बहुत रहस्यपूर्ण है चालीस का अंक

यूं तो हर अंक का अपना महत्व है, लेकिन विशेष रूप से प्रकृति और अध्यात्म में चालीस के अंक की बहुत अधिक अहमियत है। चाहे हिंदू हो या मुसलमान, या फिर ईसाई धर्म, सभी में चालीस का खास योगदान है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि कहीं न कहीं प्रकृति में चालीस का अंक कोई गूढ़ रहस्य लिए हुए है। इसीलिए सभी धर्मों ने इसका उपयोग किया है।
इस्लाम की बात करें तो यह सर्वविदित है कि इबादत चालीस दिन की जाती है। ज्ञातव्य है कि महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती जब अजमेर आए तो आनासागर के पास स्थित पहाड़ी पर 40 दिन का चिल्ला किया था। यहां से इबादत करने के बाद जब ख्वाजा साहब ने दरगाह शरीफ वाले स्थान की ओर जाने लगे तो कहते हैं कि उनकी जुदाई में पहाड़ के भी आंसू छलक पड़े थे। उसके निशान आज भी मौजूद हैं। क़ुरआन साफ़-साफ़ बयान करता है कि रोज़ा पिछली उम्मतों पर भी वाजिब था। रोज़ा रखने के कई फायदे हैं। कुरआन में ही अल्लाह फरमाते हैं कि रोज़ा इंसानी रूह को मजबूत करता है।
इसी प्रकार इमाम हुसैन की शहादत पर मुसलमान 40 दिन तक शोक मनाते हैं। जानकार बताते हैं कि हमारे पेट में एक निवाला भी हराम का हो तो चालीस दिन तक इबादत कबूल नहीं होती। चालीस दिन का खेल देखिए कि जो जगह लगातार चालीस दिन सुनसान होती है या आबाद नहीं होती तो वहां पर हवाई मखलूक या प्रेत-आत्माएं डेरा जमा लेती हैं। इसीलिए जिस स्थान का उपयोग नहीं हो रहा होता है, तो भी वहां नियमित रूप से दिया-बत्ती की जाती है।
चालीस की संख्या का बाइबिल में भी बहुत महत्व है। कहते हैं कि चालीस की संख्या न्याय या परीक्षा से सम्बन्धित सन्दर्भों में अक्सर पाई जाती है, जिसके कारण कई विद्वान इसे परख या परीक्षा की संख्या भी समझते हैं।
बाइबिल के पुराने नियम में जब परमेश्वर ने पृथ्वी को जल प्रलय से नष्ट कर दिया, तो उसने 40 दिन और 40 रात तक वर्षा को आने दिया। मूसा के द्वारा मिस्री को मार कर मिद्यान भाग जाने के पश्चात मूसा ने 40 साल तक रेगिस्तान में पशुओं के झुंड की रखवाली में बिताए थे। मूसा 40 दिन और 40 रात तक सीनै की पहाड़ी पर थे। मूसा ने 40 दिन और 40 रात तक इस्राइलियों की ओर से परमेश्वर के आगे हस्तक्षेप करने के लिए विनती की।
एक व्यक्ति को एक अपराध के लिए प्राप्त होने वाले कोड़ों की अधिकतम संख्या चालीस निर्धारित थी। इसी प्रकार इस्राइल के जासूसों को कनान की जासूसी करने में 40 दिन लगे थे। इस्राएली 40 साल तक जंगल में भटकते रहे।
नए नियम में, यीशु की परीक्षा 40 दिन और 40 रात तक की गई थी। यीशु के पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण के बीच 40 दिन थे।
हिंदू धर्म की बात करें तो सिंधी समुदाय इष्टदेव झूलेलाल जी की उपासना भी चालीस दिन तक की जाती है। इसे चालीहो कहा जाता है। इस दौरान लगातार चालीस दिन तक व्रत-उपवास रख कर पूजा-अर्चना के साथ सुबह-शाम झूलेलाल कथा का श्रवण किया जाता है। इन दिनों में खास तौर पर मंदिर में जल रही अखंड ज्योति की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और प्रति शुक्रवार को भगवान का अभिषेक और आरती की जाती है। चालीसवें की रस्म कई समुदायों में अदा की जाती है। कुछ लोगों की मान्यता है कि कोई भी मृतात्मा मृत्यु के चालीस दिन बाद आगे की यात्रा करती है।
चालीस का अंक कितना पवित्र और असरकारक है, इसका अंदाजा इस बात से भी लगता है कि हनुमान जी सहित सभी देवी-देवताओं की स्तुति के लिए चालीसाएं बनाई गई हैं।
हिंदू धर्म में छाया पुरुष या कृत्या की साधना और इस्लाम में हमजाद का अमल भी चालीस दिन तक किया जाता है। अनेक प्रकार की सिद्धियों में चालीस दिन तक अनुष्ठान करने का प्रावधान है।
वैज्ञानिक अवधारणा है कि वीर्य शरीर की बहुत मूल्यवान धातु है। भोजन से वीर्य बनने की प्रक्रिया बड़ी लम्बी है। जो भोजन पचता है, उसका पहले रस बनता है। पांच दिन उसका पाचन होकर रक्त बनता है। पांच दिन बाद रक्त से मांस, उसमे से 5-6 दिन बाद मेद बनता है और मेद से हड्डी, और हड्डी से मज्जा, मज्जा से अन्त में वीर्य बनता है। इस पूरी प्रक्रिया में 40 दिन का समय लगता है।
अनेक मामलों में चालीस की महत्ता को देख कर यह लगता है कि किसी भी स्थान की ऊर्जा की उम्र चालीस दिन होती है। उसके बाद वह क्षीण हो जाती है। ऊर्जा अर्जित करने के लिए भी चालीस दिन तक सतत प्रयास करना होता है। अर्थात इबादत की पूर्णाहुति चालीस दिन में होती है। अब ये चालीस का अंक कहां से आया, इस पर गहन शोध की जरूरत है।

-तेजवानी गिरधर
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