दो व्यक्ति किसी रास्ते से गुजर रहे हों और उन्हें कोई सुंदर पुष्प नजर आ जाए तो जहां एक यह अभिव्यक्त करने से अपने आपको नहीं रोक पाता कि देखो, फूल कितना सुंदर है तो दूसरा उसकी हामी भरते हुए कहता है कि वाकई बहुत सुंदर है। हालांकि दोनों व्यक्ति सुंदर फूल को देख रहे होते हैं, उसका जिक्र करने की जरूरत नहीं है, फिर भी भीतर उतरे अनुभव को साझा करने की प्रवृति के चलते अभिव्यक्ति जुबान पर आ ही जाती है।
मनुष्य के पास तो फिर भी अभिव्यक्ति के लिए बोली की सुविधा है, लेकिन पशु-पक्षी भी सुख-दु:ख में भीतर के भाव को प्रकट करने के लिए भिन्न-भिन्न आवाजें निकाला करते हैं। आपने देखा होगा कि जब भी मनुष्य दु:खी होता है तो सहसा वह कोई दु:खभरा गीत गुनगुनाने लगता है। इससे उसको सुकून मिलता है। ऐसा करने से उसके मन का बोझ हल्का हो जाता है। वैसे ही जब मनुष्य प्रसन्न होता है तो उसका मन मयूर नाचने लगता है और सहसा या तो कोई मधुर गीत उसके कंठ में गुदगुदाने लगता है या फिर किसी गीत पर आधारित सीटी बजाने लगता है। उसी से अंदाजा हो जाता है कि उसका मन स्वस्थ है और किसी सुखद अनुभूति से गुजर रहा है। काम भले वह कोई भी कर रहा हो, मगर सीटी लगातार बजती रहती है। आपने देखा होगा कि खेत मे काम कर रहा किसान भी खुशी में अलगोजा बजाने लगता है। इसी प्रकार जैसे ही आसमान पर बादल छाते हैं, खुशी में मोर जोर से मेहों मेहों की ध्वनि करता है।
मुझे प्रतीत होता है कि मैने मेरे मित्र के सवाल का जवाब ठीक से दे दिया है। अगर आपको लगता है कि इसका कोई और भी जवाब हो सकता है तो अपनी प्रतिक्रिया जरूर दीजिए।

-तेजवानी गिरधर
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