नरेगा को कानून के बजाय स्कीम बनाने से बढ़ेगी अलोकतांत्रिक निर्णय-प्रणाली

nregaजयपुर। जनता के रोज़गार के अधिकार पर काम करने वाले जन-संगठनों और नागरिक समूहों के प्रतिनिधियों ने राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री को सूचना एवं रोज़गार अधिकार अभियान, राजस्थान के बैनर तले एक पत्र लिखा है। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री राजे के 7 जून, 2014 को केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री को नरेगा से सम्बंधित लिखे पत्र को कुछ मीडिया प्रतिष्ठानों ने उजागर किया था। इस पत्र में मुख्यमंत्री ने लिखा है कि:
“ये बहस का विषय है कि क्यों ग्रामीण रोज़गार की गारंटी एक कानून से ही मिलनी चाहिए और क्यों एक योजना के जरिये ऐसा रोज़गार दिया नहीं जा सकता या इसकी गारंटी नहीं दी जा सकती। कानून के शायद ही कोई फायदे हों सिवाय इसके कि विभिन्न प्रकार की संस्थाओं को इसके जरिये मुकदमेबाजी करने का मौका मिल जायेगा। इसे राष्ट्रीय रोजगार गारंटी स्कीम होना चाहिए या राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून, यह बहस और निर्णय का विषय है।”
अरुणा रॉय, निखिल डे, कविता श्रीवास्तव, तथा राजस्थान के कई जन-संगठनों के प्रतिनिधि इस पत्र में लिखते हैं,-
जयपुर, 7 जुलाई। जनता के रोज़गार के अधिकार पर काम करने वाले जन-संगठनों और नागरिक समूहों के प्रतिनिधियों ने राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री को सूचना एवं रोज़गार अधिकार अभियान, राजस्थान के बैनर तले एक पत्र लिखा है। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री राजे के 7 जून, 2014 को केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री को नरेगा से सम्बंधित लिखे पत्र को कुछ मीडिया प्रतिष्ठानों ने उजागर किया था। इस पत्र में मुख्यमंत्री ने लिखा है कि:
“ये बहस का विषय है कि क्यों ग्रामीण रोज़गार की गारंटी एक कानून से ही मिलनी चाहिए और क्यों एक योजना के जरिये ऐसा रोज़गार दिया नहीं जा सकता या इसकी गारंटी नहीं दी जा सकती। कानून के शायद ही कोई फायदे हों सिवाय इसके कि विभिन्न प्रकार की संस्थाओं को इसके जरिये मुकदमेबाजी करने का मौका मिल जायेगा। इसे राष्ट्रीय रोजगार गारंटी स्कीम होना चाहिए या राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून, यह बहस और निर्णय का विषय है।”
अरुणा रॉय, निखिल डे, कविता श्रीवास्तव, तथा राजस्थान के कई जन-संगठनों के प्रतिनिधि इस पत्र में लिखते हैं,-
गडकरी को लिखे पत्र में वे कहते हैं,-
“नरेगा ने राजस्थान के लगभग 1 करोड़ परिवारों के लिए एक जीवन रेखा की तरह काम किया है और संसद द्वारा पारित इस कानून को यदि कमज़ोर बनाने का प्रयास किया गया तो जनता इसका पुरज़ोर विरोध करेगी।“
नरेगा को कानून के बजाय एक स्कीम में परिवर्तित करने के खतरों की ओर इशारा करते हुए वे कहते हैं,-
“नरेगा को कानून के बजाय एक स्कीम में परिवर्तित करने से सामंती प्रवृत्तियों व अलोकतांत्रिक निर्णय-प्रणाली को बढ़ावा मिलेगा। ये गरीबों से उनके हकों को छीनेगा, अधिकारियों की जवाबदेही पर रोक लगायेगा और राजनैतिक व्यवस्था की काम करने की आवश्यकता को ख़त्म करेगा ।“
इस पत्र में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री से अनुरोध किया गया है कि नरेगा के खिलाफ हो रहे ऐसे हमलों पर रोक लगाई जाये जो कि जन-विरोधी हैं। जन-संगठनों के प्रतिनिधि लिखते हैं, “हम ये भी अनुरोध करते हैं कि नरेगा कानून के उचित क्रियान्वयन की ओर विशेष ध्यान दिया जाये, और रोज़गार की मांग को दर्ज़ करने और रोज़गार सृजित करने की उचित पद्धतियां विकसित की जाएं ताकि लाखों गरीब परिवारों को नरेगा का फायदा मिल सके।“
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को संबोधित करते हुए वे लिखते हैं, “राजस्थान के लोगों ने इस अहम राष्ट्रीय कानून को लाने के लिए लम्बा संघर्ष किया और इस कानून को लाने का श्रेय उन्हें ही जाता है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री को लिखे आपके पत्र से हम चकित और निराश हैं। हमें पूरा विश्वास है कि राज्य के लोग इस अधिकार को कमज़ोर करने के प्रयासों के खिलाफ पूरी ताकत से लड़ेंगे।“

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