नई सरकार के सामने दो बड़ी चुनौतियां : प्रो. व्यास

फाइनेंशियल टूल बॉक्स पर आयोजित कार्यशाला में गरीबों के आर्थिक उत्थान पर विशेषज्ञों ने किया मंथन

Prof VS Vyas,Member of Prime Minister Advisory Economic council  addressing while sitting on dias other dignatories include NS Sisodia,former Fiance Secretary,Govt of India,Rajeev Singh Thakur,Secretary Rural Development,GoR, etc
Prof VS Vyas,Member of Prime Minister Advisory Economic council addressing while sitting on dias other dignatories include NS Sisodia,former Fiance Secretary,Govt of India,Rajeev Singh Thakur,Secretary Rural Development,GoR, etc

 

Jonna Bickel.Advisor,GIZ india addressing
Jonna Bickel.Advisor,GIZ india addressing

 

Participantsa attending workshop on Financial Capability to Highlight Startegies to reduce poverty and establish Inclusive Growth
Participantsa attending workshop on Financial Capability to Highlight Startegies to reduce poverty and establish Inclusive Growth

जयपुर। प्रख्यात अर्थशास्त्री पदमभूषण प्रो. वी.एस. व्यास ने कहा कि सरकारी प्रयासों एवं तकनीक के बावजूद ग्रामीण गरीबों का अपेक्षाजनक उत्थान नहीं हो पा रहा है, इसकी जांच करने तथा जबावदेही तय करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि जरूरत इस बात की भी की है कि गरीबों को दिए जाने वाले लोन का वे सही उपयोग कैसे करें, इसके लिए उन्होंने शिक्षित व जागरूक करना होगा। प्रो. व्यास शुक्रवार को यहां जर्मन डवलपमेंट कॉपरेशन की ओर से गरीबी हटाने व समावेशी आर्थिक विकास के लिए विकसित फाइनेंशियल टूल बॉक्स पर सेंटर फॉर माइक्रो फाइनेंस (सीएमएफ) की ओर से आयोजित कार्यशाला में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि देश की नई सरकार के सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं, जिनमें पिछले 4 साल से आर्थिक विकास की नीचे जाती दर एवं महंगाई का मसला मुख्य है। उन्होंने कहा कि नई सरकार को विकास की गति के लिए रोजगारपरक उद्योगों को प्रमुखता देनी होगी।
प्रो. व्यास ने गरीबों के आर्थिक उत्थान में रही खामियों के तीन कारण गिनाते हुए कहा कि अभी हम सप्लाई लाइन पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं जबकि हमें डिमांड एवं सप्लाई लाइन के बीच संतुलन बनाना होगा, तभी गरीब व्यक्ति को उसके ऋण का सही लाभ मिल सकेगा, जो उसकी गरीबी दूर करने में सहायक बनेगा। उन्होंने कहा कि ऋण देने के मामले में गरीब की आवश्यकता को नहीं समझा जाता है और जरूरत के समय उसे ऋण नहीं दिया जाता, इन विसंगतियों को दूर करना होगा। प्रो. व्यास ने कहा कि रिजर्व बैंक की ओर से प्रस्तुत मालेगांव रिपोर्ट में कहा गया है कि गरीबों को मिलने वाला 70 फीसदी ऋण अनुत्पादक कार्यों में खर्च हो जाता है।
उद्घाटन सत्र में राज्य के ग्रामीण विकास सचिव एवं राजस्थान आजीविका मिशन के एसएमडी राजीवसिंह ठाकुर ने कहा कि राजस्थान में वित्तीय समावेशन में नरेगा के जरिए एक करोड़ से अधिक बैंक खाते खोले गए, लेकिन सहकारी बैंक एवं पोस्ट ऑफिस अभी भी इस दिशा में महती भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं। उन्होंने राज्य में आंध्रप्रदेश के मॉडल पर स्वयं सहायता समूहों के कार्यों की जानकारी देते हुए कहा कि इसमें आमजन की भागीदारी बढ़ाने के लिए मानसिक प्रवृत्ति बदलनी होगी।
प्रारंभ में जर्मन डवलपमेंट कॉपरेशन (जीआईजेड) की कार्यक्रम सलाहकार श्रीमती जोना बिकल ने वित्त क्षमता की अवधारणा पर अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि वित्तीय समावेश गरीबी दूर करने की मुख्य रणनीति है। इसकी जानकारी करने के लिए जीआईजेड ने देश के चार राज्यों राजस्थान, उत्तराखंड, उडीसा एवं कर्नाटक के कम आय वाले ग्रामीण परिवारों का व्यापक सर्वेक्षण करके फाइनेंशियल टूल बॉक्स विकसित किया गया है। इसमें गरीब परिवारों की वित्तीय क्षमताओं को बढ़ाने पर घर-घर जाकर जानकारी एकत्र की गई। इसके तहत गरीबों के वित्तीय संसाधनों को समझने, सहयोग करने व काम में लेने की क्षमता में वृद्धि की रणनीति तैयार की गई। इस रणनीति को पूरे देश में लागू करने के लिए क्षेत्रीय आधार पर विभिन्न राज्यों में रोड शो आयोजित किए जा रहे हैं।
सीएमएफ के चेयरमैन एवं भारत सरकार के वित्त मंत्रालय में सचिव रहे सेवानिवृत्त आईएएस एन.एस. सिसोदिया ने कहा कि बहुत से ग्रामीणों के पास जमीनें बेचने से पैसे तो आ गए, लेकिन उन्हें यह पैसा खर्च करना नहीं आया, इसलिए वे आज भी गरीबी के चक्र में फंसे हुए हैं। इस सिलसिले में कई किस्से भी सुनाए और कहा कि जयपुर, गुडग़ांव, नोएडा, दिल्ली आदि के आसपास बसे ग्रामीणों की एकजैसी कहानियां हैं। सिसोदिया ने वर्ष 1978 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत की ओर से शुरू की गई अंत्योदय योजना के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि बैंकों ने लाभार्थी की वित्तीय क्षमताओं की अनदेखी कर उदारता से ऋण दिए, जबकि कई लोगों को उस ऋण के उपयोग की ही जानकारी ही नहीं थी। उन्होंने कहा कि हमें गरीब को समझने के साथ उसकी जरूरतों को पूरा करने वालों की क्षमता बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि सरकार की अपेक्षा एनजीओ व स्वयं सहायता समूह इस दिशा में ज्यादा अच्छा कार्य कर रहे हैं।
नाबार्ड की महाप्रबंधक एम. सेस ने कहा कि जमीनी स्तर पर वित्तीय क्षमताओं का आकलन करना होगा। उन्होंने पंजाब व विदिशा का उदाहरण देते हुए कहा कि ऋण ऐसे कार्यों के लिए दिया गया जो अनुत्पादक थे। उन्होंने कहा कि नाबार्ड वित्तीय साक्षरता के आधार पर काम कर रहा है। एनजीओ को बैंकों के साथ मिलकर अपनी क्षमताओं में वृद्धि करनी होगी।
सीएमएफ के कार्यकारी निदेशक यतेश यादव ने जीआईजेड की ओर से विकसित फाइनेंशियल टूल के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि राजस्थान में इसका व्यापक प्रचार प्रसार कर गरीबों के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जाएगी।
कार्यशाला में राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश व जम्मू कश्मीर आदि राज्यों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसमें एनजीओ, वित्तीय सेवा प्रदात्ता बैंक, माइक्रो फाइनेंस संस्थान, बीमा संस्थान, अनुसंधानकर्ता, नीति निर्धारक, नाबार्ड, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, आजीविका से जुड़े प्रतिनिधि शामिल थे।
कार्यशाला के दौरान विभिन्न सत्रों में स्थानीय स्तर पर लोगों की आवश्यकताएं जानकर जागरूकता के लिए रणनीति बनाने पर चर्चा की गई। विभिन्न सत्रों में सवाल-जवाब भी हुए। इसके अलावा फाइनेंशियल टूल किट का प्रदर्शन किया गया।
कल्याणसिंह कोठारी
मीडिया सलाहकार
94140 47744

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