हार गए पालनहार

बाड़मेर जिले में राज्य सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग द्वारा निराश्रित व अनाथ बच्चों के लिए चलाई जाने वाली पालनहार योजना स्वयं ही निराश्रित और अनाथ हो गई है। गत दो वर्षो से लाभान्वितों को लाभ नहीं मिल रहा है। योजना के लाभ का भुगतान द्विमासिक तौर पर किए जाने के विभागीय आदेश विभाग की फाइलों में धूल फांक रहे हैं। लाभान्वित ग्राम पंचायत से लेकर जिला स्तर तक चक्कर लगा रहे हैं लेकिन जिम्मेदार लोग संतोषजनक जवाब नहीं दे पा रहे हैं। कभी बजट नहीं होने तथा कभी लाभान्वितों के डाटा ऑनलाइन की प्रक्रिया का हवाला देकर लाभान्वितों कोे जल्दी भुगतान का भरोसा देते दो साल गुजर गए। यह योजना ऐसे बच्चों के लिए चलाई जा रही है जिनके सिर पर माता – पिता या पिता का साय उठ गया है। ऐसे बच्चों का पालन-पोषण करने वाले परिवार को पालनहार का नाम दिया गया है। निराश्रित बच्चों का पारिवारिक वातावरण में पालन-पोषण का जिम्मा लेने वाले परिवार कोे पालनहार योजना केे तहत 06 साल से छोटे बच्चों को 500 रू. प्रति माह तथा 6 से 18 वर्ष तक के बच्चे को 1000 प्रतिमाह एवं ंसाल में एक बार एक मुश्त 2000 रू. की सहायता उनकी शिक्षा और अन्य जरूरतों के लिए दिए जाने का प्रावधान इस योजना के तहत किया गया है। लेकिन योजना के क्रियान्वयन से जुड़े कई ऐसे मुद्दे हैं, जिनके चलते सरकार की यह इस महत्वपूर्ण योजना का लाभ जरूरतमदों तक नहीं पहुंच रहा है।
योजना के क्रियान्वयन की मुख्य जिम्मेदारी सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की है या पंचायती राज संस्थाओं की, इसकी स्पष्टता नहीं है। ऑफलाइन आवेदन की प्रक्रिया के दौरान ग्राम पंचायत द्वारा योग्य लाभार्थियों के आवेदन पूर्ण कर पंचायत समिति विकास अधिकारी की स्वीकृति के साथ जिला सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के मार्फत स्वीकृति हेतु निदेशालय जयपुर प्रेषित किया जाता था। पालनहार को चैक द्वारा राशि आने पर ही पता चलता था कि उसके आवेदन पर स्वीकृति हो चुकी। ऑफलाइन प्रक्रिया में होने वाली देरी से निजात दिलाने के लिए वर्ष 2014 के बाद ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया प्रारंभ की गई। योग्य लाभार्थी ई-मित्र के माध्यम से ऑनलाइन आवेदन कर सकता है। लेकिन ऑनलाइन प्रक्रिया से गत एक साल से किए गए सैकड़ों आवेदन स्वीकृति के इंतजार में पड़े हैं। लाभार्थी लाभ की बाट जो रहे हैं। ऑनलाइन आवेदन में भी यह प्रावधान किया गया था कि आवेदक ऑनलाइन प्रक्रिया पूरी करने के बाद मूल दस्तावेज संबंधित पंचायत समिति के विकास अधिकारी को प्रस्तुत करेगा तथा विकास अधिकारी दस्तावेजों की जांच कर ऑनलाइन स्वीकृति जारी करेगा। लाभार्थी से जांच के लिए ऑनलाइन आवेदन के बाद मूल दस्तावेज जमा कराने की व्यवस्था ने लाभार्थियों की समस्याओं को और ज्यादा बढ़ा दिया। ऑनलाइन आवेदन के बाद मूल दस्तावेज विभाग में जमा कराने का औचित्य समझ से परे है। जीरो पैपर की उपयोगिता के स्थान पर दो पैपर अतिरिक्त जोड़ दिए गए। पंचायत समिति के विकास अधिकारी द्वारा ऑनलाइन स्वीकृति व्यवस्था में गत माह बदलाव कर नई व्यवस्था के तहत ऑनलाइन स्वीकृति जिला अधिकारी द्वारा किए जाने के निदेशालय के आदेश के बाद निगरानी और क्रियान्वयन की व्यवस्था को और असमंजस में डाल दिया।
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के बाल अधिकारिता विभाग का जिला स्तर पर कार्यालय एवं अलग सेे स्टाफ है लेकिन उपखंड व पंचायत समिति स्तर पर कार्मिक नहीं है, जो पालनहार के क्रियान्वयन व मॉनिट्रिंग के कार्य को अंजाम दे सकें। पंचायत समिति स्तर पर किसी सेवा भावी कार्मिक को यह जिम्मा दे दिया जाता है। लेकिन जवाबदेहीयुक्त जिम्मेदारी किसी के पास नहीं है। पंचायत समिति स्तर पर पालनहार योजना की जानकारी की भी कमी है। स्पष्ट व जवाबदेहीयुक्त जिम्मेदारी के अभाव में इस योजना का कोई धणी-धोरी नहीं है। पंचायत समिति के एक विकास अधिकारी से पालनहार योजना के कियान्वयन की समस्याओं पर चर्चा करने पर उनका जवाब भी विचारणीय लगा। उनका कहना था कि पालनहार योजना का पूरा क्रियान्वयन सान्यअवि विभाग करता है। हम केेवल स्वीकृति जारी करते हैं। हमारे पास शिकायत आती है तो हम जिला कार्यालय को अवगत कराते हैं। हमें किसी प्रकार की जानकारी विभाग द्वारा उपलब्ध नहीं कराई जाती। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की पेंशन योजना की स्वीकृति से लेकर क्रियान्वयन की पूरी जिम्मेदारी पंचायत समिति के पास होने से हर स्तर पर जिम्मेदारी की स्पष्टता है, तो पालनहार में क्यों नहीं हो सकती। भुगतान कोष कार्यालय के मार्फत किया जा सकता है।
तिहतरवें संविधान संशोधन के तहत 11 वीं अनुसूची में वर्णित जिन 29 विषयों को पंचायती राज संस्थाओं को हस्तांतरित करने का निर्णय 2003 में लिया गया था उसमें समाज कल्याण, वर्तमान में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के जिला अधिकारी द्वारा संचालित सभी गतिविधियां जिला परिषद को हस्तांतरित करते हुए विभाग के हर स्तर के अधिकारियों व कार्मिकों कोे पंचायती राज व्यवस्था के त्रीस्तरीय ढांचे के अधीन किया गया था। तिहत्रवें संविधान संशोधन की मंसा के अनुरूप 11 वीं अनुसूची में वर्णित 29 विषयों से संबंधित फंक्शंन, फंक्शनरी और फंड पंचायती राज संस्थाओं केे अधीन करने का कार्य सिरे नहीं चढ़ने के कारण अनाथ व निराश्रित बच्चों के विकास के लिए चलाई गई सरकार की महत्वपूर्ण पालनहार योजना के क्रियान्वयन, मॉनिट्रिंग और वार्षिक सत्यापन जैसे कार्यों को अंजाम तक पहुंचाने की जिम्मेदारी किसी की नहीं है।
बाड़मेर जिले में कुल 2275 पालनहार परिवारों के 3800 बच्चों कोे इस योजना के तहत लाभ दिया जाता था। सभी परिवारों के डाटा ऑनलाइन करने की प्रक्रिया प्रारंभ की गई तो विभाग के हाथ पांव फूल गए। विभाग के पास केवल 629 परिवारों का ही रिकॉर्ड मिल पाया। शेष परिवारों का रिकॉर्ड विभाग से गायब हो गया। यही कारण है कि गत वित्तीय वर्ष तक कुल पंजीकृत पालनहार परिवारों में 30 प्रतिशत तक ही यह लाभ पहुंच पाया है। शेष लाभार्थियों को पिछले दो सालों से लाभ नहीं मिल रहा है। यह दस्तावेज कैसे गायब हुए, कौन जिम्मेदार है, लापरवाही बरतने वाले जिम्मेदारों के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं हो रही, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। पालनहार ग्राम पंचायत व पंचायत समिति में अपनी फरियाद लेकर आते हैं, यहां उनको संतोषजनक जवाब नहीं मिलता है। जिले में कुल 17 पंचायत समितियों की 489 ग्राम पंचायतों के 2712 राजस्व गांवों और कसबों में यह पालनहार छितरे हुए हैं जिनके क्रियान्वयन, निगरानी, नियमित भुगतान और योग्य परिवारों की पहचान कर उनको लाभान्वित करने की जिम्मेदारी जिला सामाजिक न्याय एवं अधिकरिता विभाग के पास है। विभाग के पास पर्याप्त मानव संसाधन नहीं होने के कारण पंजीकृत पालनहारों के बच्चों को लाभ पहुंचाने में नाकाम है तथा पंचायती राज संस्थाओं को इसकी जिम्मेदारी नहीं दिए जाने के कारण समझ में नहीं आए हैं। निदेशालय बाल अधिकारिता विभाग द्वारा दिनांक 16 मई 2013 को जारी आदेश में कहा गया था कि पालनहार को त्रैमासिक भुगतान की व्यवस्था काफी विलंब वाली है अतः पालनहार का भुगतान द्वैमासिक किया जाना सुनिश्चित करें। लेकिन दो सालों से भुगतान नहीं मिलने पर भी निदेशालय से लेकर जिला स्तर तक किसी के ललाट पर सलवटें नहीं आना इस योजना के प्रति गंभीरता को दर्शाता है।
भाजपा सरकार ने सत्ता में आने से पूर्व जो वादे किए थे उनमें गुड गवर्नेंस की घोषणा भी थी। लेकिन पालनहार जैसी बालअधिकारों को सुरक्षा प्रदान करने वाली योजना में सुशासन जैसी व्यवस्था कोसों दूर है। विभाग द्वारा आवेदन की ऑनलाइन प्रक्रिया प्रारंभ करने के पीछे सोच यही थी कि लाभार्थी को अनावश्यक चक्कर नहीं लगाने पड़े तथा समय पर उसको लाभ मिल सके। बाड़मेर जिले में अप्रेल 2015 से जून 2016 तक ऑनलाइन आवेदन करनेे वाले 15 ऐसे लाभार्थी मिले जिनकोे आज तक ना तो लाभ मिला है और ना ही स्वीकृति, अस्वीकृति की जानकारी मिली है। लाभार्थियों ने बताया कि उन्होंने कई बार विभाग में संपर्क कर जानकारी चाही, तो यही बताया गया कि आपका लाभ मिल जाएगा। लेकिन कब मिलेगा इसकी जानकारी नहीं है। जिले में सैकड़ों ऐसे आवेदक हैं जिन्होंने ऑनलाइन प्रक्रिया से आवेदन कराए परंतु लाभ नहीं मिला। विभाग की वेबसाईट पर भी पालनहार योजना संबंधी लाभार्थियों की जानकारी नहीं होना आज के संचार तकनीकी युग में हास्यास्पद सा ही लगता है। सामाजिक सुरक्षा की तमाम योजनाओं को लोगों के अधिकारों से नहीं जोड़कर कल्याणकारी, दयाभावना जैसी अवधारणा बन जाना भी इस योजना के क्रियान्वयन की गंभीरता को कम कर देता है।

सुधार हेतु मिले अलग-अलग हितधारकों के सुझाव
पालनहार योजना के क्रियान्वयन एवं निगरानी की बेहतरीन व्यवस्था के लिए अलग-अलग हितधारकों से मिले सुझाव काफी लाभदायक हो सकते हैं।
ऽ पालनहार योजना के योग्य लाभार्थियों की पहचान, जुड़ाव, क्रियान्वयन की जवाबदेहीयुक्त जिम्मेदारी पूरी तरह से पंचायती राज संस्थानों के अधीन होने से ग्राम पंचायतों की क्रियान्वयन व निगरानी में जिम्मेदारी बढ़ेगी तथा योग्य लोगों को लाभ लेने में आसानी होगी।
ऽ पालनहार के लाभार्थियों की सूची विभागीय वेबसाइट पर उपलब्ध हो जिससे कोई भी व्यक्ति जानकारी हासिल कर सके। सामाजिक सुरक्षा के तहत मिलने वाली पेंशन की सूचियां ऑनलाइन है तथा कोई भी व्यक्ति पेंशन की स्थिति को जान सकता है। इसी प्रकार पालनहार की सूचियां आम नागरिक के लिए वेबसाइट पर अपडेट रहे।
ऽ पालनहार का लाभ जारी होने की सूचना सभी लाभार्थियों तक पहुंचे जिससे वो जान सकें कि उनको किस अवधि तक का लाभ मिला है। इससे संबंधित कोई भी सूचना जो क्रियान्वयन से जुड़ी है, लाभार्थी होनी चाहिए ऐसी व्यवस्था हो। इसके लिए सभी पंचायत समितियों में सूचना भेजकर पंचायत स्तर तक पहुंच तथा सार्वजनिक स्थल पर चस्पा करने की व्यवस्था हो। ग्राम पंचायत स्तर पर संबंधित ग्राम पंचायत के सभी लाभर्थियों का रिकॉर्ड हो तथा नियमित अपडेट रहे।
ऽ वार्षिक भौतिक सत्यापन की जिम्मेादारी पंचायतों के साथ-साथ आंगनवाड़ी व विद्यालयों को दी जाए। यह लाभ उन्हीं बच्चों कोे मिलता है जो आंगनवाड़ी में नामांकित है अथवा विद्यालय में अध्ययनरत है। विद्यालय में अध्ययनरत बच्चों के मार्फत पालनहार को सूचना देकर विद्यालय में बुलाया जा सकता है एवं एक दिन में भौतिक सत्यापन की कार्यवाही हो सकती है। विद्यालय के अध्यापक जब मतदाता सूचियों को अपडेट करने का काम कर सकते हैं तो पालनहार का भौतिक सत्यापन भी कर सकते।
ऽ पालनहार योजना की संपूर्ण जाकनारी जिसमें योजना कौन लाभार्थी हो सकते हैं, जुड़ाव के लिए क्या दस्तावेज चाहिए, आवेदन की प्रक्रिया व लाभ ले रहे लाभार्थियों की सूची अटल सेवा केंद्रो पर सार्वजनिक स्थान पर प्रदर्शन हो जिससे आम लोगों को जानकारी रहे तथा योग्य वंचितों की पहयान में समुदाय का योगदान मिल सके। ग्रामसभाओं में सूचियों का अनुमोदन हो।
ऽ वार्षिक भौतिक सत्यापन जो कि अब बायोमैट्रिक सत्यापन हो रहा है, अटल सेवा केंद्रों पर संचालित ई-मित्रों से हो ताकि लोग असानी से समय पर भौतिक सत्यापन करा सकें।

क्या है पालनहार योजना
अनाथ बच्चों के पालन-पोषण, शिक्षा आदि की व्यवस्था संस्थागत नहीं की जाकर समाज के भीतर ही बालक-बालिका का उनके निकटतम रिश्तेदार या परिचित व्यक्ति के परिवार में करने के इच्छुक व्यक्ति को पालनहार बनाकर राज्य की ओर से आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है, जिससे ऐसे बच्चे समाज की मुख्यधारा के साथ अपना विकास कर सकें।
यह योजना अनाथ बालक-बालिका, न्यायिक प्रक्रिया से मृत्युदंड या आजीवन कारावास प्राप्त माता-पिता की संतान, पुर्नविवाहित माता की संतान, एड्स पीड़ित माता-पिता की संतान, कुष्ठ रोग से पीड़ित माता-पिता के बच्चे,, तलाकशुदा, परित्यक्ता, विकलांग माता या पिता की संतान, नाते जाने वाली व विधवा माता की तीन संतानों तक पालन-पोषण करने वाले ऐसे परिवारों को लाभ दिया जाता है जिनकी वार्षिक आय 1 लाख बीस हजार सेे कम हो।

नहीं हो पाता वार्षिक भौतिक सत्यापन
पालनहार योजना के तहत जिन बच्चों को सहायता दी जाती है उनका प्रत्येक वित्तीय वर्ष के अंत व प्रारंभ के महीने में भौतिक सत्यापन विभाग द्वारा कराए जाने का प्रावधान है। भौतिक सत्यापन में लाभार्थी को बच्चों के स्कूल या आंगनवाड़ी में नामांकित होने का प्रमाण, गत वर्ष की विद्यालय द्वारा जारी अंक तालिका, बच्चों का सामाजिक वातावरण में पालनपोषण एवं उनके स्वास्थ्य व पोषण संबंधी जानकारी सत्यापनकर्ता द्वारा ली जाती है। जिला सा.न्या. एवं अ.वि. के पास स्टाफ नहीं होने के कारण भौतिक सत्यापन नहीं हो पाता। दूसरी तरफ विभाग पंचायती राज संस्थाओं से यह कार्य नहीं कराए जाने की मंसा के कारण हजारों बच्चे लाभ से वंचित रह जाते हैं। होना तो यह चाहिए कि भौतिक सत्यापन शिक्षा विभाग, आईसीडीएस विभाग एवं ग्राम पंचायतों द्वारा कराया जाए तो इस समस्या से छुटकारा मिल सकता है। हाल ही में विभाग द्वारा बायोमैट्रिक सत्यापन कराया जा रहा है। इसके लिए लाभार्थी को अपना व बच्चों के सभी दस्तावेज लेकर ई-मित्र से सत्यापन कराना है। अटल सेवा केंद्रों पर संचालित ई-मित्र केंद्रों को यूजर आईडी नहीं दी गई है। बाड़मेर जिले में बालोतरा, पाटोदी, कल्याणपुर तीन ब्लॉक में बालोतरा एक ईमित्र को यूजर आई डी दी गई है जिससे लाभार्थियों को परेशानी का समाना करना पड़ रहा है। आने-जाने के खर्च एवं ई-मित्र के सेवा चार्ज सहित एक लाभार्थी को 500 से 700 रू. खर्च लग रहा है तथा लाभ मिलेगा या नहीं इसकी गारंटी नहीं है। इस संबंध में अधिकारियों को अवगत कराने के बावजूद कार्यवाही नहीं हुई है। इ-मित्र संचालकों की विभागीय कार्मिकों की साठ-गांव के चलते अन्य इच्छुक ई-मित्र संचालकों को मांग के बावजूद यूजर आईडी नहीं दी जा रही है।

पलनहार नियम 2007
राज्य सरकार द्वारा पालनहार योजना के तहत सहायता राशि स्वीकृत करने के लिए बनाए गए पालनहार योजना संचालन हेतु संशोधित नियम 2007 के अनुसार निदेशालय द्वारा प्रतिमाह योजना की समीक्षा करना। जिला अधिकारी द्वारा पालनहार योजना के आवेदनों की स्वीकृतियां नियमित रूप से प्रति माह तथा प्रत्येक माह के प्रथम सप्ताह में भुगतान की कार्यवाही सुनिश्चित किया जाना है।


पालनहार को नहीं मिलती किसी भी प्रकार की जानकारी

इस योजना के लाभान्वितों को किसी भी प्रकार की जानकारी नहीं मिलती। उनका आवेदन स्वीकृत हुआ या नहीं, कब भौतिक सत्यापन होना है, उनको दस्तावेज कहां जमा कराने हैं, उनको बैंक के मार्फत मिलने वाला भुगतान किस अवधि तक का मिला है आदि जानकारी से वंचित रहते हैं। निदेशालय के आदेश के बावजूद द्वैमासिक भुगतान नहीं मिल कर छः माह अथवा वर्ष भर का भुगतान साथ में मिलने के कारण लाभार्थी साल भर इस इंतजार में रहता है कि उसका पैसा आएगा। लेकिन बाद में पता चलता है कि भौतिक सत्यापन नहीं होने या अन्य कारणों से उसका भुगतान रोक दिया गया है तब वह कार्यवाही करता है। कार्यवाही का उचित निस्तारण व्यवस्था नहीं होने के कारण दो साल से भुगतान अटका पड़ा है।
वर्तमान स्थिति यह है कि लाभार्थी तो दूर किसी भी पंचायत समिति या ग्राम पंचायत में जानकारी नहीं है कि उनके कार्यक्षेत्र में कितने पालनहार लाभार्थी हैं तथा उनके भुगतान की क्या स्थिति है। कहने को पंचायती राज व्यवस्था के त्रिस्तरीय ढांचे में प्रत्येक स्तर पर बनी 06 स्थाई समितियों में से विकास समिति कोे इसकी जानकारी होनी चाहिए, लेकिन विभाग द्वारा जिले से लेकर पंचायत समिति व गांव स्तर पर भी यह जानकारी उपलब्ध नहीं कराई जाती।

धपियां कवंर कोे नहीं मिला दो साल से लाभ
Dhapiya Kanwar Patodiबाड़मेर जिले के पाटोदी गांव की रहने वाली धपिया कवंर पत्नी घेवरसिंह को गत दो वर्षों से पुत्री मीना कक्षा-7 व पुत्र भगवंत सिंह कक्षा-9 को पालनहार का लाभ नहीं मिला। विधवा श्रेणी की गरीब महिला धपिया कवंर ने बताया कि भौतिक सत्यापन के लिए समाज कल्याण छात्रावास वार्डन व जिला कार्यालय में पांच बार दस्तावेज जमा करा चुकी। हर बार यही जवाब मिला कि आपका भुगतान मिल जाएगा। लेकिन पिछले दो सालों से लाभ का इंतजार कर रही हूं। समाधान नहीं होने पर 25 जून 2016 को राजस्थान संपर्क पर भी शिकायत दर्ज कराई जिसका शिकायत नंबर 0616085811969 है। 15 दिन में निस्तारण नहीं होने पर पुनः स्मारण कराया लेकिन स्टेट्स में अंडर प्रोग्रेस ही बता रहा है। धपियां कवंर ने बताया कि इस योजना के लाभ के कारण में अपनी तीन संतानों को पढ़ा रही हूं। खुली मजदूरी कर परिवार को दो जून की रोटी जुटा पाती हूं। राशि नहीं मिलने के कारण कर्जा भी हो गया। विभाग द्वारा किसी प्रकार की जानकारी भी नहीं दी जा रही है। जिला कलक्टर के आदेश क बावजूद विभाग द्वारा राजस्थान संपर्क पर शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है।

झमूदेवी लाभ की बाट जो रही है
Jhamu Devi Patodiपाटोदी निवासी झमूदेवी पत्नी बाबूलाल की तीन संतानों हरिश, हिना व पुरूषोत्तम को पिछले दो वर्षों से लाभ नहीं मिला है। दो सालों छः बार अपने दस्तावेज विभाग को उपलब्ध कराने के बावजूद ना तो लाभ मिला और ना ही किसी प्रकार की जानकारी। गरीब विधवा झमुदेवी के पास अपनी संतानों को पढ़ाई छुड़वाने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं है। दिनभर मेहनत मजदूरी कर वह राशन, कपड़ा एवं हारी-बीमारी के ईलाज का जुगाड़ मुश्किल से कर पाती है। 500 रू. विधवा पेंशन के अतिरिक्त तीनों संतानों को महीने के 3000 रू. मिलने से वह बच्चों को पढ़ाकर अपने पैरों पर खड़ा करने का सपना सरकार की इस योजना से देख रही थी लेकिन दो साल इंतजार के बाद सपना टूटता दिख रहा है। धपिया की तरह झमूदेवी ने भी 17 जून 2016 को राजस्थान संपर्क पर शिकायत दर्ज कराई जिसका शिकायत नंबर 0616085803506 है। शिकायत किए चार माह होने कोे है लेकिन अभी तक किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं हुई है। पंचायत समिति व पंचायत में कोई सुनने वाला नहीं है।

हार गई हरूदेवी
Haru Devi Tagaram Koduka Aids 2लाईलाज बीमारी से ग्रसित हरूदेवी को भी अपनी संतानों के पालन-पोषण एवं शिक्षा जारी रखने के लिए मिलने वाला पालनहार का लाभ दो सालों से नहीं मिला है। गरीब, विधवा एवं लाईलाज बीमारी के कारण परिवार समाज में उपेक्षा का दंश झेल रही हरूदेवी को किसी से शिकायत नहीं है। बातचीत के दौरान उसने बताया कि बच्चों के पालन-पोषण के लिए मिलने वाला लाभ दो सालों से बंद है। पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर हरू के पति का देहांत दो साल पहले इसी लाईलाज बीमारी के कारण हुआ था। विधवा पेंशन एवं महात्मा गांधी नरेगा तथा खुली मजदूरी कर अपना व बच्चों का पेट पालने वाली हरूदेवी को लाभ का इंतजार है, लेकिन अभी तक किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं की है। कार्यवाही करने में मददगार भी नहीं है। सरकार लाभ दे तो भी भला, नहीं दे तो भी भला वाले वाक्य बोलने वाली हरूदेवी को अधिकार आधारित लाभ की मांग करने की हिम्मत कौन दिलाए।

वंचित हैं हजारों योग्य बच्चे
पालनहार योजना के क्रियान्वन की अस्पष्टता के कारण न केवल पंजीकृत बच्चों को लाभ मिलने में कठिनाई है बल्कि हजारों बच्चे पहचान के अभाव में वंचित है। जिस श्रेणी के बच्चों को लाभ मिलता हैे उनमे से विधवा व दिव्यांग माता या पिता की संतान वाली इन दो श्रेणी को देखें तो बाड़मेर जिले में 21267 विधवा महिलाओं तथा 11901 विकलांग व्यक्तियों सहित 33168 कोे सामाजिक सुरक्षा के तहत पेंशन मिलती है। इसमें तलाकशुदा, परित्यक्तता, नाता जाने वाली माता की संतान, एड्स व कुष्ठ रोग पीड़ितों की संख्या अलग है। पेंशनधारकों में से 30 प्रतिशत व्यक्ति ही अगर 18 साल से कम उम्र वाले बच्चों के माता-पिता को मानें, तो आठ हजार जैसे लाभार्थी होने चाहिए। लेकिन विभाग के पास लगभग 2500 पंजीकृत पालनहार हैं जिनको समय पर लाभ पहुंचाने में नाकाम है। लाभ पाने के हजारों हकदार बच्चे लाभ से वंचित हैं जिनको ढूंढ़ कर लाभान्वित करने की जिम्मेदारी वर्तमान में किसी की नहीं है।

बाड़मेर जिले के पाटोदी ब्लॉक की साजियाली रूपजी राजाबेरी पंचायत के सोखड़ों की बेरी की रहने वाली कमला देवी पालनहार योग्य है। लेकिन गत माह जब उनको आवेदन करने के बारे कहा तोख् उसका जवाब था कि मुझे पालनहार का लाभ नहीं चाहिए। उसने तीन बार पंचायत में आवेदन किया तथा 1200 रू. खर्च हो गए। लेकिन उसका आवेदन कहां गया, लाभ क्यों नहीं मिला, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। लोग चक्कर लगा-लगा कर हार गए हैं।
इसी ब्लॉक के चिलानाडी पंचायत के गांव सुरजबेरा की सुमेर कवंर को फोन पर संपर्क कर पालनहार के भौतिक सत्यापन की जानकारी दी तोे, उसका जवाब सुनकर किसी भी संवेदशील प्राणी की आंखे खुल जानी चाहिए। उसने बताया कि मैंने पिछले दो सालों में कम से कम 10 बार मांगे जाने पर कभी बालोतरा तो कभी पाटोदी में कागजों की फोटो कॉपियां जमा करा चुकी हूं। दो सालों में 1500 से 1600 रू. खर्च कर चुकी हूं। लेकिन लाभ के नाम पर एक धेला नहीं मिला है।

दिलीप सिंह बीदावत
112, इंदिरा कॉलोनी, बीकानेर

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