अभिलेखागार में आधुनिक लाईब्रेरी की स्थापना शीघ्र-मेघवाल

अभिलेखागार के स्रोत एंव महत्व पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार का समापन
arjun meghwalबीकानेर। सांसद अर्जुनराम मेघवाल ने कहा है कि रियासतकालीन दस्तावेजों के डिजिटेलाइजेशन होने से आमजन को पटटों की कालाबाजारी से मुक्ति मिल गई है।सांसद रविवार को अभिलेखागार के स्रोत एंव महत्व पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार के समापन समारोह को संबोधित कर रहे थे। समारोह के मु य अतिथि सांसद मेघवाल ने कहा कि अभिलेखागारो के माध्यम से पटटों व अन्य रियासतकालीन दस्तावेजों का डिजिटेलाइजेशन कराये जाने से आमजन को अपने पूर्वजों की संपति के सत्यापित दस्तावेजों की जानकारी मिल रही है।इससे आमजन का समय व धन की भी बचत हो रही है।यंहा पर देश विदेश के शोधार्थी शोध करने के लिए आते है,जिससे यंहा की स यता व संस्कृति का विश्वभर में परचम लहरा रहा है। राजस्थानी भाषा की मान्यता पर संासद ने कहा कि कुछ समय पूूर्व ही भाषाओं का अध्ययन करवाया गया है,जिसकी रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि समय रहते देश की भाषाअेंा को नही बचाया गया तो हमारी संस्कृति नष्ट हो जायेगी। संासद ने कहा कि राजस्थान राज्य अभिलेखागार में रियासतकालीन दस्तावेजों के मूल स्वरुप को बचाया जा सके इसके लिए अत्याध्ुानिक प्रयोगशाला की स्थापना कराई जायेगी।इससे रियासतकालीन समय के दस्तावेजों का मूल स्वरुप को लंबे समय तक रखा जा सकेगा ताकि यंहा पर देश विदेश से आने वाले शोधार्थियों को डिजिटेलाइजेशन दस्तावेजों के साथ साथ उनका मूल स्वरुप भी देखने को मिल सके। समापन सत्र के अध्यक्ष नंदकिशोर सेालंकी ने कहा कि ” कहते है इतिहास का विषय बहुत ही नीरस होता हैÓÓलेकिन वर्तमान व भूतकाल की पहचान केवल इसी से ही हो सकती है।इस अभिलेखागार की प्रासंगिकता इसी से सिद्व होती है कि आज देश विदेश के शोधार्थी यंहा पर शोध करने के लिए आते है।
इससे पूर्व तीन सत्र आयेाजित हुए,जिसमें 12 पत्रवाचन हुए। दूसरे दिन के प्रथम सत्र की अध्यक्षता महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के प्रो.शिवकुमार भनोत व वनस्थली विश्वविद्यालय टोंक के पूर्व विभागाध्यक्ष डा.पेमाराम ने की। जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो.दिलबाग सिंह ने कहा कि जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो.दिलबागसिंह ने जयपुर अभिलेखीय श्रोत अड़स ट के सामाजिक,आर्थिक इतिहास लेखन में योगदान बताया।इस रिकार्ड में राज्य द्वारा लगाये जाने वाले विभिन्न करों का उल्लेख मिलता है। सिंह ने कहा कि ऐतिहासिक दृष्टि से अभिलेखागार का मूल्यांकन करने से पता चलता है कि इनका शोध व अन्य कार्यों में कितना महत्व है।इसे टयूरिज्म में शामिल कर दिया जाये तो देश विदेश से यंहा आने वाले पर्यटकेंा को भी अतीत के बारे में जानकारी मिल सकेंगी। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय,आर्कलेंड की मिस एलिजाबेथ थेलेन ने पत्रवाचन करते हुए जोधपुर राज्य की सनद परवाना बही का उल्लेख किया कर बताया कि यह राज्य और प्रजा के संबधों के विभिन्न आयामेंा केा जानने के लिए इस प्रकार के स्रोत अत्यंत आवश्यक है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डा.जिब्राइल ने 18 वीं शताब्दी में नागौर के शहरीकरण पर राजस्थानी व फारसी स्रोतों की उपयोगिता को दर्शाया।इसके साथ ही जलसं्रोतों,धार्मिक स्थलों से शहरीकरण के विकास की रुपरेखा पर प्रकाश डाला। राजकीय डूंगर महाविद्यालय की डा.प्रेरणा माहेश्वरी ने राजस्थान में सामाजिक परिर्वतन और प्रवासी मारवाड़ी समुदाय की भागीदारी पर जानकारी देते हुए बताया कि प्रवासी मारवाड़ी हमेशा से ही समाज उत्थान के कार्य करते रहे है।जिसमें स्त्री उत्थान,विधवा पुर्नविवाह,बालविवाह,पर्दा प्रथा,अछूतोद्वार,मौसर जैसी सामाजिक बुराईयों पर हमेशा से ही मारवाड़ी समुदाय का योगदान रहा है। महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के शिवकुमार भनोत ने कहा कि परिवर्तन सभी जगह आता है,टैक्नोलाजी के चलते अभिलेखागार में जो पुराने रिकार्ड है उनका सरंक्षण करना बड़ी बात है।मुगलकालीन फरमानेंा पर पुस्तक जारी कर अभिलेखागार ने शोधार्थियों के लिए एक नई आशा की किरण जगा दी है। अभिलेखागार से सेवानिवृत भाषाविद्व जगदीश संाखला ने कहा कि अभिलेख कि भी समाज,साहित्य,धार्मिक विकास को दर्शाता है कि वह अभिलेख है।अभिलेख सामान्यत:जो ऐतिहासिक दस्तावेज है उन्हे अभिलेख कर सकते है।एतिहासिक दस्तावेज परिवार,समाज,व देश के विकास में भी सहायक होते है। अभिलेखागार के पुस्तकालयाध्यक्ष सुरेंद्र कुमार राजपुरोहित ने
अभिलेखागार के स्रोत एंव महत्व,कनिका भनोत ने अभिलेखागार के स्रोत,उतरा ंाड राज्य अभिलेखागार के निदेशक डा.लालता प्रसाद ने उतराखंड में अभिलेखागार का येागदान, डा.अरुण कुमार ने बीकानेर शहर के जलसंशाधनों में पुष्करणा समाज का येागदान,डा.शुजाउदीन खंा ने बीकानेर में फारसी अभिलेख,राजस्थानी भाषा साहित्य अकादमी के पृथ्वीराज रतनू ने राजस्थानी भाषा का महत्व पर पत्रवाचन किया।
अभिलेखागार के निदेषक डा.महेंद्र खडग़ावत ने देष विदेष से आये विषय विषेषज्ञों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि दो दिन के राष्ट्रीय सेमीनार में अभिलेखागार की मूल स्रोत सामग्री पर बहुत ही सामयिक चर्चा हुई,इससे अभिलेखागार के विकास के साथ साथ षोधार्थियों को षोध में नई दिषा मिलेगी।

प्रो.देवड़ा ने दी 5 हजार किताबें
अभिलेखागार में चल रही दो दिवसीय सेमीनार के समापन समारोह में कोटा खुला विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति .जी. एस. एल. देवड़ा ने अपनी पांच हजार किताबेां को अभिलेखागार के पुस्तकालय में देने की घोषणा की है।

ये रहे उपस्थित
इनमें राष्ट्रीय अभिलेखागार के उपमहानिदेशक डा.एम.ए.हक, असम राज्य अभिलेखागार के निदेशक डा.डी.सोनवाल,उतराखंड राज्य अभिलेखागार के निदेशक डा.लालता प्रसाद,कोटा खुला विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो.जी.एस.एल.देवड़ा,जवाहर लाल नेहरु यूनिवसिर्टी के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो.दिलबाग ंिसह,अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रो.इनायत अली,जामिया मिलिया के प्रो.सुनीता जैदी,प्रो.शिव कुमार भनोत, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय नई दिल्ली के प्रो.एस.पी.व्यास,अधिवक्ता आर.के.दास गुप्ता, अतिरिक्त सेशन जज अतुल प्रकाश सक्सेना इत्यादि उपस्थित रहे।

प्रो.देवड़ा को मिला स्व.खडग़ावत इतिहासकार पुरस्कार
बीकानेर। राजस्थान राज्य अभिलेखागार के द्वारा पूर्व निदेशक स्व.नाथूराम खडग़ावत की स्मृति में देश के किसी भी इतिहासकार को दिये जाने वाला पुरस्कार शनिवार को अभिलेखागार के स्रोत एंव महत्व पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार के उद्वघाटन अवसर पर कोटा खुला विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति प्रो.जी.एस.एल.देवड़ा को दिया गया। राजस्थान राज्य अभिलेखागार के द्वारा पूर्व निदेशक स्व.खडग़ावत की स्मृति में वर्ष 2014 से शुरु किया गया इतिहासकार पुरस्कार पूर्व उपकुलपति प्रो.एस.एल.देवड़ा केा दिया गया है।प्रो.देवड़ा को राष्ट्रीय अभिलेखगार के उपनिदेशक डा.एम.ए.हक ने माला पहनाकर उनका अभिनंदन किया वंही संभागीय आयुक्त सुबीर कुमार ने शाल ओढ़ाकर व राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायामूर्ति आर.एस.चौहान ने 11 हजार नकद राशि का चैक प्रदान कर स मान किया। पुरस्कार प्राप्त करने के बाद प्रो.देवड़ा ने कहा कि राजस्थान में इस प्रकार से दस्तावेजों के संग्रहण का केंद्र बनाना बड़ी बात थी,उस समय न तो संशाधन थे और ना ही संचार तकनीक।इन प्रकार की विषम परिस्थितियेां में अभिलेखों का संग्रहण कार्य इस अभिलेखागार की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। अभिलेखागार के निदेशक डा.महेंद्र खडग़ावत ने बताया कि यह पुरस्कार
प्रतिवर्ष किसी इतिहासकार को ही दिया जायेगा।इसके लिए वे ही इतिहासकार व शौधार्थी योग्य माने जायेंगे जिन्होने राजस्थान राज्य अभिलेखागार अथवा इतिहास के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया हो।

इतिहास लिखने में अभिलेखागार की भूमिका अहम-प्रो.देवड़ा
बीकानेर। कोटा खुला विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति प्रो.जी.एस.एल.देवड़ा ने कहा है कि दुनिंयाभर में सबसे अधिक रियासतकालीन दस्तावेज राजस्थान राज्य अभिलेखगार में सरंक्षित व सुरक्षित है।यदि हमें आम आदमी का इतिहास लिखना है तो इसके लिए अभिलेखागारों में सरंक्षित दस्तावेज ही मु य स्रोत है। प्रो.देवड़ा शनिवार को अभिलेखागार के स्रोत एंव महत्व पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार के उद्वघाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे। सेमीनार के मु य वक्ता प्रो.देवड़ा ने कहा कि रियासतकालीन दस्तावेजों को सरंक्षित व संग्रहित करने पर राज्य अभिलेखागार दुनियंाभर में अपना अहम स्थान बना चुका है।वर्तमान समय में देश विदेश में बैठे इतिहासकार भी इसकी प्रशंसा करते है और यंहा पर शोध करने के लिए आते है। देवड़ा ने कहा कि यदि उतरी भारत का आर्थिक इतिहास लिखना हो तो राज्य अभिलेखागार में जो दस्तावेज है वें पर्याप्त है।यंहा के अभिलेखागार में क्षेत्रीय जानकारियेां का अथाह भंडार है। उन्होने औंरगजेब के समय फ्रांसीसी नागरिक बर्नियर ने भारत यात्रा के दौरान कहा था कि यंहा के किसान बढ़ते टैक्स के कारण बढ़ते टैक्स के कारण पलायन कर रहे पिलायन कर रहे है।अभिलेखागार इस प्रकार की पलायन की प्रवृतियों को रोकने में भी अहम भूमिका निभा सकता है। प्रो.देवड़ा ने कहा कि पहले पूर्व कबीलों का ही पलायन होता था लेकिन जब से मुगलकालीन समय आया तब से वंहा की प्रजा ही पलायन करती थी और वंहा के शासक वंही पर अपना प्रभुत्व जमाये रखते।इसी काल में ही आमजन पर सभी तरह के टैक्स बढ़े।इसी कारण 18 वंी सदी का बजट गड़बड़ा गया और अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए टैक्स बढ़ा दिये गये।जिस कारण आमजन ने वंहा से पलायन शुरु कर दिया।इस प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारियंा अभिलेखागारों में सुरक्षित व सरंक्षित इजारा व मुक्ता ठेका पद्वति के दस्तावेजेां से मिलती है।अभिलेखागारों के दस्तावेज महत्वपूर्ण है लेकिन वे किसी धार्मिक किताब के पन्ने नही है। सेमीनार के मु य अतिथि राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति आर.एस.चौहान ने कहा कि इतिहास को जानने के लिए अभिलेख महत्वपूर्ण है लेकिन प्राचानीकाल के चित्रों को भी दरकिनार नही किया जा सकता है।उस समय के चित्रकारों ने हर एक विषय पर चित्रों के माध्यम से समकालीन परिस्थितियेां को दर्शाया है। चौहान ने पेटिंग्स के माध्यम से मुगलकाल कितना वैभवशाली था,जिसमें कांगड़ा का नयनसुख,जिसमें जशोदा व राजा,पानीपत की   लड़ाई, बाबरनामा, अकबरनामा, कांगड़ा का बारहमासा, अकबर का शिकार, कांगड़ा शैली, मुगलकालीन गंगा जुमना संस्कृति की झलक,पानीपत की लड़ाई,ग्रामीणों का मनोरंजन,उदयपुर में 18वीं सदी में समुदाय की रोजमर्रा में मनोरंजन,कांगड़ा की तांत्रित शैली की जानकारिंया दी।

विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय अभिलेखागार,नई दिल्ली के उपनिदेशक डा.एम.ए.हक ने कहा कि देशभर में रियासतकालीन व अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेजेां को वैज्ञानिक पद्वति से संरक्षित व सुरक्षित कर आने वाले पीढिय़ों के लिए सुरक्षित रखा गया है।हमारे परिवारेां में जिस प्रकार से बड़े बुजुर्गों का स मान किया जाता है उसी तरह से अभिलेखागारेां में दस्तावेजों का याल रखा जाता है। हक ने कहा कि दस्तावेजों केा सरंक्षित व सुरक्षित रखने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक बोर्ड का भी गठन किया गया है,जो कि किसी भी दस्तावेज के लिए निर्णय करता है।इन दस्तावेजों को सरंक्षित व सुरक्षित रखने के लिए रिकार्ड मैनेजमेंट संबधी कई तरह के पाठयक्रम भी चलाये गये है,जिन्हे करने पर इसे आजीविका का साधन भी बनाया जा सकता है। उन्होने कहा कि राष्ट्रीय अभिलेखागार में एक सौ से अधिक महापुरुषों के रिकार्ड कें्रदीय अभिलेखागार में सुरक्षित है,जिन्हे देश विदेश के शोधार्थी अपने अध्ययन में काम लेते है। सेमीनार की अध्यक्षता करते हुए संभागीय आयुक्त शुबीर कुमार ने कहा कि इतिहास के पन्नोको पलटने से कई महत्वपूर्ण जानकारिंया मिलती है,जिनका प्रयेाग करने से हमारे काम में और अधिक सफलता जुड़ जाती है।पूर्व में किसी भी शासक का काल हो उस दौरान कराये गये निमार्ण कार्य आज भी मिशाल बने हुए है।यदि वर्तमान समय में भी पूर्व की तकनीक का ध्यान रखा जाये तो आमजन को काफी राहत मिलेगी। इंदिरा गांधी नहर परियोजना का उदाहरण देते हुए उन्होने कहा कि यदि इसके निमार्ण के समय यदि इतिहास पर नजर डालकर उसकी तकनीक को समझा जाता तो शायद आज जितने जिलों में पेयजल आपूर्ति हो रही है उससे अधिक जिलेां केा पानी सुलभ हो पाता। अभिलेखागार निदेशक डा.महेंद्र खडग़ावत ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि निदेशालय के द्वारा अभी तक 35 लाख दस्तावेजों का डिजिटेलाइजेशन कर आनलाइन कर दिया गया है,जो कि पूरी दुुनिंया में नि:शुल्क कभी भी कंही भी देखे व पढे जा सकते है।इससे शोधार्थियों केा लाभ होगा। उन्होने कहा कि अभिलेखागार के द्वारा शीघ्र ही 50 लाख दस्तावेजों को आनलाइन किया जायेगा।

पुस्तक विमोचन
इससे पूर्व अभिलेखागार निदेशक डा.महेंद्र खडग़ावत द्वारा संपादित व डा.शुजाउदीन नक्शबंदी द्वारा अनुवादित 226 पेज की फारसी फरमानेां के प्रकाश में मुगलकालीन भारत एंव राजपूत शासक भाग -2 व अभिलेख जर्नल व अजमेरा कमिश्नरेट की वर्णात्मक सूचिंयों के द्वितिय संस्करण का भी विमोचन हुआ।अभिलेख जर्नल 26 साल बाद पुनलेाकार्पित किया गया है।

द्वितिय सत्र
सेमीनार के द्वितिय सत्र प्रो.दिलबाग सिंह,पूर्व विभागाध्यक्ष जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय,नई दिल्ली,उतरा ंाड राज्य अभिलेखागार के निदेशक डा.लालता प्रसाद की अध्यक्षता में सपंन्न हुआ। प्रजामंडल का इतिहास पर वनस्थली विश्वविद्यालय टोंक के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो.पेमाराम ने अग्रेरियन आंदोलन ऑफ राजस्थान पर पेपर पढ़ते हुए राजस्थान राज्य अभिलेखाागर की मूल स्रोत सामग्री का उल्लेख किया।अभिलेखागारों का नवीन इतिहास पर प्रो.इनायत अली ने जोधा के बारे में बताया कि वे मोटा राजा की पुत्री थी तथा उनका जोधपुर से संबध था।यह अभिलेखीय स्रोत तारीक उल इमारत नामक पुस्तक से दिया।जो कि इंडिया आफिस लाइब्रेरी लंदन में सुरक्षित है।इसके अलावा ताजमहल के नाम को लेकर पूछे गये सवाल के जवाब में कहा कि ताज का मूल नाम ताजमहल नही होकर रोजा ए मुनव्वर है।जामिया मिलिया,नई दिल्ली, की प्रो.सुनीता जैदी ने 11 वीं शताब्दी की जिक्र उल निस्वा पुस्तक का हवाला देते हुए 84 सुफी महिलाअेंा की स्थिति के बारे में बताया।इन महिलाअेां की सामाजिक,राजनैतिक व पारिवारिक स्थिति के बारे में बताया।महिलाअेां की स्थिति चिंताजनक क्यों थी तथा दस्तावेजों में महिलाअेंा की स्थिति किस प्रकार दर्ज है इस पर भी विस्तार से चर्चा की।
राष्ट्रीय अभिलेखागार के उपनिदेशक ढा.एम.ए.हक ने राष्ट्रीय अभिलेखागार द्वारा खरीदे गये गांधी केलनबेच पेपर के बारे में बताया।जिसमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका में बिताये हुए समय के बारे में जो कि टेलीग्राम व पत्रों के माध्यम से हासिल हुई।
जामिया विश्वविद्यालय की सहायक प्रोफेसर डा.इति बहादुर ने राजस्थान मेंं जाटों की भूमिका,राजपूत राजाअेां व जाट सरदारों के बीच विभिन्न संबधेंा पर अभिलेखीय स्रोत सनद परवाना बही,सावा बही आदि के माध्यम से प्रकाश डाला।वंही प्रोफेसर शशि देवड़ा ने अपने पत्र अभिलेखीय सामग्री व जैंडर स्टेडीज में अभिलेखीय स्रोत,रीठ र कागद,पेशे र लेखे री बही के माध्यम से महिलाअेां के संपति,गोद लेने व स्त्री धन की मान्यता पर प्रकाश डाला। आसाम राज्य अभिलेखागार डी.सोनवाल ने उतरी पूर्वी भारत के सात राज्येां के संदर्भ की अभिलेखीय सामग्री जो कि आसाम अभिलेखागार में उपलब्ध है को विस्तार से बताया। -मोहन थानवी

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