मूर्ति पर पैसे फैंकना : ऐसे चढ़ाने से तो न चढ़ाएं वो अच्छा

मंदिरों में हमने अक्सर देखा होगा कि लोग चढ़ावे के नाम पर मूर्ति के आगे पैसे फैंकते हैं। विशेष रूप से तब तो यह दृश्य आम होता है, जब लोग रास्ते के मंदिर के सामने अपने वाहन से उतरना नहीं चाहते और बस या कार की खिड़की से ही मंदिर के गेट पर पैसे फैंकते हैं। कुछ पैसे अंदर पहुंच जाते हैं तो कुछ बाहर रह जाते हैं, जिन्हें राह चलते लोग उठा कर चलते बनते हैं।
कभी विचार किया है कि यह कृत्य कितना अशोभनीय और घटिया है। अरे एक भिखारी में यही चाहता है कि कोई उसे पैसे दे तो सम्मान से उसके कटोरे में डाल दे या हाथ में पकड़ाए। अगर आप उसके कटोरे में दूर से पैसे फैंकगे या उसकी तरफ पैसे उछाल कर देंगे तो उसे बहुत बुरा लगता है। विचार कीजिए कि अगर हमें भी किसी मदद चाहिए और वह हमारी ओर पैसे या रुपए फैंक कर दे तो कैसा महसूस करेंगे। आप यही कहेंगे न कि कितना असभ्य है? मदद देने का ये कैसा तरीका है?
अब विचार कीजिए कि जिसे हम भगवान समझते हैं, सर्वशक्तिमान, वह कैसा महसूस करता होगा? अव्वल तो आपके भगवान को आपके पैसे की तनिक भी जरूरत नहीं है। आपके पास जो कुछ भी है, वह उसी का ही तो दिया हुआ है। वह आपसे लेने की कोई अपेक्षा नहीं करता। उसी का दिया हुआ उसी देकर आप कौन सा गौरव हासिल कर रहे हैं? वह तो आपका भाव है कि आप उसे भेंट दे कर रिझाने की कोशिश करते हैं। चंद रुपए चढ़ा कर उससे कई गुना की अपेक्षा करते हैं। कई बार तो वो भी पहले नहीं, बल्कि काम हो जाने पर अमुक रुपए का प्रसाद चढ़ाने का संकल्प लेते हैं। ये श्रद्धा नहीं, बल्कि सौदा है। सरासर व्यापार जैसा है।
चलो, यह मान भी लिया जाए कि भगवान आपकी भेंट से खुश होता है, मगर यदि आप उसकी ओर उछाल कर पैसा फैंकेंगे तो निश्चित ही उसे बुरा महसूस होता होगा। इससे बेहतर तो ये है कि आप पैसे चढ़ाएं ही नहीं। यदि चढ़ाने की वाकई श्रद्धा है तो या तो भेंट पात्र में डालें या फिर पुजारी के हाथ में दें। वैसे भी वह पैसा भगवान के काम नहीं आता, बल्कि पुजारी की आजीविका चलती है। यह अच्छा है कि पूरे दिन मंदिर में सेवा करने वाले की मदद हो जाती है, मगर उछाल कर इस प्रकार की मदद करना बेहद शर्मनाक है।

-तेजवानी गिरधर
7742067000
[email protected]

error: Content is protected !!