बीकानेर, 25 जुलाई। जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के गच्छाधिपति आचार्यश्री जिन मणिप्रभ सागर सूरिश्वरजी ने मंगलवार को बागड़ी मोहल्ले की ढढ्ढा कोटड़ी में प्रवचन में कहा कि व्यक्ति को माता-पिता, देव, गुरु, धर्म व आध्यात्म के प्रति अपने कर्ज को प्रसन्नता, फर्ज व ईमानदारी से चुकाना चाहिए। ऋण से उऋण होने पर ही सुख, शांति व समृद्धि मिलती है। व्यक्ति को हमेशा कर्ज लेने से बचना चाहिए।
उन्होंने कहा कि सांसारिक लोगों व बैंक आदि संस्थाओं से लिए गए तो माफ भी किए जा सकते है लेकिन माता, पिता, देव, गुरु व धर्म तथा आध्यात्मक का कर्ज व्यक्ति का कभी माफ नहीं होता। उसे इस भव में नहीं तो अगले भव में किसी न किसी रूप अवश्य चुकाना पड़ता है। जैन व जैनेतर सहित सभी धर्म व मजहबों में भी अपने कर्ज से मुक्ति का संदेश दिया गया है।
आचार्यश्री ने भगवान महावीर के ग्वाले द्वारा कील ठोकने के प्रसंग को सुनाते हुए कहा लोग परोक्ष-अपरोक्ष रूप से जाने-अन्जाने में काम,क्रोध, लोभ व मोह, माया, राग-द्वेष तथा शारीरिक, मानसिक व आर्थिक पीड़ा पहुंचाकर भी कर्ज अपने ऊपर चढ़ा लेते हैं। पिता, दादा आदि का आर्थिक कर्ज तो उनके वंशज चुका देंते है लेकिन धर्म व आध्यात्म तथा कषायों से प्राप्त कर्ज को व्यक्ति को स्वयं को ही चुकाना पड़ता है। उस कर्ज को उसके वंशज लाख कोशिशों के बावजूद नहीं उतार सकते ।
गच्छाधिपति ने कहा कि कर्ज व्यक्ति को रोते हुए व उदासी के साथ मजबूरी में लें। प्रसन्नता से कर्ज लेकर उसको नहीं चुकाने पर चक्रवर्ती ब्याज जैसा पाप लगता है। धर्म व आध्यात्म का कर्ज उतारने में प्रफुल्लता रखनी चाहिए । उन्होंने कहा कि दुख जिसके नीमित आता है वह आपका उपकारी है। कोई अपमान कर, क्रोध कर आपका ऋण उतारते है। ऋण के उतारने पर समभाव के साथ प्रसन्नता रखनी चाहिए । कर्ज के चुकने पर भीतर से हल्कापन होता है तथा अपने में व्याप्त अनंत केवल ज्ञान उजागर होता है। मंगलवार को साध्वीश्री प्रिय मुद्रांजनाश्रीजी 23 वें दिन की तपस्या की अनुमोदना की गई तथा बालोतरा खरतरगच्छ संघ के अध्यक्ष मोहन राज चौपड़ा का खरतरगच्छ संघ की ओर से अभिनंदन किया गया।