अधिकांश महिला स्वयं सहायता समूहों की हालत बेहद चिंताजनक

DIY_1032_2DIY_1056_3जयपुर, 19 जनवरी। राजस्थान में गरीबी और अशिक्षा के कारण अधिकांश महिला स्वयं सहायता समूहों की हालत बेहद चिंताजनक है। पिछले वर्ष लगभग चार लाख समूहों में से मात्र 17 हजार ही को बैंकों से सहायता मिल सकी है। इस स्थिति से उबरने के लिए ग्रामीण महिलाओं को पर्याप्त प्रशिक्षण देने की जरूरत है। यह काम केवल सरकारी मशीनरी के जरिये नहीं बल्कि स्वैच्छिक संस्थाओं के सहयोग और सामाजिक संगठनों की भागीदारी से ही संभव है।
ये विचार आज से यहाँ इंदिरा गांधी पंचायती राज संस्थान में आरंभ हुई दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में विभिन्न वक्ताओं ने व्यक्त किए। संगोष्ठी का आयोजन ‘सेंटर फॉर माइक्रोफाइनेंस‘ द्वारा राजस्थान सरकार के ग्रामीण आजीविका विकास परिषद् के सहयोग से किया जा रहा है। संगोष्ठी में टाटा ट्रस्ट, नम्बार्ड, राजस्थान सरकार के महिला और बाल विकास विभाग और ग्रामीण विकास विभाग भी सक्रिय भागीदारी निभा रहे हैं।
संगोष्ठी में मुख्य अतिथि राजस्थान के ग्रामीण विकास विभाग के सचिव राजीव सिंह ठाकुर ने कहा कि स्वयं सहायता समूहों को सामुदायिक विकास पर अधिक जोर देना चाहिए। इसमें सरकार और स्वैच्छिक संगठनों की भागीदारी जरूरी है। उन्होंने स्वयं सहायता समूहों की संख्या के साथ-साथ गुणवत्ता बढ़ाने और इन्हें सरकार के गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम से जोड़ने की जरूरत भी बताई।
ठाकुर ने धौलपुर, डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिलों में अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि वहां बैंकों के सहयोग से स्वयं सहायता समूहों को एक-एक से डेढ़-डेढ़ करोड़ रूपए तक की सहायता प्रदान की गई। अन्य जिलों में इस तरह का अभियान चलाये जाने का प्रयास किया जा रहा है।
नाबार्ड के पूर्व अध्यक्ष वाई.सी. नंदा ने कहा कि स्वयं सहायता समूहों के बैंक लिंकेज का काम काफी निराशाजनक है। स्वयं सहायता समूहों की अवधारणा 1992 में शुरू होने के बावजूद अभी तक इनका वांछित परिणाम नहीं मिल पाया है। बैंक समझते हैं कि इस तरह के छोटे समूहों को वित्तीय सहायता देना फायदेमंद नहीं है। उन्होंने सुझाव दिया कि नाबार्ड जैसी संस्थाओं को संख्या पर जोर न देते हुए इन समूहों की गुणवत्ता बढ़ाने पर जोर देना चाहिए।
इससे पहले सेंटर फॉर माइक्रोफाइनेंस के अध्यक्ष एन.एस. सिसोदिया ने अपने स्वागत भाषण में बताया कि राजस्थान की लगभग सात करोड़ की आबादी में से छः करोड़ लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। इनमें 66 फीसदी लोग ही शिक्षित हैं। महिलाओं में तो केवल 52 प्रतिशत ही शिक्षित हैं। लगभग 22 फीसदी आबादी गरीबी की सीमा रेखा से नीचे है। गरीबी दूर करने में स्वयं सहायता समूहों की अहम भूमिका है, लेकिन दुःख का विषय है कि करीब 53 लाख परिवार अभी तक इन समूहों से नहीं जुड़ पाए हैं।
सेंटर के उपाध्यक्ष अशोक अग्रवाल ने धन्यवाद भाषण में इस बात पर चिंता जाहिर की कि राज्य में चार लाख स्वयं सहायता समूहों में से अधिकांश केवल नाम मात्र के हैं। प्रशिक्षण की कमी के कारण ये समूह उनके पास जमा राशि का भी समुचित उपयोग नहीं कर पाते हैं।
इस अवसर पर 2013-14 की माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र की रिपोर्ट भी प्रस्तुत की गई। धौलपुर की सहेली मिति ने एक नाटिका के माध्यम से स्वयं सहायता समूहों के महत्व को भी उजागर किया।

(कल्याण सिंह कोठारी)
मीडिया सलाहकार
9414047744

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