न्यायपालिका और विधायिका में टकराव ओर तेज

राजस्थान में न्यायपालिका और विधायिका में टकराव की स्थिति अब एक कदम ओर आगे बढ़ गई है। राज्य विधानसभा में शुक्रवार को हुई सर्वदलीय बैठक में विधायिका में न्यायालय के हस्तक्षेप को ठीक नहीं मानते हुए हाईकोर्ट के किसी भी नोटिस का जवाब नहीं देने का निर्णय लिया गया।

पिछले दिनों विधानसभा की महिला और बाल विकास समिति की शिकायत पर विशेषाधिकार समिति ने जयपुर के महिला थाना पश्चिम की तत्कालीन थानाधिकारी रत्ना गुप्ता को तीन बार विशेषाधिकार हनन का नोटिस देकर पेश होने के निर्देश दिए थे। रत्ना गुप्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर नोटिस जारी करने को चुनौती दी। इस पर दो सप्ताह पूर्व हाईकोर्ट ने विधानसभा के विशेषाधिकारी को नोटिस जारी कर जवाब तलब कर लिया।

हाईकोर्ट के नोटिस विधानसभा अध्यक्ष दीपेंद्र सिंह शेखावत एवं सभी राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे को गंभीर और विधानसभा की अवमानना माना है। अध्यक्ष द्वारा इस मामले पर शुक्रवार को बुलाई गई बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री वसुध्ारा राजे एवं संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल सहित सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि मौजूद रहे। बैठक में तय किया गया कि हाईकोर्ट के नोटिस का जवाब नहीं दिा जाएगा क्योंकि यह कोर्ट का क्षेत्राधिकार नहीं है। इसके साथ ही पुलिस महानिदेश को निर्देश दिए गए कि पुलिस अधिकारी रचना गुप्ता को गिरफ्तार कर तीन दिन में विस. की कमेटी के समक्ष पेश किया जाए। अध्यक्ष शेखावत ने पत्रकारों को बताया कि हम न्यायालय का सम्मान करते है और न्यायालय की अपनी गरिमा है उसी प्रकार विधायिका का अपना काम है। इधर सर्वदलीय बैठक में हुए निर्णय की जानकारी मिलते ही हाईकोर्ट में भी हलचल शुरू हो गई, लेकिन इस बारे में अधिकारिक रूप से कोई बोलने को तैयार नहीं था।

गौरतलब है कि विधानसभा की महिला कल्याण समिति ने जुलाई-2010 में महिला थाना पश्चिम का दौरा किया था और थाने में बंद अभियुक्तों की जानकारी सहित मुकदमों से संबंधित केस डायरी और रोजनामचा आदि दिखाने को कहा था। तत्कालीन थानाधिकारी और वर्तमान में आरपीए में तैनात सीआई रत्ना गुप्ता ने इनकार कर दिया था। महिला कल्याण समिति ने इसकी शिकायत विधानसभा अध्यक्ष से की थी। विधानसभा अध्यक्ष ने मामले को विशेषाधिकार समिति के सुपुर्द कर दिया था। समिति ने इसे विशेषाधिकार हनन मानते हुए रत्ना गुप्ता को नोटिस जारी कर समिति के समक्ष पेश होने के निर्देश दिए थे। गुप्ता ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी। इसमें कहा कि विधानसभा की समिति को थाने में निरीक्षण करने और केस डायरी तथा रोजनामचा आदि देखने का अधिकार ही नहीं है। मामला विशेषाधिकार हनन के तहत नहीं आता है क्योंकि जब विधानसभा की समिति को केस डायरी और रोजनामचा देखने का अधिकार ही नहीं है तो इनकार करने से समिति के किसी विशेषाधिकार का हनन ही नहीं हुआ है। याचिका में रत्ना गुप्ता को जारी विशेषाधिकार नोटिस को निरस्त करने की गुहार की है।

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